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अन्ना का मयखाने पर आक्रमण

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अन्ना आजकल बहुत आक्रामक होते जा रहे है. अभी पढ़ा, सुना और टीवी पर देखा कि वो किस तरह शराबियों पर लगाम कसना चाह रहे है. पहले उन्हें समझाने की बात करते है फिर उन्हें मंदिर में कसम दिलाने की बात करते है और फिर उन पर डंडे बरसाने की बात करते है. ऐसा नहीं लगता कि अन्ना पूरी दुनिया को अपनी लाठी से हांकना चाहते है? अभी तक तो लोकपाल बिल पर महाभारत हो रहा था अब शराबियों पर नज़र टेढ़ी कर रहे है. मुझे ये समझ में नहीं आ रहा कि अन्ना को शराब से चिढ है या शराबियों से. वैसे तो उनके ऊपर गाँधी वादी होने का भी ठप्पा लगा है पर जहाँ तक मुझे याद पड़ता है गाँधी जी ने कभी शराबियों को डंडों से पीटने की बात नहीं कही थी. उनका नारा भी यही था कि “पाप से घृणा करो पापियों से नहीं” इसके पीछे उस बुराई को ही समाप्त करने की बात थी जिसे लोग अपना लेते है. यहाँ तो उल्टा हो रहा है. अन्ना तो पापियों यानी कि शराबियों से ही घृणा करते है और शायद शराब से नहीं.

अगर ऐसा होता तो वो शराबियों को पीटने के बजाय उन शराब कि भट्टियों को तोड़ने की बात करते जहाँ शराब बनाई जाती है. उन वितरकों पर अपना गुस्सा निकालते जो उसे बेचते है. ये तो कुछ ऐसा ही है कि ख़राब पेड़ को ख़तम करना है तो उसके फूल पत्तियों को नोचना शुरू कर दो. ऐसे क्या पेड़ ख़त्म होगा? क्यों नहीं उसकी जड़ पर हमला करते हो अन्ना जी? क्यों नहीं अपनी गाँव के आसपास की शराब भट्टियों और सरकारी शराब की दुकाने बंद करते हो? क्यों नहीं इसके लिए अनशन करते हो कि सरकार शराब के परमिट देना बंद करे. सरकारी शराब के ठेकों की नीलामी बंद करे? क्या शराबियों को पीटने भर से शराब पीने की समस्या ख़त्म हो जायेगी? क्या अन्ना का टार्गेट सिर्फ अपना गाँव है या ये भी समाज सुधार का अजेंडा है?

अन्ना जी यदि आप वाकई चाहते है लोग शराब न पियें तो वो डंडों से भी नहीं सुधरेंगे. कोई भी सामाजिक बुराई कभी रातों रात ख़त्म नहीं की जा सकती. इसमें बहुत समय लगता है. उसकी तहों तक जाना पड़ता है. ये काफी बचकानी बात लगती है कि कुछ शराबियों को पीटने भर से ये समस्या ख़त्म हो जायेगी. जहाँ तक हिंदुस्तान की आदर्शवादिता की बात है तो जग जाहिर है कि शराब के धुर विरोधी स्वयं गाँधी जी के निज प्रदेश तक में शराब का क्या हाल है. शराब पीने से कितनी मौतें होती है. अन्ना जी यदि आप सचमुच इस बुराई के खिलाफ है तो शराबियों से नहीं शराब से घृणा कीजिये तभी बात बनेगी. एक अनशन शराब के नाम पर भी हो जाए. सरकार को अपनी नीतियों में बदलाव के लिए राज़ी किया जाए. सरकार अपना लालच कम करे. शराब की फैक्ट्री में तालाबंदी करवाई जाए. जब न होगी शराब तो पीने वाले कहाँ से पियेंगे?

वैसे भी आजतक किसी भी प्रदेश या केंद्र सरकार में शराब बंदी की ऐसी कोई भावना जागृत नहीं हुई है. कारण इससे मिलने वाला धन खजाने में आने वाले किसी भी और धन के मुकाबले बहुत ज्यादा होता है. जब आदमी बीस रूपये से बनी बोतल दो सौ रूपए में खरीद कर पीता है तो समझ सकते है मुनाफा कितना है. कैसी बिडम्बना है की एक तरफ सरकार खुद शराब बनवाती है और बेचती भी है फिर भी उसका समाज कल्याण विभाग अपने शराब विरोधी विज्ञापनों पर करोडो रूपए खर्च करता है. इसका कोई तर्क नहीं मिलता. आखिरकार सरकार को भी राज्य और देश चलने के लिए पैसा चाहिए. अब समाज में सभी तो शराबी नहीं होते. कुछ लोग इस बुराई के शिकार है भी तो उनके मूल्य पर बहुत से लोग रोज़गार पाते है. अगर सरकार शराब पर पूरी बंदिश लगा दे तो क्या होगा? हाहाकार मच जाएगा. उसके समर्थन में धरने प्रदर्शन होने लगेंगे. लाखों लोगों को रोज़गार का संकट खड़ा हो जाएगा. तब क्या होगा? यही तो सरકારી तर्क है.

वैसे भी अन्ना जी आप किस किस को किस किस प्रदेश में जाकर डंडों से पीटेंगे? इससे बेहतर तो यही होगा कि इस बुराई के मूल को ही उखाड़ने का प्रयास करें. हम सब आपके साथ है.

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