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सुना है लोहिया जी नाराज हैं। नाराजगी का कारण उनके चेले मुलायम के पूत अखिलेश हैं। मगर, सही कौन है। निश्चित तौर पर लोहिया जी। यह मैं नहीं, आस्टेलियन अखिलेश के इंडियन विरोधी कह रहे हैं। मैं तो यूपी के सीएम अखिलेश को इतिहास पुरूष मान चुका हूं। क्योंकि, जिस समाजवाद को उनके धरती पुत्र पिता मुलायम सिंह नहीं ला सके, उनके गुरू लोहिया जी नहीं ला सके, उसको अखिलेश भैया ने स्थापित कर दिखाया। एक दिन के लिए ही सही। ऐसे में लोहिया जी का नाराज होना लाजिमी है। लोहिया जी इस दुनिया में नहीं हैं। ऐसे में नाराज ही हो सकते हैं। आंदोलन नहीं कर सकते। हां, उनका झण्डा-बैनर मात्र ढो कर सत्ता सुख का सपना देखने वाले उनके नाम के साथ नाराजगी शब्द को जोड रहे हैं। अखिलेश भैया के क्रांतिकारी कदम को बेवजह रोक रहे हैं।
बेवजह इसलिए कह रहा हूं कि मेरी नजर में पहली बार सामजवाद का सपना साकार होता दिख रहा है। गांव में नहीं सही विधानसभा में ही सही। सभी विधायकों को बीस-बीस लाख की गाडी मिलने जा रही है। यानी सभी एक समान। यही तो है समाजवाद। कुछ इसे गलत मान रहे हैं। पर, किसी के मानने में अखिलेश भैया का क्या दोष है। यह कि वह शहर से विदेश तक पढे-बढे। यह कि वह रोटी-कपडा-मकान जैसी छोटी चीजों में समय नहीं गवाना चाहते। समय गवाना इसलिए कह रहा हूं कि लोहिया जी और मुलायम सालों तक यही किए। दोनो गांव में पैदा हुए। सो, गांव से समाजवाद की शुरूआत चाहते थे। वहां के लिए रोटी-कपडा और मकान बडी चीज है। सो, उसी की रट लगाते रहे। अखिलेश भैया अब गवंई सोच कहां से लाएं। पिता से उधार भी लें तो लोग ताने मारेंगे। कहेंगे, विदेश में कुछ पढा नहीं, मात्र मस्ती किया। ऐसे में अखिलेश भैया ने शहर से समाजवाद की ठानी। शहरों में भी लखनऊ जैसे शहर से।
अब एक सवाल आप से। अगर लखनऊ शहर में समाजवाद के लोकार्पण के लिए स्थान सुझाने को कहा जाए तो आप क्या कहेंगे। निश्चित तौर पर विधानसभा। क्योंकि, यह प्रदेश का हर्ट स्थल है। सो, अखिलेश भैया ने यहीं से समाजवाद के लोकार्पण की ठानी। कोई भी व्यक्ति अपने पडोस से ही कोई शुरूआत करता है। विधानसभा में भैया के पडोसी विधायक लोग हैं। सो, उन्होंने उनके पास ही समाजवाद के लोकार्पण का फीता काटा। 20-20 लाख की गाडी के साथ ढेरों पुरस्कार दिया। कुछ पडोसी जले तो जलें। उन्हें तो गाडी नहीं अखिलेश भैया की बरबादी चाहिए। अब कोई अपने को बरबाद कर दूसरों को खुश रखने की जोखिम क्यो उठाएगा।
खैर, हल्ला मचाने वालों ने खूब हल्ला मचाया। इसके बाद भी मुझे यही लगा समाजवाद आया। यह अलग बात है कि इसका श्रेय भैया को मिलने जा रहा था तो सभी ने जोर जोर से हल्ला मचाया। वरना, इसके पहले जितनी नेमते विधायको को मिली किसी ने मुंह टेढा नहीं किया। मुंह टेढा करना तो दूर नाक डूबो के मलाइ काटा। कम लोग जानते हैं कि भैया के बीस लाख के तोहफे पर हल्ला मचाने वाले पांच साल में महज वेतन और भत्ता के रूप में तीस लाख रुपये गटकते हैं। वेतन पूछिए तो मात्र आठ हजार पाते हैं, लेकिन इस वेतनरूपी छोटी रकम के साथ निर्वाचन क्षेत्र भत्ता के रूप में बाइस हजार, चिकित्सा भत्ता के रूप में दस हजार और सचिवीय भत्ता के रूप में दस हजार यानी मंथली पचासा हजार और पांच साल में तीस लाख रुपए लेते हैं। इन्हें एसी टू में मुफ़त यात्रा की सुविधा है। साथ में दो लाख रुपये यानी पांच साल में दस लाख रुपये का यात्रा कूपन उपलब्ध है। रेलवे कूपन के बदले हवाई यात्रा मान्य है। यूपी के बस में एक सहयोगी के साथ फ्री यात्रा है तो यात्रा टिकट का नकद भुगतान भी उपलब्ध है। यही नहीं कूपन के बदले साल में आठ हजार रुपये का इंधन ले सकते हैं। इनके राजधानी के मुफ़त आवास पर एक फोन, दूसरा क्षेत्र के आवास पर और तीसरा पोस्टपेड सिम इनके जेब में है। इन पर यह माह में छह हजार की बात कर सकते हैं और भुगतान करदाताओं के पैसे से होता है, यानी हमारे और आप के जेब से। जब ये सदन में होते है तो हर बैठक पर पांच सौ रुपये मिलता है। क्षेत्र में जन सेवा के नाम पर रोज ढाई सौ रुपये पाते हैं। भवन या गाडी लेना चाहे तो दो लाख रुपये अग्रिम की सुविधा है। विधायक निधि सवा करोड थी अब डेढ करोड हो गई है। यह इसलिए बता रहा हूं कि थोडा थोडा कर के ही खाना इन्हें अच्छा लगता है। एक विधायक थोडा-थोडा कर के जनता की जेब से जाने वाले कर का पांच साल में साठ लाख से भी अधिक खाता है। हां, डकार नहीं लेता है, क्योंकि जनता जान जाएगी। अखिलेश भैया ने गाडी के रूप में ऐसा डिस परोसा कि खाने के साथ डकार लेना अनिवार्य हो गया। यही कारण है कि सभी विरोध पर उतर आए। वरना साठ लाख तक डकारने वाले इन विधायकों को जनता की क्या पडी है। धीरे-धीरे खाना चाहते हैं। यानी खाएं भी, डकार भी न लें और जनता इन्हें गरीब समझती रहे। अखिलेश भैया अभी नए हैं। उन्हें खाने का तरीका नहीं मालूम है और न ही खिलाने का। ऐसे में उन्होंने सोचा होगा जो विधायक निर्वाचन क्षेत्र में घूमने के लिए बाइस हजार रुपए हर महीने खर्च करता है और सरकार देती है, वह इसे लेता भी है। ऐसे में उसे लग्जरी गाडी मिल जाएगी तो वह और घूमेगा। भैया ने सोचा होगा कि जो विधायक एसी टू में चलता है वह अचानक रेल गाडी से उतर कर आटो खोजेगा, किसी की गाडी मांगेगा तो गर्मी से उसकी तबीयत खराब हो जाएगी। ऐसे में एसी टू क्लास से उतरने के साथ ही वह सीधे अपनी लग्जरी एसी गाडी में बैठेगा तो उसका स्वास्थ्य और समय दोनो सुरक्षित रहेगा। भैया ने यह भी सोचा होगा कि चिकित्सा के नाम पर हर माह दस हजार रुपए लेने वाला विधायक अपनी एसी गाडी में चलेगा तो आगे उसका चिकित्सा भत्ता और नहीं बढाना पडेगा। पर, उन्हें क्या पता कि वे पांच साल में जो तीस लाख रुपये नकद और इतने की ही सुविधा टुकडो में लेते हैं वह मात्र इसलिए कि जनता न जाने। ऐसे में बीस लाख की गाडी ले लेगें तो लोग गाडी के साथ अन्य सुविधाओं और वेतन भत्ते की भी चर्चा करने लगेंगे। यही कारण है कि सभी ने एक स्वर में विरोधी किया, वे भी जो तमाम एजेंसियों की जांच के आंच से तप रहे हैं। भ्रष्टाचार की बाढ में भीगे हुए है। नतीजतन अखिलेश भैया को अपना फैसला वापस लेना पडा है। महज घोषणा के कारण।
असल में भैया विधायकों की िफतरत नहीं समझ पाए। लोहिया जी की नाराजगी से डर गए। वरना अपने फैसले पर अडिग रहते तो उनका समाजवाद स्थाई हो जाता। क्योंकि सभी विधायक लाखों की सुविधा तो ले ही रहे हैं। हर बार वेतन, भत्ता और सुविधाओं के बढने पर हल्ला करते हैं। कुछ तो बाहर भी हल्ला मचाते हैं, लेकिन सभी अंत में बढी मलाई काटते हैं। कितने ऐसे हैं जो अपने खर्चे पर जनता की सेवा करते हैं। जो आज हल्ला मचा रहे हैं वे हर साल दस लाख से अधिक ले रहे हैं। इनमे से अधिकतर विधायक निध से लैपटाप ले चुके हैं। हारने के बाद जमा नहीं किए या दुबारा जीतने पर नया लिए। अधिकतर को की बोर्ड तक का ज्ञान नहीं है। क्षेत्रीय समस्या और डाटा फीड करना तो इनके लिए गुल्लर का फूल तोडना है। असल में इन्हें सुविधा लेने से गुरेज नहीं है। इनकी शर्त मात्र इतनी है कि जो मलाई इनकी थाली में डाली जाए उसकी भनक जनता को न लगे। यही समझ पाने में अपने भोले भैया चूक गए, समाजवाद स्थापित करने का श्रेय लेने की होड में विधानसभा में सार्वजनिक रूप से बोल गए। मैं उन्हें एक सलाह दूंगा, अगली बार वह केवल शासनादेश जारी करें। एलान न करें। तब बीस लाख की गाडी नहीं, हर विधानसभा क्षेत्र में एक-एक हेलीकाप्टर की व्यवस्था करें। हर गांव में एक हेलीपैड बनवाएं, जिससे कि विधायक हवा में उडते हुए यह भी पता कर सके कि उनके विरोधी उनके क्षेत्र की आबोहवा में कही सियासी जहर तो नहीं घोल रहे हैं। यकीन मानिए यह योजना चलेगी, समाजवाद का रूका कदम आगे बढेगा, लेकिन शर्त मात्र एक होगी, इसकी घोषणा के बजाय शासनादेश जारी हो, जैसे कि धीरे-धीरे कर के इस समय पांच साल में हर विधायक साठ-साठ लाख का लाभ ले रहा है और न तो उसे दुख है और न ही जनता को कष्ट, ऐसे ही एक-एक कर धीरे धीरे हेलीकप्टर का भी मजा उठाएंगे और उंगली भी नहीं उठेगी।
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