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अभिव्यक्ति की स्वंतंत्रता का दुरूपयोग

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ये हमारे लिए कोई नई बात नहीं है. हमारे देश में लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी टीक टिपण्णी का अधिकार मिला हुआ है चाहे उससे किसी की भावनाएं ही क्यों न आहत होती हों. जब भी धार्मिक स्तर पर कोई टिपण्णी होती है तो उसके लिए हिन्दू धर्म है. उसके देवी देवता उनके निशाने पर होते है. राजनीतिकों से लेकर समाज के वर्ग विशेष के लोग इसमें आनंद प्राप्त करते है. मैं पूछता हूँ की हिन्दू धर्म के अलावा ऐसी अपमानजनक टिप्पणियां किसी और धर्म के बारे में क्यों नहीं की जाती? क्योंकि एक हिन्दू धर्म ही सहिष्णु है वही आपको ये आज़ादी देता है की आप कुछ भी बकवास करते रहे. दूसरे धर्म इतनी आज़ादी नहीं देते इसीलिए उन पर टिपण्णी करने से पहले सौ बार सोचते है. जवाहर लाल नेहरु  विश्वविध्यालय की घटना इस बात का सुबूत है की जान बूझ कर लोगों की धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है और उसे करने वाले हिन्दू ही है ये और भी चिंता की बात है.

ये तो स्पष्ट है ही की हमारे अन्दर कभी भी आत्मा स्वाभिमान, राष्ट्रीय भावना जैसी कोई चीज़ है ही नहीं. हमारे अन्दर आत्मानुशाशन जैसी भी कोई चीज़ नहीं है. कुछ बीमार मानसिकता वाले लोग इसी तरह माहौल ख़राब करते रहेंगे तो फिर कोई न कोई उन्हें सबक सिखाने आ ही जाएगा. हमें तो कई बार यही शक होता है की हम अपने देश में है या परदेस में है. लोग धार्मिक अतिवाद के लिए हिन्दुओं को दोषी ठहराते है दरअसल हिंदुत्व तो खुद ही अपनों से मार खा रहा है. हिन्दू ही हिन्दू भावनाओं से बलात्कार कर रहे है और कोई संगठन इस मामले में नहीं बोल रहा. क्यों? क्या ये ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट फोरम इतना शक्तिशाली है जो एक आतंकवादी की तरह हमले कर रहा है? आज ये स्टूडेंट होकर ये कारनामे अंजाम दे रहे है तो कल क्या करेंगे आसानी से समझा जा सकता है.

हम केवल डंडे से अनुशाषित होते है. बिना डंडे के हमें कुछ भी समझ में नहीं आता. रेड लाइट पर अगर एक मिनट के लिए भी लाइट गुल हो जाए या ट्राफिक वाला सिपाही न हो तो मजाल है की एक मिनट का ट्राफिक दस घंटे से पहले निकल जाए. यहाँ सब कुछ अपना होना चाहिए. देखने से तो लगता है हर आदमीं को अपनी सड़क चाहिए. इन लोगों का शायद बोध वाक्य यही होगा की देश हमसे है हम देश से नहीं. हमारी आज़ादी में कोई रूकावट नहीं आनी चाहिए. अरे जिस पीढ़ी को क्रांतिकारियों के नाम तक नहीं मालूम और आज़ादी जिनको विरासत में मिल गयी हो वो आज़ादी का मोल क्या जाने. जो पैसा कमाता है उसी को उसके खर्च करने या होने का एहसास होता है जिसे पॉकेट मनी मिले उसे क्या पता पैसा कैसे और कितने कष्ट उठा कर कमाया जाता है.

हम केवल अधिकार जताना जानते है कर्तव्य का तो हमें नाम भी नहीं पता. समाज के लिए हमारी क्या जिम्मेदारी है इसका भी एहसास नहीं है. कहने को क़ानून व्यवस्था है पर फिर भी जंगल राज में जी रहे है. जिन राजनीतिकों पर देश को साधने की जिम्मेदारी है सबसे निरंकुश वही साबित हो रहे है. क्या होगा इस देश का? जिसके हाथ में लाठी है आज भी भैंस उसी की है. पूरे के पूरे गाँव सरपंच बन बैठे है. मुरेना में एक लड़की को बेरहमी से पीटा, मारा और जलाया जा रहा है. कानून इसे रोक सकता था पुलिस रोक सकती थी पर ऐसा नहीं हुआ. ऐसा होने दिया गया. अब चंद लोगों को पकड़ कर क्या उस लड़की की ज़िन्दगी वापस लाइ जा सकेगी?

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