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होनी तो होके रहे…

make your critical life easier
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हम अक्सर ये जुमला पढ़ते और सुनते है लेकिन क्या हमने कभी इस पर बारीकी से गौर किया है कि होनी और अनहोनी में क्या फर्क है? क्या वास्तव में हर घटना होनी है और हर हाल में होकर रहती है? मैंने भी अभी अपने घर में अपने ऐसी ही अनहोनी देखी है जिसे होनी का नाम दिया गया. इस दुर्घटना में मेरे अनुज की पत्नी सहित मौत हो गयी. काफी विश्लेषण के बाद ऐसा लगा कि इस दुर्घटना को रोका जा सकता था पर उसे रोकने के उपाय करने वाला नहीं था. हर दुर्घटना को होनी का नाम देने से हम शायद उससे भविष्य के लिए कोई सीख भी नहीं लेते. आइये थोडा सा गौर करते है कि होनी और अनहोनी क्या है. अगर हर घटना या दुर्घटना होनी है तो अनहोनी जैसी कोई चीज़ बचती ही नहीं है. अनहोनी यानी कि अनपेक्षित, अकस्मात् होने वाली घटना है वही होनी एक अपेक्षित और संज्ञान में पहले से आने वाली घटना है. यानी सूक्ष्म तौर पर कोई भी घटना अनहोनी नहीं है. क्या ये हमारा भ्रम है कि हम अमुक घटना को रोक सकते थे अगर ऐसा होता?

लेकिन ऐसा होता नहीं है. कोई भी घटना कभी रोकी नहीं जा सकी है चाहे वो प्राकृतिक हो या मनुष्य द्वारा विनिर्मित. हम विश्लेष्णात्मक दृष्टि से बहुत से उपाय बताते है कि ऐसा करने से अमुक घटना रुक सकती थी पर व्यवहारिक तौर पर ऐसा कुछ नहीं होता. घटना घटित होकर ही रहती है यानी होनी होकर ही रहती है और उसके पीछे रह जाता है एक अनर्गल प्रलाप. आखिर ये सब होता कैसे है? क्यों हम किसी भी घटना को नहीं रोक पाते? इसके लिए हमें भौतिक जगत से निकल कर सूक्ष्म जगत की तरफ जाना होगा. भौतिकी के अनुसार हर पदार्थ का एक प्रति पदार्थ होता है. इसी प्रकार भौतिक जगत का भी एक प्रति पदार्थ सूक्ष्म जगत है. भौतिक जगत जहाँ त्रि आयामी है वही सूक्ष्म जगत बहु आयामी है. बहु आयामी होने के कारण ही उसकी गति तीव्र है और भौतिक जगत की धीमी. यानी सूक्ष्म जगत अग्रसर है और वहां होने वाली हर घटना का बिम्ब भौतिक जगत पर पड़ता है.

पूर्वाभास, छठी इन्द्रिय, भविष्य कथन आदि सब का आधार सूक्ष्म जगत ही है. जो सूक्ष्म जगत तक अपनी पहुँच बना लेते है वो ये सब कर सकते है. हम वहां जाकर देख सकते है कि क्या होने वाला है. सटीक भविष्यवाणी का आधार सूक्ष्म तक पहुँच जाना ही है. पूर्वाभास हमें सूक्ष्म तरंगो से होता है. यदि हमारा मष्तिष्क परिष्कृत है तो हम थोड़े प्रयास से ही पूर्वाभास में निपुण हो सकते है. छठी इन्द्रिय या तीसरी आँख का भी यही सिद्धांत है. वैसे भी हमारी हर चीज़ चाहे वो जीवन हो मरण हो स्वास्थ्य हो या खाना पीना, मोटे तौर पर सब पूर्व निर्धारित है और उसी के अनुसार हम यहाँ जीवन भोगते है. सूक्ष्म जगत हमारे भविष्य की खिड़की है. हम उसे बदल नहीं सकते केवल हम आने वाली घटना या दुर्घटना के लिए खुद को मानसिक और शारीरिक तौर पर तैयार कर सकते है. मृत्यु उपरांत वैसे भी हमारी जगह सूक्ष्म लोक में ही है जहाँ से हम अपने सगे सम्बन्धियों को संकेत भेज सकते है. उनके शुभ और अशुभ की जानकारी दे सकते है. सूक्ष्म शक्ति शाली है अपार संभावनाओं का क्षेत्र है. समय और दूरी की सीमाओं से परे है. बहु आयामी होने से उसकी शक्ति अपार है. देश, काल, परिस्थति, मौसम, विषम आदि सबसे परे है. अपदार्थ होने के कारण कोई बाधा नहीं है.

ये एक रहस्य का विषय बना कर रखा गया है ताकि कोई इसका दुरूपयोग न कर सके. फिर भी मेरे विचार से की कुछ लोग किसी अच्छी चीज़ का गलत फायदा उठा लेंगे ये सोच कर उसे प्रयोग ही न किया जाए ये उचित नहीं. हमें अपने भविष्य की खिड़की में अवश्य झांकना चाहिए. इसके लिए जरूरत है दृढ इच्छा शक्ति की और उससे भी ज्यादा उसका महत्त्व समझाने की. जब हमें किसी चीज़ की महत्ता का अनुभव नहीं होता हमारा शरीर और दिमाग उसे करने के लिए कभी तैयार नहीं होता. आध्यात्म सूक्ष्म का विज्ञानं है मात्र भजन पूजन और कीर्तन आध्यात्म नहीं है. ये जीवन को नई दिशा दे सकता है. ये आपकी सोच के साथ आपका जीवन बदल सकता है. आवश्यकता है केवल इसके महत्त्व को समझने की. हमें अपने उद्गम स्थल की जानकारी होनी चाहिए. हम कहाँ से आते है, हम क्यों आते है, हमारे आने का उद्देश्य और औचित्य क्या है, हमें इन सवालों पर मनन करना चाहिए. भौतिक जगत की चका चौंध हमें इस बारे में सोचने नहीं देती लेकिन अंततः हमें उसी सूक्ष्म में जाना है तो क्यों न थोड़ी पहले से तयारी कर ली जाए.

हमें अपने मूल को पहचानना जरूरी है. बिना मूल की पहचान के फूल पत्तियों को चुनते रहने से कुछ हाथ नहीं लगेगा. यही ज्ञान है. इसके सिवा कुछ भी नहीं. हमें हर शुभ और अशुभ के लिए मानसिक और शारीरिक तौर पर तैयार रहना चाहिए. कष्ट उन्ही लोगों को ज्यादा होता है जो इसके लिए तैयार नहीं होते. हम यही सोचते है की हमारे साथ हमेशा अच्छा ही होगा लेकिन हमें ये भी सोचना चाहिए की जिन लोगों के साथ अशुभ हो रहा है वो भी ऐसा ही सोचते थे. अशुभ से बचाव मात्र उसके लिए तैयार रहना ही है. अपने आपको हर हाल में संतुलित रखते हुए हमें हर शुभाशुभ के लिए तत्पर रहना होगा. क्यों न हम ये प्रयास आज ही प्रारम्भ करें?

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