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बात कुछ ऐसी है की हम दिन
में 10 फिल्मो में kissing scene, bed
scene,
छुप के मिलना, प्यार
ही जिंदगी है, घर से भागना,
40 आइटम सोंग सुनके|
फिर very very sexy, sexy बन रहा है
इंडिया, its
a naughty world, परफ्यूम लगाओ
लडकी पटाओ, अंडरवियर
पहनो लडकी पटाओ, मोबाइल
लो लडकी पटाओ
जैसी चीजे देख के|
फिर न्यूज़ में कौन है सबसे हॉट,
फलानी का टॉप गिरा,
इसकी पेंटी खोयी,
ये करेगी इमरान के साथ सबसे
लम्बा किस,
कौन सा खान है सबसे रोमांटिक,
फलानी करेगी फलानी फिल्म
में अंग प्रदर्शन|
उसके बाद अखबार में: मदरसे के
शिक्षक
को बच्ची के शोषण में सुनाई 5
जूतों की सजा, कोर्ट ने इस्लामिक
कानून
का हवाला दे फूफा से करवाई
नाबालिग
की शादी, चर्च में शोषण,
बाबा की पुडिया का चमत्कार,
नजर
तेरी बुरी पर्दा में करूं,
नेताजी ने कहा लडको से
गलतियाँ हो जाती हैं, अफसर ने
बोला तेरे
घर से तो नही थी|
युवाओ का हसी मजे करने को candle
march| aajtak का एकदम
सही बलात्कार का नाटकीय
रूपांतरण|
कानून के publicity स्टंट के लिए कोई
वकील केस लडके
उसकी तारीखे बढ़ाएगा| फिर
जुवेनाइल जेल में
टीवी देखेगा और
मेग्गी खायेगा|
फिर देश की 90% मुर्ख जनता भूल
जाएगी और अगले हफ्ते फिर से
दो 12-
14 साल
की गुडिया लटकी पायी जाएंगी|
मसला सरल है, बलात्कार के मूल
कारणों को ढूँढो, फिर
उसे ही हटा दो|
पर ऐसा करने से फिल्म इंडस्ट्री बंद
जो हो जाएगी, जो खुद युवाओ
को मंजूर
नही|
मालूम तो सबको है पर सब चुप हैं|
चुप रहेंगे जब तक खुद क…..क्या नारी सिर्फ भोग की वस्तु है ? ===== ————— ————— ————— ————- जब वोडाफोन के एक विज्ञापन में दो पैसो मे लड़की पटाने की बात की जाती है तब कौन ताली बजाता है? हर विज्ञापन ने अध्- नंगी नारी दिखा कर ये विज्ञापन एजेंसिया / कम्पनियाँ क्या सन्देश देना चाहते है इस पर कितने चेनल बहस करेंगे ? पेन्टी हो या पेन्ट हो, कॉलगेट या पेप्सोडेंट हो, साबुन या डिटरजेण्ट हो , कोई भी विज्ञापन हो, सब में ये छरहरे बदन वाली छोरियो के अधनंगे बदन को परोसना क्या नारीत्व के साथ बलात्कार नहीं है? फिल्म को चलाने के लिए आईटम सॉन्ग के नाम पर लड़कियो को जिस तरह मटकवाया जाता है या यू कहे लगभग आधा नंगा करके उसके अंग प्रत्यंग को फोकस के साथ दिखाया जाता है वो स्त्रीयत्व के साथ बलात्कार करना नहीं है क्या? पत्रिकाए हो या अखबार सबमे आधी नंगी लड़कियो के फोटो किसके लिए और क्या सिखाने के लिए भरपूर मात्र मे छापे जाते है? ये स्त्रीयत्व का बलात्कार नहीं है क्या? दिन रात , टीवी हो या पेपर , फिल्मे हो या सीरियल, लगातार स्त्रीयत्व का बलात्कार होते देखने वाले, और उस पर खुश होने वाले, उस का समर्थन करने वाले क्या बलात्कारी नहीं है ? संस्कृति के साथ , मर्यादाओ के साथ, संस्कारो के साथ, लज्जा के साथ जो ये सब किया जा रहा है वो बलात्कार नहीं है क्या? निरंतर हो रहे नारीत्व के बलात्कार के समर्थको को नारी के बलात्कार पर शर्म आना उसी तरह है जैसे मांस खाने वाला , लहसुन प्याज पर नाक सिकोडे जिस देश में”आजा तेरी _ मारू , तेरे सर से _ _ का भूत उतारू”जैसे गाने,और इसी तरह का नंगा नाच फैलाने वाले भांड युवाओ के”आइडल”बन रहे हो वहा बलात्कार और छेडछाड़ की घटनाए नहीं तो और क्या बढ़ेगा? कुल मिलाकर मेरे कहने का तात्पर्य ये है की जब तक हम नारी जाती को नारित्य का दर्जा नहीं देंगे तब तक महिला विकास या महिला शास्क्तिकरण की बाते बेमानी लगती है । जो भी किशोर देख रहे हैं, वही वो जीवन में करेंगे ।।
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