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स्कूल आँगन में पाँव पड़ा थे सामने गुरु महाराज,
विद्या बुद्धि विकसित हुई, हुआ गुरु पर नाज,
हुआ गुरु पर नाज, गुरु ने राह दिखाई,
उसी राह पर चलते चलते हमने मंजिल पायी !
कहे रावत गुरु की महिमा, महाभारत में आई,
धनुर्धर अर्जुन ने शिक्षा गुरु द्रोण से पाई ! १ !
वशिष्ट मुनि गुरु थे चेले थे श्रीराम,
विश्वामित्र के आश्रम में सीखा धनुष वाण !
सीखा धनुष वाण, ताड़िका खर दूषण मारे,
वनवासी राम लखन ने रावण कुम्भ करण संहारे !
कहे रावत कविराय द्वापर में कृष्ण सुदामा,
धरती पर गुरु बड़ा है, इंद्र वरुण ने माना ! २ !
कविता तो पूरी हुई, अब करो इक काम,
हाथ जोड़कर गुरूजी को सभी करो प्रणाम,
सभी करो प्रणाम और जय जय पवन धाम,
शान्ति पवित्रता, स्वच्छता मंदिर की पहचान !
अशुद्धियों पर श्रोताओ मत देना तुम ध्यान,
गुरूजी करवाएंगे तुम्हे ब्रह्म की पहचान ! ३ !
ये कविता मैंने २५ अगस्त २०१८ को, श्री परम हंस अद्वैत मठ के लिए तैयार की थी ! मैं उस दिन वहीं लॉन्ग आइलैंड न्यूयोर्क यूएसए में मंदिर में था, उस दिन आनंद साहेब से गुरूजी आए हुए थे ! काफी दूर से मंदिर में जाना था, समय पर नहीं पहुँच पाए ! एक अच्छा अनुभव हुआ की जहां हम भारत में भगवान् रामचंद्र जी की जन्मभूमि अयोध्याजी में राम मंदिर नहीं बना पा रहे हैं, वहीं यहाँ अमेरिका में हर प्रदेश में दो दो तीन तीन मंदिर हैं ! अमेरिका में बहुत बड़ी संख्यां में हिन्दुस्तानी रहते हैं, जो सब मिलकर अपनी भारतीय संस्कृति के दीपक को प्रकाशित करने में अपना भरपूर सहयोग देते हैं और अब ये संस्कृत का पौधा एक मजबूत वृक्ष की आकृति में आने लगा है !
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