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कैग से रिश्ता बनाने के बजाय केंद्र के फैसलों की समीक्षा करे कांग्रेस
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खबर है कि केंद्र और कैग एक दूसरे के नजदीक आ रहे हैं। दूर भी कभी नहीं थे। हां, यह माना जा सकता है कि रिश्ते सामान्य नहीं थे। कांग्रेस अब सामान्य होते रिश्तों से प्रफुल्लित है। पर, शायद वह यह भूल ही गई है कि कांग्रेस की सेहत कैग से अधिक केंद्र ने बिगाडी है। उसके एक मंत्री कह भी चुके हैं कि बोफोर्स की तरह लोग हाल के घोटालों को भी भूल जाएंगे। यानी कैग की बोतल से निकले जिन्न समय के थपेडों से मौत के घाट पहुंच जाएंगे। ऐसा हो भी सकता है, क्योंकि कांग्रेस को इसका अधिक अनुभव है। कैग के सकारात्मक बयान इसपर मरहम का काम कर रहे है। पर, कांग्रेस केंद्र के फैसलों का क्या करेगी। घोटालों के धुंध और अपने अध्यक्ष के दामाद की नकारात्मक चर्चा के बवंडर में वह भले ही महंगाई की धार कुंद होती देख रही हो, लेकिन ऐसा है नहीं। उसे समर्थन देने वाली मुख्य दो पार्टियां सपा और बसपा भी महंगाई की चर्चा न करके यही सोच रही हैं, लेकिन आम आदमी घोटालों से अधिक महंगाई के आंसू रो रहा है। कभी राशन का दाम रूला रहा है तो कभी सब्जी के भाव आंसू की धारा बहा रहे हैं। रही सही कसर गैस ने पूरी कर दी है। गैस में लगी महंगाई की आग कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में जला कर रख देगी। इसका अंदाजा उसे नहीं हो सकता है, क्योंकि उसके ज्यादतर प्रबंधक गैस से जुडे घरेलू बजट के हिसाब किताब से कई पीढी दूर हैं। उन्हें यह पता नहीं है कि गैस एक मात्र पहली समस्या है, जिसके लिए संयुक्त परिवार न चाहते हुए भी कांगज में बंटवारे कर रहे हैं। छह सिलेंडर में साल भर काम चलने का अर्थशास्त्र प्रस्तुत करने वाली कांग्रेस को यह मालूम नहीं है कि उसने जरूरत के सिलेंडर को आधा कर दिया है। आम आदमी की जेब पर छह से सात हजार रुपये का अतिरिक्त बोझ डाल दिया है। कई ऐसे परिवार है जिनकी इतनी ही आमदनी है और उसी में उनका घर चलता है। कांग्रेस इस तथ्य को अगर नकारती है तो गैस एजेंसियों पर सुबह से शाम तक लाइन लगा अपनी बारी का इंतजार करने वाले उपभोक्ताओं से मिल सकती है, वोट की दिशा समझ में आ जाएगी। गैस का दाम बढाने और सब्सीडी खत्म करने को समर्थन दे कांग्रेस ने केंद्र सरकार की बेधर्मी नीतियों के समीक्षकों में आधी आबादी को भी जोड लिया है। सामान्य परिवार की यह आबादी अक्सर इस तरह के बहस से दूर रहा करती थी, लेकिन अब घर का बटुआ छोटा पडता देख वह भी इस तरह के फैसलों को कटघरे में खडा कर वोट की राजनीति में सक्रिय भूमिका को तैयार होने लगी है। इस बार लोकसभा चुनाव में अगर महिलओं का वोट बढता है तो गैस की महंगाई को धन्यवाद देना होगा और कांग्रेस की अर्थी निकलती है जो तय मानी जा रही है तो कैग को नहीं केंद्र सरकार की नीतियों का लोहा मानना होगा, जो इस देश में पूंजी आधारित अर्थव्यवस्था से गरीबों की अर्थी निकालने में लगी है। एक बात और सपा और बसपा ब्राह़ण और मुस्लिम जैसी जातियों की हमदर्दी का चाहे जितना जिक्र करें और इसके बल पर महंगाई को पीछे छोडने का प्रयास करें, महंगाई के फैसले से अपने को अलग बताएं, लेकिन यह झुठला नहीं सकते कि महंगाई को मजबूत बनाने वाली केंद्र सरकार उन्ही के समर्थन के बल पर मनमानी निर्णय ले रही है। ऐसे में कैग नहीं कांग्रेस को केंद्र सरकार की गरीब विरोधी नीतियां और सपा बसपा को कांग्रेसी गठजोड जमीन दिखाएगा। महंगाई की आग और गैस का आकाल इन तीनों की सियासी जमीन को बंजर बना देगा। मुलायम, मायावती और राहुल गांधी के पीएम बनने के सपनों को चकनाचूर होते देर नहीं लगेगी। क्योंकि दिल्ली और मीडिया में भले ही कैग और उसकी रिपोर्ट सूर्खी बटोर रही है, लेकिन देहात और कस्बो में अब भी सइयां तो बहुते कमात है, महांगाई डायन खाए जात है जैसे गाने सूर पकडे हुए हैं। संकेत देने लगे हैं कि अब महंगाई की भूख आम आदमी की कमाई मात्र से नहीं, बल्कि कांग्रेस व उसकी सहयोगी पार्टियों की सियासी कमाई से ही शांत होने वाली है। ऐसे में कैग से सामन्य होते रिश्तों पर प्रसन्न हो कर महंगाई को नजरंदाज करने वाली कांग्रेस को रोने के लिए आंसू भी नहीं मिलेने वाला।
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