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एक घाव पे मरहम तो दुसरे कि तैयारी…..

गोपाल रामचंद्र व्यास
गोपाल रामचंद्र व्यास
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बहुत दिनों के इंतज़ार के बाद केंद्रीय बज़ट कल संसद में पेश हुआ.. उम्मीद के अनुसार इस बार भी निराशा ही हाथ लगी.. इस बज़ट ने जनता के घाव पे मरहम का काम तो किया साथ ही साथ दुसरे घाव की तैयारी भी शुरू कर दी.. आयकर में 20000 की सालन छुट ने रहत दी तो वही रसोई गैस पर सबसिडी हटा के हिसाब बराबर कर दिया.. हद तो तब हो गई जब जीवन बीमा पर सर्विस टैक्स लगा दिया ओर तो ओर हॉस्पिटल के AC में रूम में इलाज करवाने पर टैक्स लगेगा… होटल में खाना खाने पर भी टैक्स होगा..
कुल मिला के ये बज़ट भी रेल बज़ट की तरह चुनाव बज़ट था… दो तीन राज्यों को छोड़ के बाकि के राज्यों में सुखा ही रहा.. देश के प्रधानमत्री जो स्वयं अर्थशास्त्री है उन्हें तो एक कम से कम इस बज़ट को देश का बज़ट बनाने पे जोर देना चाहिए था..लगता है वो भी मजबूर है… राजनीती जो चलानी है… पुरे बज़ट में रोज़गार बढ़ाने, भ्रष्टाचार मिटाने, काले धन को वापस लेन व आम आदमी का पैसा उस तक ज़रूर पहुचे इस ओर कोई सार्थक कदम नहीं दिखा…
महंगाई पर सरकार का तर्क की आम आदमी की कमाई बढ़ी है जिसके कारण वो खरीदारी कर रहा है जिससे दामो में वृधि हुई है, माना आप का तर्क सही है पर उस अनाज का क्या जो गोदामों की कमी के चलते पड़ा पड़ा सड़ गया, यदि उसे सरकार बाज़ार में ला देती तो दामो में कमी स्वतः ही आ जाती…
हमारे देश में अनाज, दूध, फल व सब्जिओ की पैदावार की कोई कमी नहीं है कमी है तो सही रूप से बाजारीकरण की जिसके आभाव के चलते किसान व आम जनता दोनों को नुकसान उठाना पड़ रहा है.. आज भी हमारे देश की धरती लाखो करोडो टन अनाज हर साल पैदा करती है लेकिन हम ही उसका सही रूप से इस्तेमाल नहीं कर पाते…..
अंत में यही कहना चाहूँगा की जब तक देश और जनता के बारे में सोचा नहीं जायेगा तब तक ऐसा ही राजनीती से प्रेरित बज़ट मिलता रहेगा….

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