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मैं “सरकार” हूँ

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सावन भादों के कड़कते आंधी तूफ़ान के बाद जब एक भुतहा सी आकृति नज़र आयी तो जनता ने पूछा -तुम कौन हो?  तो एक सहमी सी, डरी हुई सी, मरी हुयी सी आवाज़ आयी, मैं “सरकार” हूँ भाई तुम मुझे नहीं पहचानते? बड़ी अजीब सी बात है. जनता उत्सुक हुयी, ये सरकार क्या होती है? अब सरकार के झुंझलाने की बारी थी. अबे इतने सालों से मुझे देख रहे हो फिर भी पूछते हो के सरकार क्या होती है. अब आगे का वार्तालाप “जनता” और “सरकार” के बीच.

जनता- ये सरकार होती क्या है ये तो बताओ?

सरकार- ये जनता द्वारा यानी तुम लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों की एक अदृश्य औलाद होती है. मुझे तुम लोगों के सेवा के लिए पैदा किया जाता है. मुझे तुम्हारे सुख दुःख का ध्यान रखने के लिए सृजित किया जाता है. देश के विकास के लिए मेरा होना अनिवार्य है अन्यथा तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता. मेरी शक्ति अपरम्पार है. उससे कोई मुकाबला नहीं कर सकता. समझे तुम अल्पबुद्धि?

जनता – तुम आदमी हो या औरत?

सरकार- मैं न आदमी हूँ न औरत कारण ये है के मेरे जन्म में कितने लिंग के लोग लगते है मुझे खुद पता नहीं लेकिन मुझे स्त्रीलिंग से ही संबोधित किया जाता है. लेकिन मुझे चलने वाले पुरुष ही होते है इसलिए मेरा अपना लिंग पता नहीं. तुम मुझे नपुंसक लिंग की श्रेणी में रख सकते हो. जैसे तुम जनता हो तुम्हारा क्या लिंग है? तुम्हे भी स्त्रीलिंग में ही संबोधित किया जाता है. तो क्या तुम स्त्री हो? इस लिंग भेद के चक्कर में न पड़ो जल्दी पूछो क्या पूछना है मुझे बहुत काम है.

जनता- तुम दिखाई क्यों नहीं देती हो?

सरकार- तुम बहुत भोली हो. क्या तुमने कुछ जिलों के नाम सुने है जैसे सिंघभूम, संत कबीर नगर, उत्तर कन्नड़, दक्षिण कन्नड़, भीम नगर, ऐसे बहुत से जिले है जिनके शहर है ही नहीं फिर भी उनका अस्तित्व है. वो कही भी दिखाई नहीं देते पर वो है. इसी तरह मेरा भी अस्तित्व है परन्तु मैं कोई देखने या दिखाई देने की चीज़ नहीं हूँ. समझे गुड्बक कहीं के. जरूरी नहीं जो चीज़ अस्तित्व में है तो वो दिखाई भी दे. अब भूत भी तो होते है क्या वो दिखाई देते है?

जनता- माफ़ करें सरकार जी आप उत्तेजित न हों. ये बताएं कि आपका जन्म कैसे हुआ या होता है क्योंकि आप की ज़िन्दगी तो बस पाच साल ही होती है इससे ज्यादा तो बहुत से खगों मृगों की होती है.

सरकार- मेरे लघु जीवन काल पर मत जाओ. जिनकी ज़िन्दगी लम्बी होती है वो क्या तीर मारते है जो में पांच साल में मार लेती हूँ. अच्छों अच्छों को पानी पिला देती हूँ, लोगों को उनकी औकात बताकर ठिकाने लगा देती हूँ. हाँ अफ़सोस यही है कि मेरा जन्म बड़ी कठिनाई से होता है. बिना बहुमत के लोग मुझे पैदा नहीं कर पाते तो कई दलों के लोगों को मेरे जन्म में हाथ बंटाना पड़ता है. मैं बहुवर्गीय संतान हूँ. अपने पैदा होने से लेकर मृत्यु तक यही दल मेरे माँ और बाप होते है.

जनता- कितना दुखद है तुम्हारा जन्म का वृतांत. बड़ी दया सी आती है. इतने माँ बापों कि कोख से पैदा होकर भी तुम्हारी सुरक्षा खतरे में ही रहती है. कभी कभी बीच में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाती हो क्यों?

सरकार- अब क्या बताऊँ इंसान तो अपने बच्चों को पल्स पोलिओ और टीकाकरण करवा कर बचा लेता है पर मेरे लिए किसी ने ऐसा टीका नहीं बनाया. लोग चाहते है मैं पैदा होते ही जवान आदमी कि तरह काम करूं. दूध पीने का भी मौका नहीं मिलता है. कोई भी बीमारी होने पर मुझे सीधा ICU में ही भेज दिया जाता है ताकि न बच पाने पर उसका दोष मेरे किसी माँ या बाप पर न लगे. मुझे सहारा देने वाले कई बार मुझे छोड़ देते है. अब कमजोरी होगी तो सहारा तो चाहिए न bhai ऐसे में गिरकर चोटिल होने या मर जाने का खतरा तो बना ही रहता है.

जनता-सचमुच कितनी दुखद कहानी है तुम्हारी. तुम्हे तो सीता से भी ज्यादा कष्ट उठाने पड़ते है. बार बार अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है. कैसे करती हो ये सब?

सरकार- कहाँ कर पाती हूँ. मुझसे तो लोग हनुमान की तरह उम्मीद लगा कर बैठ जाते है कि मैं हर लक्ष्मण के लिए हिमालय उठा लाऊँ. अब ऐसा थोड़े ही होता है. मेरा कोई भौतिक शरीर तो है नहीं जो गदाधारी भीम  की  तरह मल्लयुद्ध कर सकूं या अर्जुन कि तरह महाभारत में मुकाबला करू. मुझे तो अपने पालनहार मंत्रियों पर ही निर्भर रहना पड़ता है. वो ही मेरे सेनापति है. मेरी इज्ज़त आबरू सब उन्ही के हाथ में होती है. कुछ अच्छे होते है तो कमीनों कि भी कमी नहीं जो सरे बाज़ार मेरी नीलामी करने से भी बाज नहीं आते.

जनता- अच्छा सरकार जी एक बात और बताओ कि जब सारी जनता तुमसे ये उम्मीद करती है कि तुम उनके लिए कुछ करो तो भी कुछ होता नहीं और तुम सबकी आशाओं पर सर्दी के पाले कि तरह पड़ जाती हो.

सरकार- मुझे भी ये देखकर बहुत अफ़सोस होता है कि मैं तुम्हारी उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी हूँ. मेरे पालनहारों ने मुझे इस लायक रखा ही नहीं. हर पांच साल बाद होने वाले पुनर्जन्म से इस भवसागर से मैं मुक्त नहीं हो सकती. मैं अहिल्या की तरह शिला बनती जा रही हूँ और मुझे भी किसी राम सरीखे का इंतज़ार है जो मुझे मुक्ति दिलाये.

जनता- हमें तो बड़ी दया आ रही है लेकिन क्या करें अब तुम्हारा कल्याण करना हमारे बस में तो है नहीं फिर भी हम तुम्हारे लिए यही प्रार्थना कर सकते है कि तुम्हे शांति प्राप्त हो, तुम्हे मुक्तिदाता मिले जो तुम्हारे दृश्य विहीन अस्तित्व को सार्थक बना सके. ॐ शांति.

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