Menu
blogid : 7000 postid : 64

मायावती का मूर्ति प्रेम

make your critical life easier
make your critical life easier
  • 29 Posts
  • 47 Comments

यूँ तो मूर्तिया विश्व भर की विरासत का हिस्सा है और मूर्तियों के जरिये लोग अपने भाव, विचार और विभिन्न प्रकार के उपदेशों को चित्रित करते आये है. विश्व के हर देश में मूर्तियों का एक विशेष महत्त्व है जो समाज को बिना कुछ कहे ही गंभीर और हलके सन्देश देने की क्षमता रखती है. हम सभी बचपन से कोई न कोई मूर्ति देखते आये है चाहे वो मंदिर में हो, पार्क में, सड़क के किनारे, नदी किनारे, गली मोहल्ले में या कहीं भी. ये मूर्तियाँ हमारे मन पर एक विशेष प्रकार की छाप भी छोडती है. देवी देवताओं की मूर्तियाँ हमारे मन में उनके प्रति श्रधा और विश्वास पैदा करती है, समाज सेवकों की मूर्तियाँ हमें उनके कार्यों की याद दिलाती है. क्रांतिकारियों की मूर्तियाँ उनके बलिदान के प्रति नमन होना सिखाती है. कोणार्क और खजुराहो की मूर्तियाँ प्रेम और अनुराग जगाती है. मूर्तियों का इतिहास भी मानव जितना ही पुराना है. कभी पत्थर की दीवारों पर उकेर कर बनाई जाती थी फिर शिलाओं से, संगमरमर से, मिटटी से, विभिन्न धातुओं से यहाँ तक की लकड़ी से भी मूर्तियाँ बनाई जाती रही है.

देश काल और समाज के हिसाब से मूर्तियों की विषय वस्तु बदलती रही है पर मूर्तियों का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हुआ. कदाचित इन्ही गुणों के कारण, उत्तर प्रदेश राज्य की मुख्य मंत्री सुश्री मायावती ने अपने जीवन काल में ही अपनी मूर्तियाँ बनवाकर उन्हें जगह जगह स्थापित भी करवा दिया गया. उनकी मूर्तियाँ राजधानी के बड़े चौराहों, अनेक बड़े शहरों के बड़े बड़े पार्कों की शोभा बढाती है. शायद उन्हें इस बात पर संदेह रहा होगा के उनके बाद कोई उनकी मूर्ति लगाये या नहीं. इस कारण उन्होंने यह कार्य स्वयं ही कर डाला. ऐसा नहीं उन्होंने अपनी ही मूर्तियों पर ध्यान दिया, उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी के प्रतीक “हाथी” की भी बेशुमार मूर्तिया बना डाली. दलित वर्ग से सम्बंधित हर प्राणी को उन्होंने मूर्ति रूप दे डाला. अगर उन्हें सच्चा मूर्ति प्रेमी कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.

मूर्ति बनाने से भला किसी को ऐतराज क्यों होगा परन्तु फिर भी समाज की नज़रों में ये मूर्तियाँ चुभती है. उनका कहना है की इन पर बेशुमार पैसा खर्च किया गया है जो सरकारी पैसा है और ये पैसा लोग सरकार को कर के रूप में चुकाते है. अब ये तो बड़ी बेतुकी बात है. सरकार किसकी? जो मुख्यमंत्री हो. जब मुख्यमंत्री सरकारी है तो सरकार का पैसा भी तो उसी का है अब ये तो उसका विशेषाधिकार है ही के वो उससे मूर्तियाँ बनाये या सड़क बनाये. फिर भी लोग तर्क करते है की ये तो जनता का पैसा है उसका दुरूपयोग हो रहा है. अब भाई एक बात तो बताओ, क्या सुश्री मायावती मुख्यमंत्री बनने से पहले स्वयं “जनता” नहीं थी और इसके बाद वो जनता नहीं रहेंगी? जनता का पैसा जनता के हाथ से जनता के लिए ही तो खर्च हुआ है. अब अगर आप जनता है तो क्या आप इन मूर्तियों को नहीं देखेंगे? आप इनका आनंद नहीं लेंगे? क्या पार्क में लगी मूर्तियाँ आपका मनोरंजन नहीं करेंगीं?

जनता तो जनता अदालतें भी मायावती जी के मूर्ति प्रेम में बाधा पहुंचाती रहती है. कभी कहती है ये सब बंद करो. सारा निर्माण का काम बंद करा देती है. अब अगर तार्किक दृष्टि से भी देखा जाए तो क्या बनाना सही है? एक सड़क या एक मूर्ति? एक सड़क की आयु मुश्किल से साल भर होती है वो भी अगर वो ईमानदारी से बनायीं गयी हो वरना छः महीने में दम तोड़ देती है वो भी क्या करे आखिर कितने ट्राफिक को सहन करे. और एक मूर्ति की आयु? हजारों साल लम्बी अगर उस पर कोई जुल्म न ढाये तो लाखों साल भी हो सकती है. दोनों को बनाने में अगर बराबर क��� खर्च भी आये तो भी मूर्ति बनाना लाभप्रद है. पैसे की पूरी कीमत मिलती है. सड़क का क्या कितना भी खर्च करो सब नाली में. बरसात की बौछारें एक ही सीजन में करोड़ों रूपए की सड़क को मटियामेट कर देती है.

निंदा समाज का एक अहम् गुण है. ये हमेशा होती आई है, होती है और होती रहेगी आप चाहे अच्छा काम करें या बुरा काम या कोई काम ही न करें. निन्दित होना गर्व की बात है क्योंकि उसमे साहस है. समाज का क्या है चीख चिल्ला कर, कुछ गालिया बगैरह बक कर चुप हो जाता है. अब समाज के दर से कोई सृजन का कार्य तो नहीं छोड़ा जा सकता. मूर्तियाँ हमारे समाज की पहचान है. हमारी आन, बान और शान है. हमें उन्हें पूरी शानो शौकत से बनाना चाहिए. कोई भी कोताही न सिर्फ उनकी लम्बी उम्र के लिए नुक्सान देह होगी बल्कि उसके प्रतिरूप में भी ग्लानि भर देगी के इतना सा काम भी ढंग से नहीं हुआ. अगर हमें मूर्तियाँ देखने की आदत नहीं है तो हम उसकी आदत डाल लें. ये व्यक्तित्व विकास में सहायक है, ज्ञान का भंडार है. जितनी बड़ा व्यक्तित्व उतनी बड़ी मूर्ति. छोटी मूर्तियाँ छोटे व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करती है. और फिर बड़े का तो अपना ही महत्त्व है. अन्तरिक्ष से दिखने वाली चीज़े अगर बड़ी न हो तो कैसे दिखेंगी. मूर्ति भी जितनी बड़ी होगी दूर से देखेगी जैसे कभी अमेरिका के ट्विन टावर दिखते थे. अगर वो नहीं दिखते तो शायद आज भी होते.

इसमें बहस की कोई गुंजाइश नहीं है के मायावती जी को मूर्तियाँ बनानी चाहिए या नहीं. उनका ये अपना काफी उच्च विचार है जो काफी मौलिक भी है. इससे पहले किसी के दिमाग में नहीं आया. हमें उनके द्वारा बनाई गयीं मूर्तियों को सम्मान से देखना चाहिए आखिर ये आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सौगात है. ये एक तोहफा है जिसे अनुग्रह के साथ स्वीकार किया जाना चाहिए.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply