गोपाल रामचंद्र व्यास
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सुख की चादर छोटी क्यों हैं
तन दुखो का बड़ा क्यों हैं
पैर जो भीतर समेट लू तो
हाथ बाहर निकल जाते है
जो हाथ अन्दर खीच लू तो पैर बाहर को जाते हैं
बस जी रहा हूँ कूबड़ कर, सिमट कर
बरसों से एक ही सवाल लेकर
रात परेशानियों की लम्बी क्यों हैं
सुख की चादर छोटी क्यों हैं
तन दुखो का बड़ा क्यों हैं
हाथो पैरो की खीचा तानी में
उम्र से पहले ढ़लती जवानी में
दफ़न ख्वाहिशों की यादो में रवानी पर
अपनो की आँखों में, छुपे सवालों पर
दिल बस यहीं गवाही को मजबूर हैं
नहीं अंधेर तो घर भगवन के देर क्यों हैं
सुख की चादर छोटी क्यों हैं
तन दुखो का बड़ा क्यों हैं
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