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क्रिकेट वर्ल्ड कप 2011 के आरम्भ होने से पहले हर तरफ एक ही टीम के जीतने का बोल बाला था और वो टीम कोई और नहीं बल्कि हमारी टीम ब्लू इंडिया थी. हो क्यों नहीं रिकॉर्ड भी अच्छा था टीम को चुनने वाले इससे बेलेन्स टीम कह रहे थे.. जिस टीम में सचिन, सहवाग, गंभीर, ज़हीर युवी व हरभजन जैसे खिलाडी हो उस टीम का वर्ल्ड कप जीतना बनता है और वो तब जब ये भारतीय उप महाद्वीप में हो. जहाँ हमारे खिलाडी बचपन से खेलते हुवे बड़े हुए है.. लेकिन अब तक के टीम के प्रदर्शन ने किसी को भी इतना प्रभावित नहीं किया की इस टीम को वर्ल्ड कप विन्नर माना जा सके.. कप्तान अपनी जिद्द के चलते जिसे चाहे उसे खिलते है चाहे वो कितना भी बुरा खेले. बेटिंग पॉवर प्ले में तो ना तो हमारी टीम रन बनती है और ना ही सामने वाली टीम के रन रोक पाती है… कुछ खिलाडी तो शुरू से ही चोटिल नज़र आते है और जो फिट है वो पानी पिलाते नज़र आते है.. एक दो बल्लेबाजों को छोड़ दे तो बाकि ने निराश करने के सिवा कुछ नहीं किया. 150 की आबादी वाले देश में लगता है सभी सचिन बनाना चाहते है कोई कपिल या ज़हीर नहीं . आयरलैंड, बंगलादेश, नीदरलैंड जैसी टीमो का प्रदर्शन उम्मीद से बेहतर रहा.. सही मायने में उन्होने कप जीत लिया.. जुनून कही नज़र नहीं आ रहा है जैसा 2003 के समय दिखाई दे रहा था.. इसकी वजह यह भी हो सकती है कि हम में विश्वास बहुत ज्यादा है या हम सही रूप से अपनी ताक़त को पहचान नहीं पा रहे है..
यदि किसी भी तरह हमारी टीम वर्ल्ड कप जीत जाती भी है तो क्या सही मायने में ये हमारी जीत होगी.. नहीं यह तो दूसरी टीमो के साथ बेमानी होगी..जीत का मज़ा तो तब हो जब हमारी टीम दूसरी टीमो के प्रदर्शन से बेहतर प्रदर्शन करे.. जैसा 1983 में कपिल देव की टीम ने किया था या रिक्की पोंटिंग की टीम ने दो बार कप जीत में दिखाया था.. कपिल देव वाली टीम ने जब कप जीता तो किसी को भी जीत का भरोसा नहीं था सिवाय टीम के..लेकिन आज की टीम में टीम के अलावा बाकि सभी को जीत का भरोसा है.. ऐसे में तो यही जूमला बनता है कागज के शेर घर में भी ढेर… मेहनत किस्मत को भी बदल सकती है..हमेशा किश्मत के सहारे नहीं रहा जा सकता..
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