Menu
blogid : 2615 postid : 604888

बजरंग बाण – Bajrang Baan

gopalrajuarticles.webs.com
gopalrajuarticles.webs.com
  • 63 Posts
  • 78 Comments

बजरंग बाण

hanuman ji

( जो कोई साधक हनुमान जी की पूजा-आराधना किसी भी रूप में कर रहे हैं,
उसके बाद एक माला “सीता राम” की वह ज़रूर जप लिया करें, अन्यथा उनका
गुस्सा अकारण ही बढने लगेगा | यह अनेक उदाहरणों से अनुभूत हुआ है |
हनुमत साधनाओं में सबसे अधिक प्रभावशाली “बजरंग बाण” है |)

अपनी अचेतन शक्तियों को चेतन अथवा विकसित करने के लिए कल्याणकारी बजरंग बाण सर्वोच्च आध्यात्मिक प्रयोग है। मंगलमूर्ति मारुति नन्दन श्री रामदूत श्री हनुमान जी की पूजा – उपासना भारतवर्ष के कोने-कोने में प्रचलित है। हनुमान जी की सेवा-पूजा, मंत्र, जप अथवा स्तोत्र-पाठ मात्र से हो सर्वबाधा जन्य कष्टों से मुक्ति मिलने लगती है।

‘बजरंग बाण’ एक ऐसा विलक्षण चमत्कारी प्रयोग है जिसके स्मरण करने से निर्विघ्न दिन व्यतीत  होने लगते हैं। कैसा भी शारीरिक, मानसिक अथवा भौतिक कष्ट हो अर्थात् कोई भी मनोकामना, बजरंग बाण का संकल्प करने से पूर्ण होती है। बजरंग बाण अनुष्ठान के चमत्कारी प्रभाव से लाभ पाये अनेक व्यक्तियों के नाम एवं पते आज भी मेरे पास सुरक्षित है। मेरा भांजा हेमंत कुमार सक्सेना अपनी नौकरी के संबंध में अत्यंत चिंतित रहा। एक दिन उसको मैंने इस पाठ के बारे में बताया। पूर्ण निष्ठा से उसने अनुष्ठान पूरा किया। वास्तव में चमत्कार हुआ। छः माह के अंदर ही बैंक आफ बड़ौदा में वह प्रोबेशनरी अधिकारी के लिए वह चुन लिया गया। नवनीत शर्मा एक अन्य हताश लड़का था। अपनी उच्च शिक्षा को लेकर वह मानसिक तनाव में समय व्यतीत कर रहा था। उसने बजरंग बाण का अनुष्ठान पूर्ण किया। उसी वर्ष आशा के विपरीत सुल्तानपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के लिए उसका चयन हो गया।  आज वह एक सफल इलैक्ट्रॉनिक इंजीनियर है। मेरे निकट सहयोगी मुकेश कौशल के बहनोई दीपक जो कि बी.एस.एन.एल.में एस.डी.ओ. के पद पर कार्यरत हैं अकस्मात् भयंकर मानसिक अवसाद के रोगी हो गए। दो वर्ष तक चिकित्सा जगत के तमाम प्रयासों के बाद भी उनको लेश मात्र भी लाभ नहीं हुआ। अंततः उनकी पत्नी बीना ने श्रद्धा तथा संयम से बजरंग बाण का अनुष्ठान किया। उनको चमत्कारिक रुप से लाभ हुआ, मानसिक रुप से वह पूर्णतः स्वस्थ हो गए। आज वह एक सुखद वैवाहिक जीवन जी रहे हैं।

मेरी अपनी स्वयं की उन्नति वैज्ञानिक सहायक पद पर होना, मेरे तथा मेरे अन्य सहकर्मियों के लिए आश्चर्य था।  मेरी पदोन्नति होने की एक प्रतिशत भी संभावना नहीं थी। मैंने निष्ठा से बजरंग बाण का अनुष्ठान किया, मुझे सफलता मिली। मेरे सहित उपरोक्त तथा बजरंग बाण से लाभ पाए अनेक व्यक्ति इस बात को एक मत से स्वीकार करते है कि बजरंग बाण के अनुष्ठान में कार्य सिद्ध करवाने का चमत्कारी गुण निहित है।

ऐसे चमत्कारी प्रयोग को यहां मैं पाठकों के लाभार्थ प्रस्तुत कर रहा हॅू। एक बात और स्पष्ट कर दॅू कि बाजार में, यहॉ तक कि कल्याण के हनुमान अंक में उपलब्ध बजरंग बाण शुद्ध नहीं है, त्रुटि पूर्ण है। शुद्ध, प्रामाणिक बजरंग बाण मुझे परमपूज्य गुरु जी महाराज सद्श्री अद्वैताचार्य और पूजनीय बुआ जी अनन्त श्री विभूषिता कुमारी अद्वैत कला नमन, अद्वैतागार, बशीरगंज, बहराइच की कृपा से उपलब्ध हुआ है।

अपने इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए मंगल अथवा शनिवार का दिन चुन लें। हनुमान जी का एक चित्र अथवा मूर्ति जप करते समय सामने रख लें। रक्त वर्ण ऊनी अथवा कुशासन बैठने के लिए प्रयोग करें। अनुष्ठान के लिए शुद्ध स्थान तथा शान्त वातावरण आवश्यक है। घर में यदि यह सुलभ न हो तो कहीं एकान्त स्थान अथवा एकान्त में स्थित हनुमान जी के मन्दिर में प्रयोग करें। हनुमान जी के अनुष्ठान अथवा पूजा आदि में दीपदान का विशेष महत्व होता है। इसमें अपने कार्य के अनुरुप अलग-अलग पदाथरें का दिया तथा बत्ती बनाई जाती है। उसी के अनुरुप घी, तेल आदि का प्रयोग किया जाता है। हमारा यहॉ उदद्ेश्य अपनी भौतिक मनोकामनाओं की पूर्ति से है। इसके लिए आप पांच अनाजों (गेहॅू, चावल, मॅूग, उड़द और काले तिल) को अनुष्ठान से पूर्व एक-एक मुट्ठी प्रमाण में लेकर शुद्ध गंगाजल में भिगों दें। अनुष्ठान वाले दिन इन अनाजों को पीसकर उनका दीया बनाऍ। बत्ती के लिए अपनी लम्बाई के बराबर कलावे का एक तार लें अथवा कच्चे एक सूत को लम्बाई के बराबर काटकर लाल रंग में रंग लें। इस धागे को पॉच बार मोड़ लें। इस प्रकार के धागे की बत्ती को सुगन्धित तिल के तेल में डालकर प्रयोग करें। समस्त पूजा काल में यह दिया जलता रहना चाहिए। इसके लिए अपना कोई सहायक रख लें, जो दीये में तेल का ध्यान रखे। हनुमान जी के लिए गूगुल की धूनी की भी व्यवस्था रखें। यह कार्य भी सहायक पर छोड़ दें।

अब शुद्ध उच्चारण से हनुमान जी की छवि पर ध्यान केन्द्रित करके बजरंग बाण का जप प्रारम्भ करिए। श्री राम से लेकर सिद्ध करैं हनुमान तक एक बैठक में ही इसकी एक माला जप करनी हे अर्थात श्री बजरंग बाण के 108 पाठ एक बैठक में पूरे करने हैं। माला फेरने में कठिनाई आती हो तो गूगुल की 108 छोटी-छोटी गोलियॉ पहले से बनाकर रख लें। एक पाठ पूरा होते ही एक गोली हवन में छोड़ दें। इसमें आपको सुविधा रहेगी और गूगुल की सुगन्धि भी वातावरण में व्याप्त रहेगी। जप के प्रारम्भ में यह संकल्प अवश्य ले लें कि आपका कार्य जब भी होगा हनुमान जी के लिए आप नियमित कुछ भी करते रहेंगे। दुर्भाग्यवश आपके कार्य में विलम्ब हो भी जाए तो अविश्वास करके हताश कदापि न हों। कुछ समय बाद एक बार प्रयोग पुनः दोहरा दें। कोई कारण नहीं आपका कार्य सिद्ध न हो।

सर्वोच्च आध्यात्मिक प्रयोग

देकर जिस घर में बजरंग बाण का नियमित पाठ  होता है वहॉ  दुर्भाग्य, दारिद्र, भूत-प्रेत का प्रकोप और असाध्य शारीरिक कष्ट आ ही नहीं पाते। समयाभाव में जो व्यक्ति नित्य पाठ करने में असमर्थ हों, उन्हें कम से कम प्रत्येक मंगलवार को यह जप अवश्य करना चाहिए। सांसारिक चिन्ताओं से उत्पन्न हुआ अनिन्द्रा रोग, शारीरिक कष्ट अथवा कोई अन्य संकट, बच्चों की बदनजर, अकारण उपजा भय आदि से मुक्ति पाने के लिए बजरंग बाण का नित्य प्रयोग अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होता है। सुमंगल, कीर्ति, वैभव अथवा कोई महत्वपूर्ण कार्य अवरोधित हो गया हो तो बजरंग बाण के प्रयोग से शुभ समय  पुनः पक्ष में होने लगता है।

बजरंग बाण ध्यानं

श्री राम

अतुलित बलधामं हेम शैलाभदेहं।

दनुज वन कृषानुं, ज्ञानिनामग्रगण्यम्।।

सकल गुण निधानं वानराणामधीशं।

रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।

श्री हनुमते नमः

श्री गुरुदेव भगवान की जय

श्री बजरंग बाण

(दोहा)

निश्चय  प्रेम  प्रतीति  ते, विनय करैं सनमान।

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।

(चौपाई)

जय  हनुमन्त सन्त-हितकारी।   सुनि  लीजै प्रभु अरज हमारी।।

जन के  काज विलम्ब न कीजे।  आतुर  दौरि महा सुख दीजै।।

जैसे   कूदि  सिन्धु  बहि पारा।   सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।

आगे   जाय   लंकिनी   रोका।  मारेहु लात गई सुर लोका।।

जाय  विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा।।

बाग  उजारि  सिन्धु  मंह बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा।।

अक्षय  कुमार  को  मारि  संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।।

लाह  समान  लंक  जरि  गई।  जै जै धुनि सुर पुर में भई।।

अब  विलंब केहि कारण स्वामी।  कृपा  करहु प्रभु अन्तर्यामी।।

जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होई दःुख करहु निपाता।।

जै गिरधर जै जै सुख सागर।  सुर  समूह समरथ भट नागर।।

ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले।  वैरहिं  मारु  बज्र सम कीलै।।

गदा  बज्र  तै बैरिहीं  मारौ।  महाराज  निज  दास  उबारों।।

सुनि  हंकार हुंकार  दै धावो।  बज्र गदा हनि विलंब न लावो।।

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि-उर शीसा।।

सत्य  होहु  हरि सत्य पाय कै।  राम  दूत धरु मारु धाई कै।।

जै हनुमंत  अनन्त अगाधा।  दुःख पावत जन  केहि अपराधा।।

पूजा  जप  तप  नेम  अचारा।  नहिं  जानत  है  दास तुम्हारा।।

वन उपवन जल-थल गृह माही।  तुम्हरे  बल  हम  डरपत नाहीं।।

पॉय  परौं  पर  जोरि  मनावौं।   अपने  काज लागि गुण गावौं।।

जै  अंजनी   कुमार  बलवंता।   शंकर   स्वयं   वीर  हनुमंता।।

बदन  कराल  दनुज  कुल घालक।  भूत पिशाच प्रेत उर शालक।।

भूत  प्रेत  पिशाच  निशाचर।  अग्नि  बैताल  वीर  मारी  मर।।

इन्हहिं  मारु, तोहिं शपथ राम की।  राखु  नाथ मर्याद नाम की।।

जनक सुता पति  दास  कहाओ।  ताकि  शपथ विलंब न लाओ।।

जय जय जय ध्वनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा।।

शरण शरण परि जोरि मनावौ। यहि अवसर अब केहि गोहरावौ।।

उठु  उठु चल  तोहि  राम  दोहाई।  पॉय परों कर जोरि मनाई।।

ॐ चं चं चं चं चपल चलंता।  ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता।।

ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल।  ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।।

अपने  जन  को कस न उबारौ।  सुमिरत  होत  आनंद हमारौ।।

ताते   विनती  करौं  पुकारी।  हरहु  सकल दुःख विपति हमारी।।

ऐसौ  बल  प्रभाव प्रभु  तोरा।  कस  न हरहु दुःख संकट मोरा।।

हे बजरंग, बाण सम धावौ।   मेटि  सकल  दुःख  दरस दिखावौ।।

हे  कपिराज    काज कब ऐहौ।  अवसर  चूकि  अंत  पछतैहौ।।

जनकी लाज  जात  ऐहि  बारा।   धावहु  हे कपि पवन कुमारा।।

जयति  जयति  जै जै हनुमाना।  जयति जयति गुण ज्ञान निधाना।।

जयति  जयति जै जै कपिराई।  जयति  जयति  जै  जै सुखदाई।।

जयति जयति जै राम पियारे।  जयति  जयति  जै  सिया  दुलारे।।

जयति जयति मुद मंगलदाता। जयति जयति जय त्रिभुवन विख्याता।।

ऐहि  प्रकार  गावत  गुण  शेषा।   पावत  पार  नहीं  लवलेशा।।

राम  रुप   सर्वत्र  समाना।    देखत   रहत   सदा   हर्षाना।।

विधि शारदा सहित  दिन  राति।   गावत कपि के गुन बहु भॅाति।।

तुम सम नहीं जगत बलवाना।  करि  विचार  देखउं विधि  नाना।।

यह  जिय जानि शरण तब आई।  ताते  विनय  करौं चित लाई।।

सुनि  कपि आरत वचन हमारे।  मेटहु  सकल  दुःख  भ्रम भारे।।

ऐहि प्रकार  विनती कपि केरी।  जो  जन  करे  लहै  सुख ढेरि।।

याके   पढ़त  वीर  हनुमाना।   धावत   वॉण  तुल्य  बलवाना।।

मेटत  आए  दुःख क्षण माहीं।   दै  दर्शन  रघुपति  ढिग जाहीं।।

पाठ करै बजरंग बाण  की।   हनुमत   रक्षा  करै   प्राण  की।।

डीठ, मूठ, टोनादिक नासै।   पर – कृत  यंत्र  मंत्र  नहिं त्रासे।।

भैरवादि  सुर   करै  मिताई।   आयुस   मानि  करै  सेवकाई।।

प्रण  कर  पाठ  करें  मन  लाई।  अल्प – मृत्युग्रह दोष नसाई।।

आवृत  ग्यारह  प्रति  दिन  जापै।  ताकि  छाह काल नहिं चापै।।

दै  गूगुल  की  धूप  हमेशा।   करै   पाठ  तन  मिटै  कलेषा।।

यह  बजरंग  बाण जेहि मारे।  ताहि  कहौ  फिर  कौन  उबारै।।

शत्रु  समूह  मिटै  सब  आपै।   देखत  ताहि  सुरासुर  कॉपै।।

तेज   प्रताप   बुद्धि  अधिकाई।  रहै  सदा   कपिराज  सहाई।।

(दोहा)

प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै,  सदा धरैं उर ध्यान।

तेहि के कारज तुरत ही,  सिद्ध करैं हनुमान।।

मानसश्री गोपाल राजू (वैज्ञानिक)

gopalrajuarticles.webs.com

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh