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बज़ट की राजनीति कब तक…

गोपाल रामचंद्र व्यास
गोपाल रामचंद्र व्यास
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हमारे देश में बज़ट का राजनीतिकरण हो गया है.. जब भी सरकारों को लगता है कि चुनाव आरहे है तो लोक लुभावन बज़ट पेश कर दिया जाता है. सरकारों का मानना है की ऐसा करने से जनता में उनकी साख बढ जाएगी और आने वाले चुनावो में फिर सत्ता मिल जाएगी.. ऐसा हो भी रहा है. पर मुझे समझ में यह नहीं आता कि ऐन चुनाव से पहले ही ऐसा बज़ट क्यों बनाया जाता है. बाकि के सालो में सरकारों को जनता की याद नहीं आती. उस समय बड़ा कठिन बज़ट बनाया जाता है, और यह दलील दी जाती है कि ऐसा करना ज़रूरी था देश को घटा हो रहा है.. तो क्या लोक लुभावन बज़ट के समय देश को फायदा होता है… पांच साल में से जनता चार साल तक पिसती है और एक साल में थोडा खुश कर दिया जाता है.. हम इस लोक लुभावन बज़ट के चक्कर में पूरानी व आनेवाली परेशानी भूल जाते है… खुश होते है, जय कार करते है पर भूल जाते है ये की जब वे जीत कर आयेंगे तो हमे फिर चक्की के दो पाटो में पीसेंगे…. अच्छा, लोक लुभावन बजट में होता कुछ भी नहीं है एक हाथ देते है और दो हाथो से ले लेते है… जो दिया जाता है उसे बड़ा चड़ा के दिखाया जाता है लेकिन लेने का जिक्र तक नहीं होता…. बज़ट किसी भी देश के अर्थव्यवस्था की रीड की हड्डी होती है अगर इसी हड्डी को राजनीति लाभ के लिए तोडा मरोड़ा जायेगा तो किस प्रकार देश तरक्की करेगा…साफ सुथरा कार्य करो, ईमानदारी से जिम्मेदारी निभाओ तथा स्वयं को पुरे देश का मनो न की किसी एक प्रान्त का तो कभी भी बज़ट तो लोक लुभावन बनाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. वह स्वतः ही जन जन को प्रिय होगा .

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