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होली है भई होली है ! रंगों के साथ कविता शायरी

jagate raho
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इन वीरानों में अपने को ढूंढता हूँ,
यकीन नहीं होता की मैं खो गया हूँ !! १ !

घर से चला था होली खेलने, रस्ते में एक मित्र मिल गए,
दुवा सलाम हुई, मित्र चले गए, मैं कहाँ जा रहा हूँ, मुझे याद ही नहीं ! 2 !

होली है भई होली है, बच्चे रंग लगा रहे थे,
आने जाने वालों पर पिचकारी मार रहे थे !
मैं खड़ा खड़ा सोच रहा था, ये कैसा जहां है,
‘ रंगो की वरसात तो है’ पर होली कहाँ है ! ३ !

भैया, अब लाल गुलाबी रंग हैं होलिका नहीं,
सदियों पहले होलिका दहन में होली जल गयी ! ४ !

जागरण जंक्शन के पूरे भरे परिवार को होली की शुभ कामना करता हूँ ! हरेंद्र रावत

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