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व्यक्ति की मानसिकता पर निर्भर करते हैं उसके कथन, उसकी सोंच । एक उदाहरण देता हूँ, एह्सास कीजिये के ऐसे शब्द महात्मा गाँधी के मुख से निकले होते, मैं समझता हूँ आप कल्पना में भी ऐसा स्वीकार नहीं कर पा रहे । कोई भी पुत्र अपने पिता द्वारा अपनी माँ के लिये कहे ऐसे शब्दों की कल्पना नहीं कर सकता । क्यों ? क्योंकि ऐसे शब्द बोलने वाले की गरिमा को प्रदर्शित करते है, उसकी मानसिकता का स्तर बताते हैं, हास्य और सभ्यता की पराकाष्ठा को लाँघते हैं, व्यक्तिगत तो हो सकते है पर सार्वजनिक रूप में स्वीकार नहीं होते ।
आइये बिमर्श करते हैं कि बीवी की स्थिति क्या है परिवार में, समाज में । एक पति के परिप्रेक्ष में वह शारीरिक आनंद ( मज़ा ) लेने देने के अतिरिक्त सुख दुख एवम मानसिक संवेदनाओं की भागीदार आर्धांगिनी, घर चलाने वाली ग्रहणी, बच्चों की माँ व विभिन्न सम्माननीय स्वरुपों मे स्थित है मात्र वासना व भोग का पात्र नहीं । मात्र वासना तो पुरुष अथवा स्त्री कहीं भी शांत कर सकते है और उसमें नया पुराना उनकी अपनी क्षमता पर निर्भर करता है । बीवी सिर्फ वासना के संवेग का मज़ा नहीं देती इसके अतिरिक्त ज़ीवन की विभिन्न संवेदनाओं का आनंद देती है, भावनाओ की भागीदार होती है । अगर बीवी का एक मज़ा क्षीण होता है तो स्त्री का दूसरा स्वरूप उस पर अधिकता से छाने लगता है । चूंकि समाज द्वारा ही बीवी को अन्य दायित्वों के लिए अधिकृत किया गया है, इसलिए उसके किसी स्वरूप पर कटाक्ष करने का समाज / पुरुष को अधिकार भी नहीं । पुरुष भी अपने अन्य कर्तव्यों के निर्वहन में थका हारा यदि शारीरिक रूप से बीवी को संतृप्त न कर सके, और ज्यादातर ऐसा होता भी है, तो मौज सम्बंधी यही वाक्य बीवी भी कह सकती है । परंतु नहीं, बीवी सारी जिंदगी ऐसी परिस्थितियों से समझौता कर लेती है और ज़ुबां पर उफ तक नही लाती । इसके बावजूद बीवी पर ही ऐसा कटाक्ष । शोभनीय नही, चिंतनशक्ति गंवा चुके लोगों के हो सकते हैं, असभ्यों के हो सकते है ।
उपसंहार : अत: ऐसे भ्रमित कथनों से प्रेरणा न लें । जो लोग व्यस्तताओं की वज़ह से थके हारे है या अय्याशियों में डूबे है, वही क्षणिक आनंद के लिये भटकते हैं, और नयी पुरानी का भेद रखते है । एक बार अपनी पुरानी बीवी से दिल लगा कर तो देखें, खुद की तरह उसे सँवारे, नवसृजन दें । भूल जायेंगे नयी, याद रहेगा तो सिर्फ और सिर्फ पुरानी बीवी से नित नया मधुमास ।
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