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चाह

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किसी युग्म की चाहत हमारे जन्म का कारण होती है। चाहत हमें जन्म से मिलती है । जबकि वह उम्र के साथ पनपती है या सक्रिय होने लगती है। विपरीत लिंग के प्रति हमारी चाह एक विशेष समय अवधि के बाद हमारे अंदर सक्रीय होती है या विपरीत लिंग का आकर्षण हमारे शारीर में एक विशेष उम्र तक निष्क्रिय अवस्था में बना रहता है।
ऐंसा दुनिया में कोई भी नहीं हुआ जिसे चाह न हो? चाह भौतिक या सांसारिक होगी और नहीं तो चाह अभौतिक या असांसारिक होगी परंतु चाह किसी न किसी रूप में सदैव भावनाओं के रूप में शारीर के अंदर बनीं रहेगी । उसे किसी भी समय समाप्त नहीं किया जा सकता । उसका केबल रूपांतरण होता है भौतिक से अभौतिक ।
बुद्धों के द्वारा केबल भावनात्मक चाह का रूपांतरण किया जाता है।चाह रूपांतरित हो सकती है चाह स्थिर हो सकती है चाह नियंत्रित एवं अनियंत्रित हो सकती है परंतु कभी पूरी तरह समाप्त नहीं होती है। चाह उस समय तक हमारे साथ है जब तक हमारे शारीर में प्राण वायु होती है ।जबकि हमारा पूरा मनोविज्ञान और दर्शन हमारी चाह से जन्मा है।

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