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अनजाने शहर में चला हो मैं |
न जाने किन वादियों में ,
मन में छोटे छोटे सपने लिए,
अनजाने शहर में चला हो मैं
खेला जहाँ गाव के हरियाली के नीचे ,
आज उसे छोड़ निकल पड़ा एक सफ़र में ,
मन में छोटे छोटे सपने लिए,
अनजाने शहर में चला हो मैं,
नींद ली जब मैं उस माँ के गोद में ,
उसके लुरियो की धुन आज कान में बजे ,
आज उससे भी छोड़ निकल पड़ा एक सफ़र में ,
मन में छोटे छोटे सपने लिए ,
अनजाने शहर में चला हो मैं ,
खाली हाथ के कलाई में जब बंधी बहिन की राखी,
तो आज सुनी पड़ी है हाथ की कलाई ,
आज उसे छोड़ निकल पड़ा एक सफ़र में ,
मन में छोटे छोटे सपने लिए,
अनजाने शहर में चला हो मैं,
जब होती लड़ाई तो साथ देते थे मेरे भाई,
तो आज अकेले पड़ रह गया हो मैं,
आज उसे छोड़ निकल पड़ा एक सफ़र में ,
मन में छोटे छोटे सपने लिए
अनजाने शहर में चला हो मैं,
यूही रह पर चलते चलते रह मंजिल मिल जायेगे |
.. दूर कही छूर पर ..रास्ते बिखर जायेगे ||
पर पास जाने पर एक नज़र आयेगे |
पर यूही रह पर चलते चलते मंजिल मिल जायेगे ||
मन में छोटे छोटे सपने लिए
अनजाने शहर में चला हो मैं ||
शालिनी शर्मा
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