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शराब, ट्रांसपोर्ट, केबल, टीवी, रीयल एस्टेट, रेता और बजरी, ऐसा कौन सा व्यवसाय है जिस पर बादल परिवार या इनके रिश्तेदारों का कब्जा नहीं है। आम आदमी पार्टी बादल के द्वारा सत्ता का खुलेआम दुरूपयोग करते हुए कथित तौर पर अवैध तरीके से खड़े किए गए अर्थिक साम्राज्य का आकलन कर सत्ता में आते ही बादलों से इसे छीन कर बेरोजगारों को रोजगार दिलाने का मार्ग तलाश रही है। आम आदमी पार्टी के संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केज़रीवाल इस बात का संकेत पहले ही यह कहकर एक सभा में दे चुके हैं कि बादलों की बसें छीन कर बेरोजगारों को रोजगार दिया जाएगा व भ्रष्टाचारियों को सलाखों के पीछे डाला जाएगा। पंजाब के हितचिंतक व राजनीति के जानकार मानते हैं कि लगातार दो बार सरकार बना लेने के बाद तो बदलों को जैसे लूट का लाइसेंस ही मिल गया था। पिछले नौ वर्षों में इस परिवार ने वो सब हासिल कर लिया है जो इससे पहले के लंबे राजनीतिक काल में नहीं कर सके थे। श्री बादल के बेटे सुखबीर सिंह बादल, पुत्रवधु हरसिमरत कौर बादल, सुखबीर सिंह बादल के साले बिक्रम सिंह मजीठिया, इनके पिता सत्यजीत सिंह मजीठिया, बादल साहिब के जंवाई आदेश प्रताप सिंह कैरों, उनकी पत्नी प्रणीत कौर और चंद बहुत ही करीबी रिश्तेदारों का पंजाब में लगभग हर व्यवसाय में बड़ा हिस्सा हिस्सा है। ऐसे में आम आदमी की तरक्की क्या होगी, अंदाजा लगाना सहज नहीं है।
शराब के धंधे को ही लें, 2002 से पहले बड़ी संख्या में लोग नीलामी में हिस्सा लेते थे। उन लोगों को भी ठेके मिल जाते थे जिनकी पहुंच ज्यादा नहीं थी। जिला स्तर पर ठेकों की नीलामी होती थी। हर रैवैन्यु सर्कल में 12 ठेके खोलने तय थे। सरकार एक सर्कल से सात करोड़ की आय अर्जित करती थी। बोली के लिए मुकाबला सख्त होता था लेकिन हजारों कंपनियां उसमें हिस्सा लेती थीं। इस प्रणाली पर सबसे पहले कुठाराघात किया कैप्टन अमरिंदर सिंह ने। 2002 में सत्ता में आते ही उन्होंने अपने खासम खास पोंटी चड्ढा को पंजाब के ठेकों का एकाधिकार थमा दिया। अब आगे ठेके लेने के लिए मारामारी आरंभ हो गई। थोक में चंडीगढ़ से शराब खरीदने पर पांबदी आयद कर दी गई, विवाह, शादी और पार्टियों में, मैरिज पैलेसिज पर यकायक चैकिंग होने लगी, हालात ये हो गए कि शराब का धंधा आम आदमी की पकड़ से बाहर हो गया। सरकार की आय तो बढ़ी लेकिन आम आदमी की झोली खाली हो गई।
2007 में जब अकाली-भाजपा सरकार वजूद में आई तो कुछ अर्सा तो शराब के व्यापार को पटरी पर लाने की कवायद हुई लेकिन फिर वही स्थिति हो गई। थोक व्यापार करने वाले ज्यादातर ट्रेडर्स अकाली पार्टी से जुड़े हैं। कहा जाता है कि इस वक्त सिर्फ पांच परिवारों और उनके अपने आदमियों के कब्जे में है 80 फीसदी शराब का धंधा है। बिक्रम सिंह मजीठिया की सराया इंडस्ट्रीज के साथ इन पांच में से तीन के सीधे संबंध हैं। सराया इंडस्ट्रीज शराब और ऊर्जा के क्षेत्र में व्यवसाय करती है। फरीद कोट से अकाली विधायक दीप मल्होत्रा, शराब निर्माता कंपनी ओएसिस ग्रुप के प्रमुख हैं। इसी तरह अबोहर से शिरोमणि अकाली दल के प्रभारी शिव लाल डोडा गगन वाईन्स कंपनी के मालिक हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है इस व्यापार में आम आदमी को क्या हिस्सा मिला होगा।
अब बात रेता बजरी की रेता और बजरी के व्यवसाय से जुड़े हजारों लोग इस कारण बर्बाद हो गए क्योंकि एक बाहरी व्यक्ति ने अचानक आकर इस पर अपना अधिपत्य जमा लिया। बारिश के दौरान केवल रावी नदी से आने वाले पत्थर से ही ज्यादातर बजरी बनाने का धंधा होता आया है। 2007 से पहले दरिया के किनारे के पत्थरों की जगह की बाकायदा नीलामी होती थी। तब 600-700 रुपए में एक ट्राली पत्थर मिल जाती थी। 2010 में जैसे ही केंद्र ने पर्यावरण विभाग की मंजूरी अनिवार्य कर दी तो राज्य सरकार की तो मानो लाटरी निकल आई। नीलामियां बंद कर दी गईं। कुछ हाथो में कंट्रोल चला गया और अकेले रोपड़ ज़िले के ही 400 क्रशर बंद हो गए। बोल्डर और बजरी की कीमत आसमान छूने लगी और आम आदमी के हाथ से ये व्यवसाय भी जाता रहा। पंजाब में हो रहे निर्माण कार्य बुरी तरह प्रभावित हुए। यहां तक कि लोग निजी मकान बनाने में भी असमर्थ हो गए।
अकालियों के इस व्यवसाय के कब्जे की एक ही प्रमाण काफी है। पठानकोट के क्षेत्र में पत्थरों से लदे हर ट्रक की पांच सौ रुपए प्रति टन की पर्ची काटी जाती है। इसके लिए रसीद कुलदीप सिंह मक्कड़ की ओर से दी जाती है और वो पर्ची होती है जम्मू कश्मीर राज्य की। ये मक्कड़ अकाली विधायक सरबजीत सिंह मक्कड़ के भाई हैं जो नाजायज उगाही करते हैं। जिन लोगों ने ठेके पर जमीन खरीदी वो प्रति ट्रक 600 रुपया कमाई करते हैं और ये अवैध टैक्स वसूलने वाले 1500 प्रति ट्रक। करीब एक हजार ट्रक रोजाना इस क्षेत्र से गुजरते हैं, आमदनी का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे में आम आदमी ये कारोबार करता होगा, सोचना भी गलत है।
पंजाब में क्रेशर में आने वाले पत्थर को जब जे एंड के का बताया जाता है तो इससे राज्य सरकार को कोई रॉयल्टी नहीं मिलती, सारा लाभ पत्थर गैंग वाले ले जाते हैं। 2012 में पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट में एक पटीशन दाखिल हई थी जिसमें दावा किया गया था कि इस धंधे से सालाना 10,000 करोड़ की आय होती है जो निजी हाथों में चली जाती है। यदि बाकायदा नीलामी हो तो पैसा सरकार का हो सकता है।
जब से अकाली सरकार सत्ता में आई है तब से लोगों को अपने मकान बनाने कठिन हो गए हैं। पिछले नौ साल से संताप भोग रहे लोग बुरी तरह प्रताड़ित हैं। दर असल रेता और बजरी के व्यवसाय पर दबंग लोगों का कब्जा होकर रह गया है। सरकारी खाते में इसका लाभ मात्र 10 फीसदी जाता है जबकि 90 फीसदी लाभ ठेकेदार ले जाते हंै।
केबल व्यवसाय चैनलों का प्रसारण अपनी केबल पर इसलिए नहीं किया ताकि ये कहीं बादल परिवार के टीवी चैनलों को चुनौती न दे डालें। अब क्योंकि केबल मालिक तो बादल परिवार से जुड़े हुए हैं, ऐसे में किसी चैनल का चलना या नहीं चलना भी इन्हीं के हाथ है। 1990 में जब ये व्यवसाय वजूद में आया तो करीब 600-700 घरों में ही केबल कनैक्शन थे। बाद में ये व्यसाय खूब पनपा। लुधियाना तो इसका केंद्र ही बन गया।
2007 में जब अकाली भाजपा सरकार सत्ता में आई तो केबल व्यवसाय का धुरा ही बदल गया। बादल ने डरा धमका कर पंजाब के छोटे-छोटे केबल आपरेटरों को धमका कर व पुलिस व भाड़े के गुण्ड़ों का भय दिया कर केबल पर पूरी तरह कब्जा कर दिया। डीटीएच आया नहीं था। एक नया केबल नैटवर्क फास्टवे ट्रांसमिशन प्राइवेट लिमिटिड बादल की छत्रछाया में इतनी तेजी से उभरा कि देखते ही देखते इनका इस व्यवसाय पर एकाधिकार हो गया। फास्टवे अपने केबल आप्रेटर से 125 रुपए प्रति कनैक्शन लेता है जबकि आपे्रटर उपभोक्ता से 270 रुपए प्रति कनैक्शन। ये हाल सारे पंजाब का है।
फास्टवे फर्म का मालिक क्योंकि बादल परिवार का करीबी है इसलिए वो ऐसे चैनल अपने नैटवर्क पर चलने ही नहीं देता जो कि बादल परिवार के टीवी चैनलों के प्रतिद्वंद्वी हों या फिर बादल सरकार की लूट का सच जनता के समक्ष रखने की हिमाकत करता हो। इसका सबसे घातक रूप पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान देखा गया जिसके चलते अकाली-भाजपा सरकार फिर से वजूद में आ पाई। लगातार सरकार का प्रचार करने के चलते मतदाता भी भ्रमित हुए और सरकारी पैसा चैनल को मिला, प्रचार के लिए।
बता दें कि फास्टवे का बादल परिवार से सीधा कनैक्शन है। 2010 में योगेश शाह और जगजीत सिंह कोहली फास्टवे के डायरेक्टर्स के रुप में तैनात हुए। ये दोनों सुखबीर सिंह बादल की दो मीडिया कंपनियों गुरबाज मीडिया और जी-नेक्सट मीडिया में भी डॉयरेक्टर हैं। ये वही ग्रुप है जो पीटीसी व अन्य चैनल चलाता है। गुरबाज के पास जी-नेक्सट का 99.98 फीसदी हिस्सा रहा है जबकि ऑरबिट रिजार्टस की भी गुरबाज मीडिया में 99.8 फीसदी हिस्सेदारी रही है उधर सुखबीर बादल के ऑरबिट रिजार्ट में 67.32 फीसदी शेयर रहे हैं।
केवल शराब के धंधे का ही उदाहरण काफी है कि यहां अब सरकारी मिलीभुगत से आधी शराब नाजायज तौर पर बिकती है। जाहिर है यदि सरकार दावा करती है कि इस बार 8000 करोड़ की आय
एक्साईज से हुई है तो जाहिर है इतना ही पैसा नाजायज तौर पर व्यवसाइयों की जेब में चला गया जो कि सरकार का हो सकता था।
आम आदमी का तो जो हाल होना था वो हो गया लेकिन कंपनी मालिकों के बादल परिवार के साथ संबंधों के चलते सरकार को जो टैक्स मिलना था वो भी गया। सरकार निरंतर घाटे में जा रही है और डेढ़ लाख के कर्ज की किश्त चुकाने के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि एक ही परिवार द्वारा सत्ता का दुरूपयोग करते हुए हथियाए गए धंधों को सरकार कानूनी तरीके से बादलों से छीन कर युवाओं को रोजगार देने लगे तो पंजाब के हजारों युवाओं को सरकार बिना किस अतिरिक्त अर्थिक बोझ के रोजगार मुहैय्या करवा सकती है।
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