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तथागत बुद्ध

मन के मोती
मन के मोती
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“सुना है एक तथागत बुद्ध आये हैं ! हम सब को मुक्त करने ?”
“अर्थात ? हमे मृत्यु के बाद उस परमपिता परमेश्वर के परम धाम में वास मिलेगा ?”
“अरे कैसा परमेश्वर ? कैसा परमधाम? “
“फिर ?”
“वो तथागत हैं , उनके अनुसार स्वर्ग-नर्क , ईश्वर परमेश्वर जैसी चीजें नही ! उसमे बस आत्मा ,,नही नही वो भी नही.. बस मन की बात है ! ये जो ब्राह्मणों ने हमे जीव -ब्रह्म जैसे पिचालों में बांधे रक्खा है वो सब जंजाल नही ! यहाँ दुःख के कारकभूत तत्व से मुक्ति की बात है !”
“वाह ! तथागत बुद्ध की शरण में हूँ ! धम्म की शरण में हूँ ! संघ की शरण में हूँ !”

 

 

 

बुद्ध जी तो तथागत हैं ! उच्चतम भावों को सरल शब्दों में कह गये ! उन्हें व्याख्यावों की आवश्यकता भी नहींं थी किन्तु उनके निर्वाण के बाद उनके शिष्यों ने एक पंथ चलाया जिसमें उनके उपदेशों को क्लिष्ट कर उसे उपनिषदों की सूक्ष्म दृष्टि की कसौटी पर रक्खे जाने योग्य बनाया गया ! और फिर कई तथागत हुए और होंगे !

 

 

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“बालकों की तरह हठ मत करो! बुद्ध चरित्र पर संदेह मत करो ! वो तथागत हैं ! “
“बुद्ध पूर्ण हैं , शुद्ध हैं सत्यस्वरूप हैं ! उन पर संदेह हो ही नही सकता ! किन्तु संदेह है उनके शिष्यों पर ! “
“कहना क्या चाहते हो तुम ?”

 

 

“अगर मैं गलत नही तो बुद्ध की भी शिक्षा दीक्षा यथासमय ही हुई होगी ! वो २८ वर्ष के थे जब महाभिनिष्क्रमण हुआ! फिर भी उन्हें २८वें वर्ष में जरा, मृत्यु और व्याधि के विषय में प्रकाश हुआ! जो स्वयंप्रकाश हैं ,उन्हें चन्ना से प्रेरणा मिली ? क्या महज तीन दिनों के चिन्तन की परिणिति महाभिनिष्क्रमण होगी ! वो जन्म से २८वें वर्ष में प्रवेश तक सांसारिकता से अनभिज्ञ रहे ? क्या वो पूर्ण स्वस्थ थे कभी व्याधि ने नही घेरा ? उनके पिता और उनकी मौसी प्रजापति क्या वृद्धत्व को प्राप्त नही हुए थे ? उनके मन में अपने मांं के प्रति जिज्ञासा नही हुई जो मृत्यु को नही जान पाए थे ?”

 

 

“तुम शंकालु और हठी हो ! तुममें अश्रद्धा है ! तुम निर्वाण से भटक चुके हो !”
“अश्रद्धा बौद्धानुगामी के लिए हेय कब से हो गयी ? निर्वाण संघ से कैसे सम्बद्ध हो गया ? मुमुक्षु संहिताबद्ध भी हो सकता है भला ? तुम तो वेदान्तियों के अचूक अस्त्र के प्रयोग में निपुण हो चले हो ! श्रद्धा तो वेदान्तियों की रक्षापंक्ति में होती है ! एक बौद्ध के लिए इसका अनुगमन त्याज्य है ! सिद्धार्थ से बुद्ध तक की यात्रा अश्रद्धा पर ही तो आश्रित रही है , संदेह ही तो वो जल था जिससे वो पल्लव बढ़ा ,जिसने कई वैदान्तिक लतावों का समूल उच्छेद किया ! किन्तु हाय रे दुर्भाग्य उन बुद्ध के शिष्यों ने भी उस पल्लव को श्रद्धा और विश्वास से सिंचित किया जिसके लिए अश्रद्धा और संदेह चाहिए था ! अस्तु वो पल्लव भी कमजोर हो गया और एक वैदान्तिक लता ही उससे पुष्ट हुई ! “

 

 

 

 

“सुनो मुझे विवाद में मत खींचो , वेदान्तियोंं की बात छोड़ाे मुझे बुद्ध पर किये गये तुम्हारे आक्षेप से आपत्ति है ! तुमने महाभिनिष्क्रमण पर वाद किया है ! एक तरफ कहते हो बुद्ध पूर्ण हैं, सत्यस्वरूप हैं, निष्काम हैं तिस पर महाभिनिष्क्रमण पर संदेह करते हो , बस इस पर मतभेद है !”
“महाभिनिष्क्रमण को न मानने का प्रश्न ही नही मित्र! एक यात्रा बिना निष्क्रमण के आरंभ ही कैसे होगी ? “
“फिर ?”

 

 

“महाभिनिष्क्रमण की जो कहानी उनके अनुयायियों ने सिर्फ वैयक्तिक महत्ता के लिए बनायीं उस पर आपत्ति है ! बुद्ध का ह्रदय कमजोर नही कि एक रोगी , वृद्ध और एक मृत और एक सन्यासी को देख कर विचलित हो उठे ! जो सत्यस्थ हो वो कायरों की भांति अपनी सोयी हुई पत्नी का त्याग नहींं कर सकता है जिसने सबके आंसू पोछने का सोचा हो वो अपने स्वजनों को ही क्यूंं रुलाएगा !”
“अच्छे प्रश्न हैं किन्तु ध्यातव्य रहे वो जब निकले तो बुद्ध नही थे , उस समय वो सिद्धार्थ थे !”
“बुद्ध बनने के लिए सिद्धार्थ भी कम उपयोगी नहींं, एक साधारण व्यक्ति बुद्ध नहींं बन सकता है !”

 

 

“हमारे बुद्ध ने ज्ञानार्जन में पात्रता की शर्त नही रक्खी ! अभी तो अश्रद्धा और श्रद्धा पर व्याख्यान दे रहे थे , बुद्ध की ज्ञान-यात्रा की बात कह रहे थे ! सिद्धार्थ से बुद्ध होने में अश्रद्धा के योगदान पर चर्चा कर रहे थे , फिर आप से ही सिद्धार्थ को असाधारण कहते हो , सुनो तुम अपने वैदान्तिक सिद्धांत यहांं न थोपो ! सिद्धार्थ साधारण ही थे ! उन्हें जब सत्य का पता चला वो बुद्ध हुए ! और ये पात्रता , और असाधारण हमारे शब्दकोश में नही ! ज्ञान को तुम्हारे वेदान्तियों ने सीमित किया होगा हमारे बुद्ध ने नही !”

 

 

 

“अहा ! एक पंथ को प्रचारित करने की क्या युक्ति है ? एक तरफ ज्ञानार्जन के लिए पात्रता की अनिवार्यता न होने का दंभ और इसी आधार पर वेदों और वेदान्तियो का उपहास ! दूसरी तरफ बुद्ध से पहले बोधिसत्व की कहानियां और जातक कथाएं ! एक तरफ आत्मा और परमात्मा की अवधारणा का बुद्धत्व में निषेध और दूसरी तरफ बुद्ध के पूर्व जन्म की कथाएं ! दस बलों की प्राप्ति बुद्धत्व के लिए आवश्यक हैं और फिर पात्रता का निषेध भी है? अब सच कहो क्या तुमने बुद्ध या सिद्धार्थ को जाना है !”
“देखो तुम हमे तर्कों में मत उलझावो , चलो माना कि सिद्धार्थ भी हैं असाधारण ! इसका उनके महाभिनिष्क्रमण से क्या सम्बन्ध ?”

 

 

 

 

 

 

नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं, इससे संस्‍थान का कोई लेना-देना नहीं है। 

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