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गुजर गयी यह भी होली,

MyVision-With the Life and Religion
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बुझ गयी अंतिम चिंगारी भी
गुजर गयी यह भी होली,
सूना रहा मेरा घर-आँगन
गुजरी फिर सूनी होली,

बड़के की जोरू ने शायद, फिर बड़के को रोक लिया,
माँ होकर भी उसने माँ की, ममता को ही दर्द दिया,
बहते अश्कों ने यादों के रंगों की पुडिया घोली,
बुझ गयी अंतिम चिंगारी भी, गुजर गयी यह भी होली
,

एक बार मुड़कर न देखा, बड़के ने घर से जाकर,
तीज-त्यौहार, दिवाली-होली, टाल गया हमें बहलाकर,
जिगर का टुकड़ा हुआ पराया, जब आई घर में डोली,
बुझ गयी अंतिम चिंगारी भी, गुजर गयी यह भी होली,


आँखे इनकी होयें न गीली, चेहरे से मुस्काती हूँ,
औरों के घर की रौनक से, इनका ध्यान हटाती हूँ,
कितना दर्द छुपाये हैं ये, बता रही इनकी बोली,
बुझ गयी अंतिम चिंगारी भी, गुजर गयी यह भी होली,


काश कोख मेरी सूनी होती, तब न होता इतना गम,
अश्कों की तब झड़ी न होती, बस रहती थोड़ी आँख ही नम,
भर कर सारे रंग प्रभू क्यों, खाली की मेरी झोली,
बुझ गयी अंतिम चिंगारी भी, गुजर गयी यह भी होली,

बुझ गयी अंतिम चिंगारी भी
गुजर गयी यह भी होली,
सूना रहा मेरा घर-आँगन
गुजरी फिर सूनी होली
,

गोपालजी

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