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पौराणिक काल के परग्रही

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परग्रही यानी दूसरे ग्रहों पर रहने वाले लोग, यानी कि आज के एलियंस। पिछले पता नहीं कितनी शताब्दियों से लोगों को ये सवाल मथ रहा है. परग्रही होते है या नहीं? क्या वो हमारे ग्रह पर आते हैं या नहीं? क्या उनसे संवाद किया जा सकता है या नहीं? वो कैसे होते है? ऐसी ही न जाने कितनी जिज्ञासाएं. गाहे बगाहे कहीं किसी दूर जगह लोंगों द्वारा परग्रहियों को देखने के दावे भी सुनाई देते है. वैज्ञानिकों और आम लोगों में जिज्ञासा बराबर है. हर कोई उनके बारे में विस्तार से जानना चाहता है और अगर संभव हो तो मिलना भी चाहेगा. आखिर हो भी क्यों न? यह शायद इंसान की सबसे बड़ी जिज्ञासा है के क्या उनकी तरह इस ब्रह्माण्ड में और भी लोग है? अगर है तो कहाँ है, कैसे है बगैरह बगैरह. जहाँ कुछ लोग इस बात से इत्तेफाक रखते है के ब्रह्माण्ड में उनके जैसे और भी है वही कुछ लोग इस धारणा को सिरे से ही नकार देते है और उनका मानना है के पूरे ब्रह्माण्ड में केवल हमारा ही अस्तित्व है.

जो लोग अन्तरिक्ष में केवल हमारा ही अस्तित्व मानते है उनकी सोच पर दया आती है. वो शायद कुछ अलग दिखने के लिए ही ऐसे निरर्थक बयान देते रहते है. सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में केवल हम..? कितनी छोटी सोच है. कितनी हास्यास्पद है ये सोच. ऐसा सोचने वालों को शायद ब्रह्माण्ड के बारे में कुछ भी पता नहीं जहाँ की विशालता अपने आप में एक रहस्य है. जहाँ के बारे में सोचकर गिनती ख़त्म हो जाती है. अरबों खरबों और न जाने कितनी ऊंची गिनती भी काम नहीं आती फिर उसके लिए नापने की नई इकाइयाँ पैदा की जाती है जैसे प्रकाश वर्ष जो दूरी नापने की नई इकाई है. हर रोज ऐसे तमाम दूरबीनो पर काम चल रहा है जिनसे दूर और दूर तक देखा जा सके. ब्रह्माण्ड की एक ही समस्या है और वो है दूरी. हर चीज़ इतनी दूर है के हमारे हिसाब से तो एक आदमी, अपने पूरे जीवन में किसी दूर दराज के ग्रह पर पहुँच ही नहीं सकता. इसी दूरी ने ही शायद इस धारणा को बल दिया होगा के छोडो और कोई नहीं है अगर होता तो मिलता जरूर.

पाश्चात्य देशों का इस विषय पर एकाधिकार होने के कारण वो जो भी कहते है सब उसे मान लेते है क्योंकि इस विषय पर शोध के लिए ज्यादातर देशों के पास न साधन है और न धन. कुछ यूरोपीय देश और अमेरिका मिल कर ऐसे कार्यक्रम चलते रहते है और बाकी लोगों को बरगलाते रहते है जैसे उन्होंने अंतिम सत्य जान लिया हो. वो ये भी भूल जाते है के भारत जैसे देश में पौराणिक काल से ही परग्रहियों का आना जाना लगा रहा है. न केवल आना जाना बल्कि उनके आत्मिक, भौतिक सम्बन्ध भी यहाँ के लोगों से रहे है. वो विलक्षण शक्तियों के स्वामी, विशेष वाहनों में सवार, अपने विशिष्ट व्यवहार और शैली में इस दुनिया के लोगों को चकित करते रहे है. जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ हमारे कथित पौराणिक देवी देवताओं की जो अन्तरिक्ष के विभिन्न लोकों में रहते थे. उनकी शक्तियों से प्रभावित होकर हमने उन्हें देव तुल्य माना, उनकी पूजा, उपासना की ताकि वो अपनी दिव्य शक्तियों से हमारा भी कल्याण करें और उन्होंने किया भी. अलंकारिक रूप से वर्णित विभिन्न लोक वस्तुतः उनके ग्रहों के लिए प्रयुक्त किये गए.

उनकी विशिष्ट शक्तियों में समय सीमा से परे होना, ऊर्जा रूपांतरण (कही भी प्रकट और अदृश्य होना) में दक्ष जिस पर अब खोज शुरू हुई है, दिव्य परिधान, भौतिक शक्तियों पर अधिकार, श्राप और अनुग्रह की शक्ति शामिल है. उनकी इन्ही विशिष्ट शक्तियों से लोग भयभीत भी होते थे परन्तु अधिकतर उन्होंने पृथ्वी वासियों से अच्छे दोस्ताना सम्बन्ध ही बनाये रखे. यहाँ के लोगों को अपना अनुग्रह ही दिया. लोगों ने उनके गुणों के आधार पर नाम रख दिए थे जैसे सूर्य के निकटम ग्रह से आये लोगों को सूर्य देव, वायु नियंत्रित करने वाले को वायु देव, अग्नि देव, इन्द्र देव इत्यादि. पृथ्वी पर उनमे से बहुतों ने यहाँ के लोगों से सम्बन्ध भी बनाये जिसके फलस्वरूप हनुमान और कर्ण जैसे लोग पैदा हुये. उस समय की राजनीति और कूटनीति के चलते इन लोंगों की वंश वृद्धि नहीं होने दी गयी ताकि इंसानी प्रजाति को कोई नुकसान न पहुंचे. इनके अन्दर अपने पित्रों के गुण समाये थे. उनके वर्चस्व की आशंका के चलते उनके विवाह सम्बन्ध नहीं होने दिए गए और वो प्रजाति कालांतर में अपने इकलौते प्रतीकों के साथ ही समाप्त हो गयी.

कालांतर में समय चक्र के साथ ग्रहों उपग्रहों की स्थिति में बदलाव आया. इन लोगों का धीरे धीरे पृथ्वी से सम्बन्ध टूट गया और वो समय के गर्त में समां गए. हमारा पौराणिक इतिहास ऐसे असंख्य उदाहरणों से भरा है जहाँ हमारे परग्रहियों से सम्बन्ध बहुत ही सामान्य बात थी. न केवल वो यहाँ आते थे, पृथ्वी से भी बहुत से लोग उनके ग्रहों पर ज्ञान प्राप्त करने जाते थे ठीक वैसे ही जैसे आज कोई भारत से अमेरिका जाए. यहाँ के लोगों ने भी उसका लाभ उठाया. बहुत से हमारे ऋषि मुनियों ने अपने आपको उनके जैसी शक्तियों से संपन्न किया और बाद में वो समाज में विशिष्ट स्थान पाते रहे. हमारे बहुत से लोग अपने श्राप और अनुग्रह के लिए जाने जाते है. दुर्भाग्यवश ये लम्बे समय तक नहीं चल सका. उनकी सन्ततियां उनके इन गुणों को आगे लेकर नहीं चल पायी और ये सब शक्ति सम्पन्नता एक बीते जमाने, किस्से कहानियों की बात बन कर रह गयी. आज जो परग्रहियों पर बहस चलाते है उनसे आग्रह है के वो हमारे पौराणिक इतिहास पर अवश्य नज़र डालें.

अंत में सबसे विशेष बात तो ये है के हम खुद क्या है? क्या हम सचमुच “विकासवाद के सिद्धांत” पर चल कर विकसित हुये है? ये शायद सबसे हास्यास्पद बात है. सबसे बड़ा मज़ाक है. इसका उत्तर एक ही है, नहीं. हम खुद परग्रही है. हमें यहाँ इसी रूप में लाया या भेजा गया जो हम आज है. हमारी रचना अब तक की सबसे विलक्षण रचना है जिसका किसी से कोई मुकाबला नहीं. हमें हमसे उच्चतर परग्रहियों ने बनाया. उन्होंने बहुत सी प्रजातियों को प्रयोग स्वरुप बनाया और फिर उन्हें यहाँ उतारा ताकि उनको एक प्रयोगशाला मिल सके वो देख सकें के उनकी रचना कितनी परिपक्व है. संभवतः इसीलिए उन्होंने इस ग्रह पर अपना आवागमन रखा ताकि वो समय समय पर अपनी त्रुटियों का सुधार कर सकें और उच्चतम प्रजातियों का निर्माण कर सकें. हम न कभी बन्दर थे, न हम अमीबा से पैदा हुये न ही हम किसी विकासवाद के सिद्धांत से. हमें हमारे सृजनकर्ता का अनुग्रह मानना चाहिए कि उन्होंने हमें अपने स्वरुप में ही पैदा किया और अब अगर कोई परग्रही दिखे भी तो भयभीत होने कि जरूरत नहीं वो हमारे जैसा ही होगा लेकिन परम विकसित.

हमें फिल्मों  में दिखाए जाने वाले काल्पनिक परग्रहियों को देखना बहुत पसंद है. भारत और विदेशों में परग्रहियों कि पृष्ठभूमि पर बनी अनेक फिल्मों ने लोगों को बहुत आकर्षित किया. उनका काल्पनिक रूप उनकी जिज्ञासा को और उड़ान देता है. किस्से, कहानियों, किताबों और फिल्मों में दिखाए गए परग्रहियों के साथ लोग काफी सहज अनुभव करते है. ऐसी फिल्मों ने करोड़ों का व्यापार किया है. ये फिल्मे तब तक बनती रहेंगी जब तक सचमुच कोई परग्रही हमें नहीं मिल जाता. तब तक आइये इस विषय और अपने परग्रही होने पर थोडा चिंतन मनन करें.

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