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गजल

jagate raho
jagate raho
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गीत के सुर को सजा दे , साज ऐसा चाहिए
दिल तलक पहुँचे सदा अल्फ़ाज़ ऐसा चाहिए

कुछ छिपायें कुछ बतायें, फितरतें इंसान की
जब खुले खुशियाँ बिखेरे , “राज ” ऐसा चाहिए

राह खुद अपनी बनाये फिर सजाकर मंज़िलें
रुख हवा का मोड़ दे ‘अंदाज़’ ऐसा चाहिए

जीत ले हर एक बाज़ी हौसले के जोर से
नाज़ हो अंजाम को, “आगाज़” ऐसा चाहिए

जो हटे पीछे कभी ना, जंग में डटकर लड़े
वीरता भी हो फिदा , “ज़ांबाज ” ऐसा चाहिए

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