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दंगे ,सियासत और आम आदमी

मन के मोती
मन के मोती
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आप सभी को हमारी तरफ से नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ,
एक बार फिर से मुज्जफरनगर दंगों का भूत राहत शिविरों में मर रहे बच्चों एवं प्रशासन के द्वारा उन शिविरों को खाली कराने की खबरों के बीच जीवंत हो गया है! सियासत करने वाले लोगों के लिए बैठे बैठाये एक मुद्दा हाथ लगा है ! हर कोई खुद को दंगा पीड़ितों का सच्चा हमदर्द दिखने के लिए शिविरों का चक्कर काट रहा है ! दूसरी तरफ जो दंगा पीड़ित हैं वो पहले से ही कंगाल हो के शिविरों में रहने के लिए विवश हैं तो इस कड़ाके कि ठण्ड में उन्हें शिविरों से जबरन हटाया जा रहा है ये कह कर कि अब उन्हें इसकी आवश्यकता नही है ! समाजवाद की अलख जगाने का दावा करने वाले लोग जो सत्ता में हैं क्या इतने संवेदनहीन हो चले हैं कि उन्हें आम आदमी की परेशानियों का पता ही न लग पाये ?
क्यूँ होते हैं ये दंगे ? मानवता इन दंगों के भयावह अनुभवों से कब सबक लेगी ? इस सबके बीच सियासतदानों को अपनी भूमिका का निर्वहन किस प्रकार करना चाहिए ? ये कुछ यक्ष प्रश्न हैं जिनके उत्तर हमें अपनी भावी पीढ़ी के भविष्य को दंगों की भयावह दर्द से बचाने के लिए हमे खोजने ही होंगे !
जब भी दंगे होते हैं वहाँ के राजनेतावों को उन्हें शांत करने के प्रयास करने चाहिए क्यूंकि वो आम जनता के प्रतिनिधि हैं जनता उनकी बातों को सुनती है और ऐसा करके वो सैकड़ों युवकों के प्राण को बचा सकते हैं हजारों स्त्रियों के मान सम्मान को बचा सकते हैं किन्तु वास्तव में ऐसा नही होता है , राजनेता दंगों के समय अपने वोट बैंक को बढ़ाने के लिए दंगों कि आग में साम्प्रदायिकता का घी डाल कर अपनी राजनितिक खिचड़ी पकाते हैं !
यही मुज्जफरनगर दंगों में हुआ दो या तीन किशोरों कि मौत को एक सांप्रदायिक रंग दे दिया गया और उन मौतों के लिए जो लोग उत्तरदायी थे उन्हें दण्डित करने में प्रशासन कि भेदपूर्ण नीति ने समाज में ध्रुवीकरण को जन्म दिया ऐसे में कुछ स्वार्थी लोगों ने पंचायतें की तथा प्रशासन ने एक विशेष वर्ग के लोगों को बचने में लगी रही और इन परिस्थियों में दंगों का माहौल तैयार हो गया जिसमें सैकड़ों लोग असमय ही काल के गाल में समा गये और लाखों लोगों को अपने ही देश में निर्वासित रहके शरणार्थी शिविरों में रहना पड़ा ! उसके बाद हमारे राजनेतावों का एक बेहद क्रूर चेहरा सामने आया , जिसे देखो वो अपनी राजनीतिक रोटी सेकने में लग गया ! कुछ ने कहा कि हिन्दू खतरे में हैं कुछ ने एक विशेष राज्य के मुख्यमंत्री एवं उनके विशिष्ट सहयोगी को ही बिना किसी जाँच के इन दंगों का सूत्रधार मान लिया वहीँ कुछ नए लोग जो अभी अभी ईमानदारी की राजनीती करने राजनीती में आये हैं वो भी पीछे नही रहे और उन्होंने भी बिना किसी जाँच के उन्ही लोगों को कसूरवार मान लिया ! एक राष्ट्रीय पार्टी के भविष्य के प्रधानमंत्री ने तो दंगा पीड़ित युवकों को पाकिस्तानी एजेंसी आई एस आई से जोड़ने का सनसनीखेज आरोप मढ़ दिया ! आरोप प्रत्यारोप तो खूब हुए , दंगा पीड़ित लोगों को अपने वोट बैंक में बदलने कि नापाक कोशिशें भी हुई लेकिन दंगा पीड़ितों को राहत किसी ने नही दिया सत्ता पक्ष ने तो एक विशेष धर्म के लोगों को ही दंगा राहत कोष जारी करने का फरमान सुना दिया जिसे न्यायालय ने सबके लिए करवाया !
ये दंगे सबक होने चाहिए आम जनता के लिए , अफवाहों पर ध्यान मत दीजिये जिन्हे ये सियासतदान अपनी निहित स्वार्थों कि पूर्ति के लिए फैलते हैं ! हम इनकी बातों में आकर धर्म के आधार पर बांटकर मार काट करते हैं और बाद में हमे मिलता क्या है ? ये निर्वासित जीवन और सशंकित माहौल अपनी भावी पीढ़ी के लिए ! आईये हम सब मिलकर संकल्प लें कि हम इन राजनेतावों के कहने पर हिन्दू मुस्लिम नहीं करेंगे हम सिर्फ भारतीय हैं और भारत के विकास को ही हम प्राथमिकता देंगे और भारत तभी विकसित होगा जब हम विकसित होंगे ! हम इन सियासतदानों को मजबूर कर देंगे कि वो दंगों की राजनीति से तौबा कर लें !

जय हिन्द !

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