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“छोड़ दे मेरा दामन” — हिन्दी
बापू ने हिंदुस्तान को तो आज़ादी दिला दी
पर हिंदी आज भी गुलाम है,
अंग्रेजी कलेण्डर के 365 दिनों में
सिर्फ 14 सितम्बर हिंदी के नाम है,
इतना तुच्छ कर दिया है हमने हिंदी को
कि पूरा दिन गुज़ारते है अंग्रेजी के संग
हिंदी के लिये बस थोड़ी सी शाम है,
पूरा संवाद लिखते है अंग्रेजी में
हिंदी के हस्ताक्षर से बस राम-राम है,
अंग्रेजों की पूरी फौज़ को एक बापू ने खदेड़ा
अंग्रेजी खदेड़ने में सारा प्रशासनिक अमला नाकाम है,
दरअसल अंग्रेजी भाषा तो शासन में ही जड़ें जमाए है
भारत के घरों में अंग्रेजी आज भी दूसरी ज़ुबान है,
इतने वर्षों में तो लोग दुलारी बिटिया को भी विदा कर देते है
पर शासन में आज भी अंग्रेजी घर के मुखिया के समान है,
क्या यह सब यूं ही चलता रहेगा,
शासन ढाढस बँधा कर हिंदी को यूं ही छलता रहेगा,
अब तो मायूस हो चुकी हिंदी भी कहती है अपने प्रेमी से
“छोड़ दे मेरा दामन”
वर्ना तू ज़िंदगी भर मेरी मोहब्बत में हाथ ही मलता रहेगा
गोपालजी
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