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अहंकार बनाम आत्मसम्मान

social and spiritual
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मनोवैज्ञानिकों के संदर्भ में, “अहंकार”(Ego) हमारे चेतन मन की अवधारणा  है जो किसी भी व्यक्ति में उसके अहम भाव की पहचान है लेकिन मेरे विचार में अहंकार हमारी वो  प्रवृत्ति है जो हमारी गलतियों की स्वीकारोक्ति करने से हमें रोकती है। यह जानते हुए भी कि हम गलत हैं हम उसे सही सिद्ध करने के लिए अनुचित तर्क ढूंदते रहते हैं और उस पर अटल रहते हैं।  दूसरी ओर ‘आत्म सम्मान’’  हमारी बुनियादी और तार्किक सिद्धांतों पर अटल रहने  की प्रवृत्ति है । आम तौर पर अहंकारयुक्त व्यक्ति अहंकार को ही आत्म सम्मान समझने लगता है जो सर्वथा गलत है। दो मुख्य परिस्थितियाँ हमें अहंकार अथवा आत्म सम्मान कि और प्रेरित करती हैं। पहली यह कि आप ‘गलत’ हैं लेकिन आप उस का सामना नहीं कर सकते हैं यह स्थिति अहंकार  को जन्म देती है दूसरे जब आप ठीक हैं लेकिन लोग उसको स्वीकार नहीं करना चाहते इस स्थिति से आत्म सम्मान की भावना उत्पन्न होती है। अहंकार असत्य का रास्ता है जबकि आत्म सम्मान सत्य का। अहंकार युक्त व्यक्ति को अपने हितैषी भी दुश्मन लगने लगते हैं।

यहाँ तक कि वो अपने माता पिता, गुरुजनों एवं बड़ों का अभिवादन  करने में भी संकोच करने लगता है। ‘सारी’ और ‘थैंक्स’ जैसे शब्द उसकी वाणी से लुप्त हो जाते हैं। अहंकार युक्त व्यक्ति सदा दूसरों को उसके अवगुणो से पहचानता है जबकि आत्म सम्मान से युक्त व्यक्ति दूसरों को उसके गुणो से पहचानता है। इन दिनों परिवारों में, पड़ोस में, कार्यस्थल में अथवा मित्रमंडल में अहंकार कटु संबन्धों का मुख्य कारण है। इससे दूसरों को नीचा दिखाने की प्रवृति का विकास होता है। यदि कोई हमें उचित सत्कार नहीं देता तो हम बिना कारण जाने ही उससे ईर्ष्या करने लगते हैं तथा अपने मन की शांति को भंग कर देते हैं। हालांकि त्याग की भावना अहंकार और आत्मसम्मान दोनों से श्रेष्ठ है तथापि आज के युग मे त्याग एवं आत्म सम्मान की  मिश्रित भावना अधिक उन्नतिदायक एवं सुखदायक है।

अहंकार कमजोर व्यक्तियों का दिशा निर्धारण करता है जबकि बुद्धिमान व्यक्ति अहंकार पर अपना प्रभुत्व रखते हैं। अहंकार उस ऐसिड के समान है जो उस बर्तन को भी जला देता है जिस में वो स्वयं रखा होता है। ऐसे कई पति-पत्नी, मित्रगण हैं जो अहंकार अथवा आत्म सम्मान की भावना से ग्रस्त हो कर अलग अलग हो चुके हैं जबकि उनमे वास्तविक प्रेम अभी भी जीवित है। यहां तक कि ऐसे लोग भी हैं जिनसे यह पूछा गया कि वो अलग क्यों हैं तो उनका कहना था कि वो स्वयं नहीं जानते। महान कवि गुलज़ार साहिब ने कितने सुंदर शब्दों में इस की अभिव्यक्ति की है “उन्हें यह ज़िद थी के हम बुलाते, हमें यह उम्मीद वो पुकारें”।  अपने अहंकार को जीतने से हम जिंदगी का सबसे बड़ा युद्ध जीत जाते हैं। सामान्यता हम दूसरों को अपनी सच्ची दृष्टि से नहीं अपितु अहम भाव से ग्रस्त दृष्टि से देखते हैं जिसके परिणाम स्वरूप हमारी आँखों पर अहंकार का पर्दा ड़ल जाता है। यदि हम सभी प्राणियों को अहंकार के पर्दे को जलाकर सच्ची दृष्टि से देखें तो सभी आत्मसम्मान के साथ खुशी खुशी जी सकते हैं।

 

 

 

 

 

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