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श्री भगवान जी से वार्तालाप भाग 2

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श्री भगवान जी से वार्तालाप

भाग 2

सुबह लगभग 3 बजे का समय रहा होगा मैं अर्ध निद्रा की अवस्था में था कि चिर-परिचित आवाज़ सुनाई दी। क्या पूछना चाहते हो पुत्र!

गोविंद: प्रणाम भगवन, सर्वप्रथम तो मैं यह जानना चाहता हूँ कि क्या कलियुग में आप का साक्षात्कार अत्यंत कठिन हैं?

श्री भगवान जी: नहीं पुत्र, कलियुग में तो यह सर्वाधिक आसान हैं।

गोविंद: लेकिन सतयुग में तो सभी लोग सदाचारी और आप के भक्त होते हैं।

श्री भगवान जी: इसीलिए तो सतयुग में मुझे पाना कठिन है।

गोविंद: मैं समझा नहीं भगवन

श्री भगवान जी: सतयुग में भक्ति और प्रेम का कॉम्पीटीशन बहुत अधिक होता है और कलियुग में बहुत कम। तुम तो जानते ही हो की कमजोर विद्यार्थियों की कक्षा में प्रथम आना आसान होता है।

गोविंद: फिर भी किसी विरले को ही आप के दर्शन कलियुग में सुलभ हैं।

श्री भगवान जी: वत्स, वास्तव में कलियुग में लोग मुझे नहीं मुझसे कुछ चाहते हैं। जो लोग शुद्ध मन से मुझे चाहते हैं उनसे तो मैं कभी भी दूर नहीं हूँ।

गोविंद: भगवन, कई लोगों का मत है कि जल्दी ही प्रलय होने वाली है और आप का अवतार भी होने वाला है।

श्री भगवान जी: यह दोनों ही बातें असत्य हैं वत्स! कलयुग की  आयु 4,32000 वर्ष है। और अभी तो मात्र 6000 वर्ष ही हुए हैं। मैं तो वैसे भी युग के अंत में ही धरती पर मनुष्य रूप में आता हूँ।

गोविंद: भगवन, जब पुरुष जन्म को नारी की अपेक्षा श्रेष्ठ माना जाता है तो फिर आप ने नारी को पुरुष से अधिक सुंदर क्यों बनाया?

श्री भगवान जी: मैंने तो पुरुष को ही अधिक सुंदर बनाया है। यह तो पुरुष की  दृष्टि की गुणवत्ता है कि उसे स्त्री अधिक सुंदर दिखाई देती है। वरना पुरुष को रिझाने कि लिए स्त्री 16 शृंगार क्यों करती?

गोविंद: भगवन, यह सोलह शृंगारों में से सब से उत्तम शृंगार कौन सा माना जाता है?

श्री भगवान जी: वास्तव में तो सात्विक मन और चेहरे पर मुस्कराहट ही पुरुष व स्त्री दोनों के लिए  सब से बड़ा शृंगार है।

गोविंद: आप सत्य कहते हैं प्रभु ; भगवन कृपा कर बताएं कि इस युग में जिस पर पूर्ण विश्वास अथवा प्रेम हो वही धोखा क्यों दे  देता है?

श्री भगवान जी: बड़ा विचित्र प्रश्न कर रहे हो वत्स; धोखा तो दे ही वही सकता है जिस पर  तुम पूर्ण विश्वास करते हो अथवा प्रेम करते हो। लेकिन मुझ से प्रेम करके तुम्हें कभी धोखा नहीं होगा।

गोविंद: फिर सच्चे मित्र को कहाँ ढूँढा जाऐ प्रभु?

श्री भगवान जी: सुनो पुत्र; यदि आध्यात्मवाद में देखना चाहो  तो अपनी सभी इच्छाऍ त्याग दो और सभी प्राणियों में खुद को देखो तो सभी तुम्हारे मित्र होंगे अन्यथा यदि भौतिकवाद में देखना चाहो तो माता, पिता एवं गुरु को छोड़ कर कोई अन्य तुम्हारा मित्र तभी तक होगा जब तक तुम भी उस के किसी काम आ सकते हो।

गोविंद: आप के चरणों में फिर से कोटी कोटी नमन प्रभु! आप मुझे अति  महत्वपूर्ण ज्ञान दे रहे हैं। प्रभु आप के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ता है। लेकिन मैंने कई पति-पत्नी में  देखा है कि पति तो आप का भक्त, सात्विक एवं सदाचारी है परंतु इसके विपरीत पत्नी अत्यंत क्रोधी ……………………………………..

श्री भगवान जी: मैं समझ गया वत्स; ऐसा तब होता है जब पति को पिछले जन्म के पापों का और पत्नी को पिछले जन्म के पुण्यों का फल समान समय पर मिल रहा हो।

गोविंद: कभी कभी ऐसा प्रतीत होता है भगवान कि यह युग नारी प्रधान युग बन रहा है।

श्री भगवान जी: नारी प्रधान तो बनेगा परंतु एक सीमा तक। नारी की पहचान फिर भी या तो पुरुष से होगी अथवा पुरुषुत्व से होगी। पंडित की पत्नी किसी भी जाती की हो पंडिताइन कहलाएगी। मास्टर की पत्नी कितनी भी कम पड़ी लिखी हो मास्टरनी कहलाएगी इस के विपरीत ऐसा नहीं होगा कि किसी महिला अध्यापिका के पति को लोग मास्टर कहने लगें।

गोविंद: परंतु भगवन……………

श्री भगवान जी: अब हमें चलना होगा पुत्र;

गोविंद: प्रणाम भगवन, और इसी के साथ स्वप्न भंग हो गया।

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