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जिम्मेदार विपक्ष के रूप में भी असफल है कांग्रेस

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बहुदलीय लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है | राजनीती शास्त्र के बहुत से विद्वान तो विपक्ष के अस्तित्व के बिना लोकतंत्र को अधूरा ही मानते हैं | ऐसे में सत्ता-पक्ष क्या कर रहा है इस बात के मूल्यांकन की तरह ही, विपक्ष की भूमिका का मूल्यांकन भी आवश्यक है | वैसे तो पिछले लोकसभा चुनावों में किसी भी विपक्षी दल को इतनी सीटें नहीं मिली कि, उसे मुख्य विपक्षी दल का दर्जा दिया जा सकें; फिर भी विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते; विपक्षी दल की भूमिका को निभाने की सबसे अधिक जिम्मेदारी उसीकी बनती है | पिछले 13 महीनों में कांग्रेस के क्रिया-कलापों को देखें तो वे किसी भी दृष्टि से संतोषजनक नहीं लगते हैं |
विपक्ष का सबसे महत्वपूर्ण काम है कि वह सरकार और उसके सभी घटकों के काम-काज पर पैनी नजर रखे और हर गलत या संदेहास्पद कदम की आलोचना करे या प्रश्न करे; बेहतर बनाने के लिए सुझाव दे, आदि | जहाँ कहीं नियम-विरुद्ध आचरण की या भ्रष्टाचार की शंका हो, वहां जाँच की मांग करे और यदि ठोस साबुत हो तो इस्तीफे एवं क़ानूनी कार्यवाही की मांग भी करे | कांग्रेस इन सभी अपेक्षाओं के विपरीत आचरण कर रही है | कहीं तो सरकार की ताड़ जैसी गलतियों पर चुप है और कहीं तिल का ताड़ बना रही है |
इन दिनों जिस तरह से कांग्रेस ने संसद के दोनों सदनों में काम-काज को ठप्प करवाया है; वह गैर-जिम्मेदारी ही नहीं, हठधर्मिता की भी पराकाष्ठा है | कांग्रेस भाजपा के दो मुख्यमंत्रियों और विदेशमंत्री सुषमा स्वराज का इस्तीफा मांग रही है और धमका रही है कि, जबतक इस्तीफे नहीं होंगे तबतक संसद को नहीं चलने देंगे; जैसे संसद को चलाने में अकेले सरकार की ही गरज हो; भाजपा का ही हित हो, देश व जनता का नहीं | अब क्या कांग्रेस नेताओं को यह भी समझाना पड़ेगा की संसद सरकार व सत्तारूढ़ पार्टी के लिए नहीं, देश व उसकी जनता के लिए बनी है और उसमें जनता के हितों के लिए ही काम होना चाहिए | उसमें एक दिन काम नहीं होने का मतलब देश के करोड़ों ही नहीं अरबों रुपयों का नुकसान है | खासतौर पर इन दिनों जबकि कई अत्यंत महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों के बिल विचाराधीन है, जैसे GST बिल, भूमि अधिग्रहण बिल, आदि |
कांग्रेस जिस जिद भरी मांग को लेकर ऐसा कर रही है, वह कुतर्कों पर आधारित है | सुषमा स्वराज के मामले को देखें तो भ्रष्टाचार जैसा मामला बनता ही नहीं है | मुद्दे की बात यहाँ यह है कि, ललित मोदी केवल संदिग्ध आरोपियों की सूचि में शामिल है; उनके खिलाफ आजतक न तो कोई चार्ज-शीट बनी है, न कोई सम्मन जारी हुआ है | इसलिए न तो उसे अपराधी कहा जा सकता है, न भगोड़ा | ऐसे में यदि सुषमा स्वराज ने कीथ वाज़ को फ़ोन पर यह स्पष्टीकरण दिया था कि, ब्रिटिश सरकार अपने नियमों के अनुसार उसे ब्रिटेन आने देने के बारे में निर्णय कर सकती है, तो इसमें क्या गलत हुआ ? फिर जब मंत्री खुद संसद में बयान देना और बहस का सामना करने के लिए तैयार है; तो फिर उनकी बात सुने बिना ‘पहले इस्तीफा’ की जिद पर अड़ने का क्या औचित्य है ? वसुंधरा राजे से इस्तीफे की मांग भी ललित मोदी मामले से ही जुडी है; इसलिए वह भी इन्ही आधारों पर अनुचित कही जायेगी |

वसुंधरा और शिवराजसिंह के इस्तीफों की मांग संसद में करने को तो इसलिए भी अनुचित मानना चाहिए कि, राज्य के मुख्यमंत्रियों के इस्तीफे तो राज्यों के फोरम पर ही मांगे जाना चाहिये | संसद में तो राज्यों के मामले अत्यंत गंभीर स्थितियों में ही उठाये जाना चाहिये | सरकार के प्रवक्ताओं का यह तर्क बिलकुल सही है कि यदि इसी तरह राज्यों के मुद्दों की चर्चा होती रही, तो फिर भाजपा की ओर से तो तीन कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के इस्तीफें मांगे जायेंगे | इस तरह तो कांग्रेस ही अधिक नुकसान में रहेगी |
दूसरी ओर इन 13 महीनों का मोदी सरकार का शासनकाल कोई निर्दोष नहीं रहा है, कि जिससे कांग्रेस के पास सरकार की आलोचना के मुद्दे ही न हो | परन्तु, सरकार की कई बड़ी गलतियों पर कांग्रेस चुप रही है | विकास नीति-सम्बन्धी विषयों पर तो जैसे कुछ अध्ययन करना ही छोड़ दिया है | सरकार ने शिक्षा, चिकित्सा आदि सामाजिक सेवाओ के बजट को बहुत घटा दिया; कांग्रेस चुप रही | सभी तरह के सेवा कर को बढ़ा दिया; कांग्रेस चुप रही | स्मार्ट सिटीज के मामले में शहरों के बीच प्रतियोगिता के नाम पर अफसरों के बीच प्रतियोगिता करवाई; कांग्रेस चुप रही | एक भी स्मार्ट शहर की योजना बने बिना ही पहले 7060 करोड़ फिर 48 हजार करोड़ का वित्तीय आवंटन घोषित किया; कांग्रेस चुप रही | यह भी नहीं पूछा कि, शहरीकरण की तीन योजनाओं के बनने की प्रक्रिया ओर वित्त प्रबंधन कैसे होगा ? विदेश मंत्रालय के काम पर भी प्रधानमंत्री ही छाये रहे, विदेशमंत्री की अहमियत को काम कर दिया गया; कांग्रेस चुप रही | यानि ऐसे कई बड़े मुद्दे कांग्रेस को ललित मोदी के ट्रेवल डॉक्यूमेंट से छोटे लगे |
कांग्रेस सत्ताधारी दल के रूप में नाकाम रही; इसीलिए पिछले आम-चुनावों में सत्ता से बेदखल होकर गिनी-चुनी सीटें ही पा सकी | अब यदि विपक्षी दल के रूप में भी उसके यही हाल रहे तो वह इतनी सीटें भी नहीं बचा पायेगी | कांग्रेस का ऐसा पराभव हमारे लोकतंत्र के लिए भी बहुत बुरा होगा; क्योंकि तब संभव है कि हम एक नगण्य विपक्ष या विपक्ष विहीन दौर में चले जाये | चूँकि, कांग्रेस के अलावा अन्य सभी दल तो क्षेत्रीय दल ही है; जिनके पास राष्ट्रीय दृष्टिकोण या विजन नहीं है | इसलिए कांग्रेस नेताओं में सद्बुद्धि आना या कांग्रेस में पुनर्जीवन/ कायाकल्प होना देश के लिए भी खुश-खबर होगी |

हरिप्रकाश ‘विसंत’

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