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हम “अडवांस” है

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पिछले दिनों मेरे एक मित्र ने फोन किया. हाल चाल पूछने के बाद बोले “यार आजकल चैट पर नज़र नहीं आते?” मैंने कहा “तुम्हे तो पता ही है के मैं चैट का शौक़ीन नहीं हूँ” वैसे भी मुझे चैट से ज्यादा फोन पर बात करना पसंद है. वो बोले, क्या यार अभी भी दकियानूस बने हुए हो. इस संचार क्रांति के युग में भी चैट नहीं. कुछ तो एडवांस हो जाओ. मुझे लगा कि चैट न हुआ एडवांस होने का कोई प्रमाणपत्र हो गया. और चैट न करना किसी अपराध से कम नहीं. बात तो उन्होंने बहुत छोटी सी कही थी पर मेरे तुच्छ दिमाग ने इसे कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया और लगा सोचने कि मैं कितना पिछड़ा हुआ हूँ. मैं चैट नहीं करता. धिक्कार है मुझ पर. लोग कितने एडवांस हो गए है.

दिमाग का कीड़ा कुलबुलाने लगा. एडवांस, एडवांस और सिर्फ एडवांस. आखिर ये एडवांस है क्या. क्या चैट करना ही एडवांस होना है. रहा नहीं गया तो पलटवार करने के लिए उन्ही मित्र को फोन लगाया और पूछा, भाई पिछले महीने आपकी शादी हुई है, क्या कुछ मिला? बोले बहुत कुछ मिला है बहुत मोटी पार्टी है मेरी ससुराल. मैंने पूछा अच्छा तुमने दहेज़ लिया है? बोले नहीं मैंने कहाँ लिया है वो तो उन्होंने दिया है. अपनी ख़ुशी से. मैं बोला, क्या दहेज़ में आई किसी चीज़ का तुम प्रयोग नहीं करते? बोले क्यों नहीं अब घर में है तो करना ही पड़ेगा. मैं कहा, ये भी एडवांस होना है न? जैसे चैट करके एडवांस होना? उधर से चुप्पी लग गयी. मैंने कहा घर कब आ रहे हो? डिनर पर आ जाओ. वो मान गए.

शाम को डिनर पर भेंट हुई थोड़े झेंपे हुए लग रहे थे. उनकी कलाई पर बंधा लाल पीले रंग का धागा देखकर मैंने उन्हें याद दिलाया कि आप पढ़े लिखे है फिर भी ये धागे बगैरह क्यों बाँध रखे है? बोले कि बस ऐसे ही घर में कथा थी सो पंडित जी ने बाँध दिया. अब फिर मेरी बारी थी. तो क्या ये भी एडवांस होना है बन्धु? कलाई और गले में रंग बिरंगे धागे बांधना किस तरह का एडवांस होना है. बोले नहीं ये तो धार्मिक कार्यों के कारण बांधे गए है. मैंने कहा कि भाई धार्मिक लोगों को तो कोई भी एडवांस नहीं समझता फिर? बोले नहीं ये सब तो करना पड़ता है. अपनी इच्छा हो या न हो दूसरों कि इच्छा का सम्मान तो करना ही पड़ता है. क्या लाजवाब तर्क दिया भाई ने. मैंने फिर उलझने कि कोशिश की. भाई आप दूसरों की इच्छा का सम्मान करते हो बड़ी अच्छी बात है पर अपनी इच्छा का सम्मान क्यों नहीं करते? बोले भाई उसकी नौबत ही नहीं आती कारण दूसरों के चक्कर में ही सारा समय, ऊर्जा खर्च हो जाती है.

डिनर से पहले मैंने पूछा क्यों न दो दो पेग हो जाए. बोले आज तो मंगलवार है आज नहीं पीते. मैंने कहा पीने का मंगलवार से क्या सम्बन्ध तो बोले आज हनुमानजी का दिन है. मैंने पूछा क्या आपने हनुमानजी का व्रत रखा है तो बोले नहीं. फिर मंगल को न पीने का कारण? बोले बस ऐसे ही. नहीं पीते है सो नहीं पीते है. मैंने कहा ये भी एडवांस होने की निशानी है क्या? अब झेंपने से उनका चेहरा लाल होने लगा था. लगता था अभी रो पड़ेंगे. बोले भाई बस करो बहुत जलील कर लिया. अब मैं आपसे कभी एडवांस होने की बात नहीं करूंगा. मैंने कहा क्यों नही करोगे? जब सांप के बिल में हाथ डाला है तो डंक तो सहना ही पड़ेगा. अब मैं बताता हूँ की एडवांस होना क्या होता है. तुम्हारे जैसे लोग सिर्फ शब्द सुनकर उनका प्रयोग करते है उनका अर्थ कभी जानने की कोशिश नहीं करते.

एडवांस होना चैट करना नहीं है, इन्टरनेट इस्तेमाल करना भी एडवांस होने की कोई निशानी नहीं है. ये भेड़ चाल है. एडवांस होने का कोई प्रमाणपत्र भी नहीं होता. आप एडवांस होते है अपने दिमाग से, अपनी सोच से, अपने कार्यों से. आपकी सोच जितनी विक�����ित होती जायेगी आपके कर्म भी उतने सार्थक होते जायेंगे. आप नए नए फैशन के कपडे पहन कर, बड़े बड़े घरो में रहकर, बड़ी गाड़ियों में घूमकर कभी एडवांस नहीं हो सकते. जब तक आपका ऊपरी माला एडवांस नहीं होगा तब तक सब बेकार है. किसी विषय पर आपकी अपनी राय, आपकी अपनी विवेक शीलता, आपकी अपनी कल्पना शीलता, ये सब मिलकर आपको एडवांस बनाते है. कूप मंडूक विचारधारा के साथ, संकीर्ण सोच के साथ आप कभी एडवांस नहीं हो सकते. मंगल को दारु न पीकर या नॉन वेज न खाकर आप एडवांस नहीं हो सकते. अगर हो सकते है तो अपनी स्वतंत्र दूर दृष्टि, विवेक का समयानुसार प्रयोग करके. अपने अंतस में झांकिए जो आप कर रहे है वो कितना समय के अनुकूल है उसकी कितनी उपयोगिता है.

केवल तकनीक, संचार क्रांति, भौतिक सुख साधनों की बहुलता आपको एडवांस नहीं बनाती आपको हर कदम पर ये तय करना होगा की आपके पिछले कदम में कोई जंजीर तो नहीं जो आपको पीछे खींच ले. आगे कदम तभी बढेगा जब आपका पांव आज़ाद होगा. आपके दिमाग की स्लेट पर कोई भी नई इबारत तभी लिखी जा सकेगी जब पुरानी इबारत मिटेगी. धो डालिए अपने दिमाग की स्लेट को और लिखिए नई इबारत. अपना दर्शन, अपनी पहचान बनाइये तब होंगे आप एडवांस. दूसरो की कही गयी बातें दुहरा कर कोई बुद्धिमान नहीं हो जाता जब तक वो अपना तर्क न करे. इसी तरह भेड़ बकरियों की तरह कुछ रटे रटाये शब्दों को बोल कर कोई एडवांस नहीं हो जाता जब तक वो अपना विवेक इस्तेमाल न करे. हममे से कितने लोग एडवांस का सही अर्थ समझाते है? हमारा देश आज भी दूसरे मुल्को से सैकड़ों साल पीछे क्यों है? कारण साफ़ है. उन्होंने अपनी बेड़ियों को तोड़ दिया. हर उस चीज़ को बदल दिया जो उनकी उन्नति में बाधक बनी.

हम आज तक जातिवाद, सम्प्रदायवाद, क्षेत्रवाद, से कभी आगे नहीं बढे. जिन्होंने बढ़ने की कोशिश की उन्हें पीछे खींच लिया. हमें सगोत्र विवाह पसंद नहीं. हम ये ही नहीं जानते की गोत्र आया कहाँ से. हम अपना अधिकांश समय, धन और ऊर्जा इन्ही अनुत्पादक कामों में खर्च करते है और बाकी अपनी आजीविका कमाने में. अब और किसी बारे में सोचने का तो समय ही नहीं बचा. हमनें हर जगह लक्ष्मण रेखाएं खींच रखी है और हम दम भरते है कि हम एडवांस है. सोचिये, सौ बार सोचने कि जरूरत है कि हम कितने एडवांस है.

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