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देश को नेताजी जैसे व्यक्तित्व की जरूरत

SHAHENSHAH KI QALAM SE! शहंशाह की क़लम से!
SHAHENSHAH KI QALAM SE! शहंशाह की क़लम से!
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्‍म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था। महात्मा गांधी के अहिंसा के विचारों से सुभाष चंद्र बोस सहमत नहीं थे, लेकिन नेताजी ने रेडियो रंगून से 1944 में पहली बार बापू को ‘राष्ट्रपिता’ कहा था। आप हमेशा गांधी जी की इज़्ज़त करते रहें।


subhash chandra bose


‘नेताजी’ के नाम से मशहूर सुभाष चंद्र बोस ने भारत को आज़ादी दिलाने के मक़सद से 21 अक्टूबर 1943 को ‘आज़ाद हिंद सरकार’ की स्थापना की और ‘ आज़ाद हिंद फ़ौज’ का गठन किया। नेताजी अपनी आज़ाद हिंद फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुंचे। यहीं पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा, ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा’ दिया। सुभाष चंद्र बोस के विचार बहुत क्रांतिकारी थे और उनकी बातें आज भी किसी के भी तन-मन में जोश भर सकती हैं।


हमारी भाषा शैली में उनके ऐसे ही कुछ विचार इस प्रकार हैं :-


1. तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा।
2. याद रखिए सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है।
3. ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं।
4. हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिले, हमारे अंदर उसकी रक्षा करने की ताक़त होनी चाहिए।
5. एक सैनिक के रूप में आपको हमेशा तीन आदर्शों को संजोना और उन पर जीना होगा: सच्चाई, कर्तव्य और बलिदान।
6. जो सिपाही हमेशा अपने देश के प्रति वफादार रहता है, जो हमेशा अपना जीवन बलिदान करने को तैयार रहता है, वो अजेय है। अगर तुम भी अजेय बनना चाहते हो तो इन तीन आदर्शों “सच्चाई, कर्तव्य और बलिदान” को अपने ह्रदय में समाहित कर लो।
7. सफलता, हमेशा असफलता के स्‍तंभ पर खड़ी होती है।
8. मेरा अनुभव है कि हमेशा आशा की कोई न कोई किरण आती है, जो हमें जीवन से दूर भटकने नहीं देती।
9. जिस व्यक्ति के अंदर ‘सनक’ नहीं होती वो कभी महान नहीं बन सकता। लेकिन उसके अंदर, इसके आलावा भी कुछ और होना चाहिए।
10. जो अपनी ताक़त पर भरोसा करते हैं, वो आगे बढ़ते हैं और उधार की ताक़त वाले घायल हो जाते हैं।
11. हमारा सफर कितना ही भयानक, कष्टदायी और बदतर हो, लेकिन हमें आगे बढ़ते रहना ही है। सफलता का दिन दूर हो सकता हैं, लेकिन उसका आना अनिवार्य ही है।
12. मां का प्यार सबसे गहरा होता है- स्वार्थरहित। इसको किसी भी तरह से मापा नहीं जा सकता।


दूसरा विश्व युद्ध समाप्त हो चला था। जापान को आत्मसमर्पण किए हुए अभी तीन दिन हुए थे। 18 अगस्त 1945 को सुभाष बोस का विमान ईंधन लेने के लिए ताइपे हवाई अड्डे पर रुका था। दोबारा उड़ान भरते ही एक ज़ोर की आवाज़ सुनाई दी थी। बोस के साथ चल रहे उनके साथी कर्नल हबीबुररहमान को लगा था कि कहीं दुश्मन की विमानभेदी तोप का गोला तो उनके विमान को नहीं लगा है। बाद में पता चला था कि विमान के इंजन का एक प्रोपेलर टूट गया था। विमान नाक के बल ज़मीन से आ टकराया था और हबीब की आंखों के सामने अंधेरा छा गया था। जब उन्हें होश आया तो उन्होंने देखा कि विमान के पीछे का बाहर निकलने का रास्ता सामान से पूरी तरह रुका हुआ है और आगे के हिस्से में आग लगी हुई है। हबीब ने नेताजी सुभाष बोस को आवाज़ दी थी, “आगे से निकलिए नेताजी।”


बाद में हबीब ने याद किया था कि जब विमान गिरा था तो नेताजी की ख़ाकी वर्दी पेट्रोल से सराबोर हो गई थी। जब उन्होंने आग से घिरे दरवाज़े से निकलने की कोशिश की तो उनके शरीर में आग लग गई थी। आग बुझाने के प्रयास में हबीब के हाथ भी बुरी तरह जल गए। उन दोनों को अस्पताल ले जाया गया था। अगले छह घंटों तक नेता जी को कभी होश आता तो कभी वो बेहोशी में चले जाते। उसी हालत में उन्होंने आबिद हसन को आवाज़ दी थी. “आबिद नहीं है साहब, मैं हूँ हबीब।”


नेताजी ने लड़खड़ाती आवाज़ में हबीब से कहा था कि उनका आख़िरी वक़्त आ रहा है। हिन्दुस्तान जाकर लोगों से कहो कि आज़ादी की लड़ाई जारी रखें। उसी रात तकरीबन नौ बजे नेता जी ने आख़िरी सांस ली थी। 20 अगस्त को नेता जी का अंतिम संस्कार किया गया। अंतिम संस्कार के पच्चीस दिन बाद हबीबुररहमान नेता जी की अस्थियों को लेकर जापान पहुंचे।


नेताजी के साथ उस विमान में सवार हबीबुररहमान ने पाकिस्तान से आकर शाहनवाज़ समिति के सामने गवाही दी कि नेता जी उस विमान दुर्घटना में मारे गए थे और उनके सामने ही उनका अंतिम संस्कार किया गया था। हम यह मानने को तैयार नहीं के नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसा बहादुर और दिलेर सज़ा या सज़ा-ए-मौत के डर से गुमनामी की ज़िंदगी जियेगा।


बहरहाल वर्तमान युग में भी देश के सर्वागीण विकास और साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए सुभाष बाबू जैसे व्यक्तित्व की ज़रुरत है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के विचार क्रांतिकारी थे। उन्‍होंने युवाओं को देश के लिए अपने प्राण न्‍योछावर करने की प्रेरणा दी। उनके विचार हमेशा देशवासियों को प्रेरित करते रहेंगे। ज़रुरत है देशवासियों और खासकर नौजवानों को उनपर अमल करने की।


उनको सच्ची श्रृध्दान्जली यही होगी कि हम सर्व धर्म समभाव के साथ राष्ट्र हित सर्वोपरि रखें और साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार और आतंकवाद के नाग का सर हमेशा के लिए कुचल दें। क्योंकि साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार और आतंकवाद एक दूसरे के पूरक हैं। इनको समाप्त किये बिना देश के सर्वागीण विकास संभव नहीं है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 121 वीं जयन्ती पर, उस अज़ीम धर्म निर्पेक्ष शख्सियत को हज़ारों सलाम।

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