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चीन, एक ऐसा देश जहां हर सुविधा और व्यवस्था सरकार के नियंत्रण में है। सरकार के खिलाफ आवाज उठाने पर पाबंदी है, विदेशी मीडिया और कम्पनियों को भी छूट नहीं है और दूसरी तरफ हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, निजता की सुरक्षा, आरक्षण और संरक्षण के प्रति आए दिन असुरक्षित महसूस करते रहते हैं। लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की आड़ में देश के विकास को गति प्रदान करने वाले ठोस और दूरदर्शी कदमों का रोकना यही दर्शाता है कि विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था होने की हमारी ताकत इस व्यवस्था में बैठे गैरजिम्मेदार और स्वार्थी लोगों के कारण आज एक बड़ी कमजोरी बन चुकी है।
चीन जिसने अपनी संस्कृति, ज्ञान और भाषा को आधुनिकता के साथ जोड़े रखा और हम अपने महान पूर्वजों द्वारा प्रतिपादित इससे भी कहीं अधिक उन्नत और उत्कृष्ट संस्कृति, भाषा, ज्ञान, विज्ञान, तकनीक और प्रौद्योगिकी का विशेष वर्ग के तुष्टिकरण की पूर्ति के लिए तिरस्कार करते रहे और कर रहे हैं। विश्व भर में वर्षों तक चली खर्चीली खोजों का मूल स्वरूप जब प्राचीन भारतीय ग्रंथों और धरोहरों में नजर आता है तब लगता है कि अपनी प्राचीन शैली, मौलिकता और सामर्थ्य से विलग होकर, अन्य देशों के अंधानुकरण और इन पर बढ़ती हमारी तकनीकी निर्भरता के कारण कितना कुछ हमारे हाथों से निकल चुका है।
चीन, जो अपनी सस्ती तकनीक के बल पर हर क्षेत्र में अग्रणी होना चाहता है, अपने उत्पादों की गुणवत्ता के स्तर को आज तक नहीं सुधार पाया, कोई देश हर क्षेत्र में माहिर नहीं हो सकता खासकर चीन जैसा देश जहां वैश्विक वर्चस्व की लालसा में अनुसंधान का स्तर विकृतता और अमानवीयता की सीमाएं लांघता जा रहा है। लेकिन हम अपने पुरातन ज्ञान, विज्ञान, तकनीक और सांस्कृतिक मूल्य जो हमारी धरोहरों और परम्पराओं के रूप में देश के हर हिस्से में कदम कदम पर विद्यमान हैं, को अपनाकर पुनः सोने की चिड़िया और विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठित हो सकते हैं, बस जरूरत है देश की उन्नति के लिए अपने क्षुद्र राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक और सामाजिक स्वार्थों को तिलांजलि देने की। हमारे सामूहिक सामर्थ्य और निस्वार्थ योगदान से सक्षम, सशक्त और स्वस्थ भारत की अवधारणा साकार हो सकेगी।
डिस्क्लेमर : उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण जंक्शन किसी भी दावे या आंकड़े की पुष्टि नहीं करता है।
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