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रक्षाबंधन – रक्षा के भ्रम का बंधन

MyVision-With the Life and Religion
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भाई की नज़रों में राखी क्या रखती है कोई मोल ?
जितनें भाई हैं दुनिया में दिल टटोल कर बोलें बोल
क्या सार्थक की है उनने इस धागे की मर्यादा ? 
या बस प्रथा निभाने को ही बंधवाया धागा अनमोल

अब तो मात्र प्रथा की याद दिलाता है राखी धागा
शुभचिंतक बहना के दर्द में कौन भाई कितना भागा
अब तो बस खुद अपने में ही खोया है इंसान यहाँ
क्या उम्मीद करें बहन के अश्क़ देख भाई जागा

रिश्तों का संसार यहाँ बस मतलब से ही होता है
स्वार्थ के धागों से इंसाँ अब रिश्ते यहाँ पिरोता है
कब कोइ काँटा चुभा बहन के, कब बहना के अश्क़ बहे
शायद ही कोइ भाई कभी इस दर्द से नयन भिगोता है

गोपालजी

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