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यादों की बरात आई, बचपन पंख पसार,
जीवन की पगडण्डी, बचपन दरिया पार,
बचपन दरिया पार, ये हैं मैथिलीशरण गुप्त,
कल के स्टार कवि, आज नाम हो रहे लुप्त !
मीठी मीठी कवितायेँ, है मधु सा स्वाद !
जीवन सुधर जाएगा, करलो इनको याद !
“सब लोग हिलमिल कर चलो, पारस्परिक इर्षा तजो,
भारत न दुर्दिन देखता मचता न महाभारत जो !”जयदर्थ बध )
इर्षा से ही कौरवों का पांडवों से रण हुआ,
जो भव्य भारवर्ष के कल्पान्त का कारण हुआ !
ये हैं सुभद्रा कुमारी जी चौहान –
बुंदेलों के मुंह सूनी थी हमने कहानी,
“खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसीवाली रानी थी” !
कबीर, सूर, तुलसी, केशवदास !
सूर, सूर, तुलसी शशि, उड़गन केशवदास,
अब के कवि खद्योत सम जंह तंह करत प्रकाश !
सूरदास
“चरण कमल बन्दों हरि राई, जाकी कृपा पंगु गिरी लगे,
अंधे को सब कुछ दरसाई, बहरो सुने मूक पुन: बोल्यो,
रंक चले सिर छत्र धराई, सूरदास स्वामी करुणा मय,
बार बार बन्दों तेहि पाई “!
तुलसीदास
“मनोजवम मारुतुल्य वेगम जितेन्द्रियम बुद्धि
वातात्मजं वानरयूथ मुख्यम श्रीराम दूतं शरणम प्रपदे
कबीरदास
कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर !
पता टूटा डाल से पवन लेगई उड़ाय,
अबके बिछुड़े कब मिलें दूर पड़ें हैं जाय !
राम राम रटते रहो जब तक घट में प्राण,
कभी तो दीन दयाल की भनक पड़ेगी कान !
आछे दिन पाछे गए गुरु से किया न हेत,
अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत !
मेरी कवितायेँ
मैं कवितायेँ पढ़ रहा था, सुन रहा खरगोश था,
फुहारों के बीच बैठा चुपचाप खामोश था.
श्रोता वहां चिड़ियाँ भी थी, गिलहरियां दो पेड़ पर,
‘पेड़ पौधे शांत थे सब कविता इन्हीं पे कर’ !
थी अम्बर पे काली घटाएं, वे सभी खामोश थे,
कविता सुनने वाले हर प्राणी हो रहे मदहोश थे !
फूलों की क्यारी सांमने फूलों भरी खुशबू लिए,
मस्त होकर झूमती कलियाँ थी बिन पिए,
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