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जश्ने चिरागां मुबारक।
दीपावली का अर्थ है – दीपों की पंक्तियां।। दिनांक: ३०.१०.२०१६.
जश्ने चिरांगा मुबारक !! दीपावली सबके लिए, सबको तहे दिल से मुबारक !!!
देखिये, धर्म ग्रन्थ क्या कहते हैं:
* तम्सो मा ज्योतिर्गमय (उपनिषद्)
* अल्लाह सबको अंधेरों से निकाल कर रोशनी की ओर लाता है। (क़ुरान 2:257)
दीपावली एक दिन का पर्व नहीं अपितु पर्वों का समूह है। जिसमें पांच पर्व क्रमश: जुडे हुये हैं। धनतेरस, रूप चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा, और भाई दूज। इन पांचों पर्वों के अपने विशेष अर्थ हैं। ये जीवन में समृध्दि, स्वास्थ्य, सम्पन्नता, शांति और आत्मीयता के विस्तार के प्रतीक हैं। इना पर्वों में क्रमश: कुबेर-धंवंतरि, यमराज, लक्ष्मी-सरस्वती-गणेश, गोवर्धन-भगवान श्री कृष्ण आदि की पूजा की जाती है।
दशहरे के पश्चात ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग नए-नए वस्त्र सिलवाते हैं। दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्योहार आता है। इस दिन बाजारों में चारों तरफ चहल-पहल दिखाई पड़ती है।
बर्तनों की दुकानों पर विशेष साजसज्जा व भीड़ दिखाई देती है। धनतेरस के दिन बरतन खरीदना शुभ माना जाता है अतएव प्रत्येक परिवार अपनी-अपनी आवश्यकता अनुसार कुछ न कुछ खरीदारी करता है। इस दिन तुलसी या घर के द्वार पर एक दीपक जलाया जाता है। इससे अगले दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली होती है। इस दिन यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं।
दीपावली का अर्थ है – दीपों की पंक्तियां। दीपावली के दिन प्रत्येक घर दीपों की पंक्तियों से शोभायमान रहता है। दीपों, मोमबत्तियों और बिजली की रोशनी से घर का कोना-कोना प्रकाशित हो उठता है। इसलिए दीपावली को रोशनी का पर्व भी कहा जाता है।
दीपावली कार्तिक माह की अमावस को मनाई जाती है। रोशनी से अंधकार दूर हो जाता है। इसी तरह मन में अच्छे विचारों को प्रकाशित कर हम मन के अंधकार को दूर कर सकते हैं।
लक्ष्मी पूजा के दूसरे दिन “गोवर्धन पूजा” मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने इन्द्र को पराजित किया था।
उत्सव और त्योहार भारतीय संस्कृति की युगों पुरानी परंपरा है। जीवन में मिल-जुलकर आनंद पाना ही त्योहारों की मूल संवेदना है। इस दृष्टि से दीपावली हमारी संस्कृति की उच्च गरिमा से युक्त प्रकाश का महान सांस्कृतिक पर्व है। युगों से ज्ञान का यह आलोक प्रवाह कई सभ्यताओं को प्रदीप्त करता रहा है।
दीपावली से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाएं:
इस दिन भगवान राम, लक्ष्मण और माता जानकी 14 वर्ष का वनवास पूर्ण कर अयोध्या लौटे थे और उनके आने की खुशी में नगरवासियों ने घर-घर घी के दीये जलाए थे। तभी से इस त्योहार की शुरुआत हुई।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम: न्यायप्रिय श्रीराम अर्थात भरत के लिए आदर्श भाई, हनुमान के लिए स्वामी, प्रजा के लिए नीति-कुशल व न्यायप्रिय राजा, सुग्रीव व केवट के परम मित्र और सेना को साथ लेकर चलने वाले व्यक्तित्व के रूप में भगवान राम को पहचाना जाता है।
भगवान राम विषम परिस्थितियों में भी नीति सम्मत रहे। उन्होंने वेदों और मर्यादा का पालन करते हुए सुखी राज्य की स्थापना की। स्वयं की भावना व सुखों से समझौता कर न्याय और सत्य का साथ दिया।
दयालु स्वामी : – भगवान राम ने दया कर सभी को अपनी छत्रछाया में लिया। उनकी सेना में पशु, मानव व दानव सभी थे और उन्होंने सभी को आगे बढ़ने का मौका दिया। सुग्रीव को राज्य, हनुमान, जाम्बवंत व नल-नील को भी उन्होंने समय-समय पर नेतृत्व करने का अधिकार दिया।
अपने दोस्तों से निभाया करीबी रिश्ता :- केवट हो या सुग्रीव, निषादराज या विभीषण। हर जाति, हर वर्ग के मित्रों के साथ भगवान राम ने दिल से करीबी रिश्ता निभाया। दोस्तों के लिए भी उन्होंने स्वयं कई संकट झेले। इतना ही नहीं शबरी के झूठे बेर खाकर प्रभु श्रीराम ने अपने भक्त के रिश्ते की एक मिसाल कायम की।
सहनशील श्रीराम :- सहनशीलता एवं धैर्य भगवान राम का एक और गुण है। कैकेयी की आज्ञा से वन में चौदह वर्ष बिताना, समुद्र पर सेतु बनाने के लिए तपस्या करना, सीता को त्यागने के बाद राजा होते हुए भी संन्यासी की भांति जीवन बिताना उनकी सहनशीलता की पराकाष्ठा है।
त्याग और समर्पण :- भगवान राम के तीन भाई लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न सौतेली मां के पुत्र थे, लेकिन उन्होंने सभी भाइयों के प्रति सगे भाई से बढ़ कर त्याग और समर्पण का भाव रखा और स्नेह दिया। यही वजह थी कि भगवान राम के वनवास के समय लक्ष्मण उनके साथ वन गए और राम की अनुपस्थिति में राजपाट मिलने के बावजूद भरत ने भगवान राम के मूल्यों को ध्यान में रखकर सिंहासन पर रामजी की चरण पादुका रख जनता को न्याय दिलाया।
कुशल प्रबंधक :- भगवान राम न केवल कुशल प्रबंधक थे, बल्कि सभी को साथ लेकर चलने वाले थे। वे सभी को विकास का अवसर देते थे। भगवान राम चाहते तो अयोध्या की सेना द्वारा रावण को परास्त कर सकते थे। परंतु माता पिता की इच्छानुसार आपने अयोध्या को छोड दिया था अत: उन्होंने उपलब्ध संसाधनों (वानर सेना) का ही बेहतर उपयोग कर रावण को पराजित किया और कुशल प्रबन्धक कहलाये।
उनके इन्हीं गुणों के कारण उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम से जाना जाता है। दीपावली के शुभ अवसर पर सच्ची श्रृध्दान्जली यही होगी कि हम मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम पर राजनीति कर झूठ बोलने वालों, भगवान राम और जनता को धोखा देने वालों एवं रावण का महामंडन करने वालों को सबक़ सिखायें।
वर्तमान में देश में स्वच्छ्ता अभियान की खूब धूम है। दीपावली में घर की साफ सफाई का विशेष महत्व माना गया है। त्योहार से पहले घर से अनावश्यक सामान व कचरा हटाना, घर की पुताई करना आदि सामान्य कार्य हैं। इसके अलावा अगर हम आस पास के परिवेश और मोहल्ले की सफाई की सामूहिक ज़िम्मेदारी उठा लें तो हमारा दीपावली मनाना और सार्थक हो सकता है।
एक ओर जहां दीपावली बुराई पर अच्छाई की विजय तथा भाईचारे का पर्व है वहीं दूसरी ओर आशारूपी दीपों को प्रज्वलित कर निराशा और अंधकार को दूर भगाने की प्रवृत्ति का त्योहार भी है। भारत में प्राचीन समय से दीपदान की परंपरा अंधकार पर प्रकाश की जीत की याद में समय की गति को पार करती हुई अनवरत चली आ रही है। दीप का अलौकिक सौंदर्य सभी अनुष्ठानों में निखरता रहा है। दीपावली शब्द का शाब्दिक अर्थ भी तो यही है ‘दीपों की माला।’
दीपावली की रात झिलमिलाते नन्हे-नन्हे दीप हमारे जीवन की नन्ही खुशियों के पर्याय तो हैं ही आस्था और सकारात्मकता के प्रतीक भी हैं। धर्म ग्रंथों में ईश्वर से प्रार्थना की गई है ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय‘ अर्थात मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाइए! अज्ञान रूपी अंधकार को ज्ञान रूपी प्रकाश ही दूर कर सकता है।
नन्हें दीपों से अपने घर उजियारे की दावत कर दो,
अमावस के काले आंचल को, दीपों के फूलों से भर दो।
जगमगाता हुआ दीपक मानव के विकास की ऊंचाइयों का प्रतीक है। उससे फैलता प्रकाशपुंज जीवन की पवित्रता का प्रतीक है तो उस दीपक की जलती लौ मानव के नैतिक मूल्यों को जीने का आह्वान करती है। वहीं दीपक का तेल और बाती स्वयं जलकर मानव को रोशन होने की प्रेरणा देता है। दीपक का मर्म ही आत्मबोध का अहसास और उसके जाग जाने का विश्वास है। दीपक का प्रकाश नए को नवीन सृजन और पुराने के शोधन का प्रेरणा सूत्र है। यही कारण है कि दीपावली पर विद्युत प्रकाश के साथ तेल के दीयों का प्रकाश अवश्य किया जाता है। यह दीये हमारे आसपास के अंधकार के साथ हमारे मन के अंधकार को भी दूर करते हैं। दीपक के इस अलौकिक सौंदर्य से ही जीवन भी प्रकाशमान होता है।
कहते हैं कि एक बार देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती के मध्य संवाद चल रहा था। देवी लक्ष्मी बोलीं,”बहन सरस्वती! देखो सुयोग्य विद्वान भी मेरे द्वार पर नित्य प्रति धन की आशा में खडे रहते हैं।“ सरस्वती जी बोली,”बहन! इसके साथ ही यह भी सत्य है कि यदि व्यक्ति बहुत धनी हो परंतु अज्ञानी हो तो पशु तुल्य ही है।“ ब्रह्मा जी दोनों की बातें सुन रहे थे। उनसे रहा नहीं गया, वे दोनों को सम्बोधित करते हुये बोले,” देवियो! आप दोनों की बातें सत्य हैं। परंतु आप दोनों के द्वारा दिये गये गुणों के साथ‘विवेक’ और जुड़ जाये तो मनुष्य का जीवन सम्पूर्ण हो जाता है। क्योंकि ना तो विवेक शून्य धनी अच्छा है और ना अविवेकी विद्वान किसी काम का है।“ महात्मा गौतम बुध्द जी ने भी ”अप्पो दीपो भव:- अर्थात अपना प्रकाश स्वयं बनो” कहकर दीपावली के अर्थ को सार्थक किया है।
इसलिये दीपावली के शुभ अवसर पर हम अपने विवेक का प्रयोग करते हुये देश और समाज की खातिर शिक्षा और स्वास्थ्य मूल भूत अधिकारों की श्रेणी में रखने, नैसर्गिक साधनों की क्षति रोकने, ढांचागत सुविधाओं के साथ ज्ञान आधारित कुशलता और क्षमता का विकास करने, कृषि पर विशेष ध्यान दे कर इसे बढाने, आर्थिक सुधारों और वैश्वीकरण के प्रति सावधानी बरतते हुये आगे बढने, रोज़गार वृध्दि के सजग रहकर संसाधन जुटाने, गरीबी उन्मूलन के निरन्तर सहायक संस्थाओं को सशक्त करने, समग्र और सभी के लिये विकास पर ज़ोर और शासन तंत्र में सुधार के लिये काम कर सकें और अधिकार पूर्वक यह समझ सकें कि देश हमारा है और हमें ही इसे सम्पन्न और समृध्द बनाना होगा, तभी हमारा दीपावली मनाना सार्थक होगा और हम वास्तव में राम राज्य की ओर क़दम बढा कर दीवाली को खुशहाली में बदल सकेंगे।
गौरव अतीत का जब जागेगा, गर्वित होगा तब राष्ट्र हमारा ,
आत्म दीप बन सके अगर हम, फैला देंगे जग में उजियारा।
आईये, मिलकर दुआ करें दीपावली, समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े दीन दुखी और हम सब के साथ राष्ट्र में भी सुख, शान्ति और समृध्दि लाये। आमीन सुम्मा आमीन।
जश्ने चिरांगा मुबारक !! दीपावली सबके लिए, सबको तहे दिल से मुबारक !!!
(सैयद शहनशाह हैदर आब्दी)
समाजवादी चिंतक – झांसी
“काशाना-ए-हैदर”
291, लक्ष्मण गंज – झांसी (उ.प्र.)
पिन-२८४००२.
मो.नं. ९४१५९४३४५४.
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