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सैनिक तू महान है

jagate raho
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छोटों को आशीष, बड़ों को प्रणाम,

हरेन्द्र रावत है इस पूर्व सैनिक का नाम,

जन्म भूमि उत्तराखंड में है पौड़ी गढ़वाल,

जो सैना को देता पाँच सौ सैनिक हर साल !

चंद्र सिंह गढ़वाली पेशावर काण्ड का नायक,

आज भी उत्तराखंडी सैनिक का है प्रेणणादायक !

ये कहानी उन सैनिकों की जो सीमा पर थे अटल खड़े,

एक गोली एक दुश्मन,  दुश्मनों पर पिल पड़े !

तन बदन गोलियों से छलनी हुआ,

जोश तो था  वही, देशवासियों की थी दुवा !

मारे दुश्मन सारे,   गिर पड़े गोद में माँ धरती के,

उन्हें समान सहित लेने, स्वयं यमराज आए,

वीरता के लिए चक्र, स्टार, मैडल मरणोंपरांत पाए,

सैनिक तेरी यही कहानी,

देश पर न्योछावर तेरी जवानी।

जब तू धरती पर आया,

अन्न, जल, सांशे गिन के लाया,

साथ तेरे था  रोड मैप,

पहनी तुमने फौजी कैप !

मेरा जयहिंद उनको,

जो लड़ते लड़ते पंछी बन उड़ गए,

थे गिरे धरती पर आसमानी होगये,

जिस्म उनके धरा पर,

तिरंगे में लिपटे हुए, संतोष था चेहरे पर बिना कुछ कहे !

फूल बरषा हो रही थी, जयहिंद जैकारा !

भारत माता की जय गगन में गूंज रहा था नारा !

थे पड़े धरती पर आसमानी होगए,

धन्य हैं माँ बाप जिनकी गोदी में वे मुस्कराए,

बहिन से रक्षा रूपी राखी थी जिन्होंने बँधवाए,

सिर झुका है प्रणाम मेरा, जिन्हें

गोली लगी  धरती गिरे, आसमानी होगए ! इतिहास के पन्नों में नाम अपना कर गए !

एक नन्नी बच्ची नेअपने पापाको मुखाग्नि दी,

हजारों नेत्रों से अश्रुधाराएँ गिरी,

कुछ शहीदों की पत्नियों ने तो ऐसी हिम्मत दिखाई,

“बेटा भी सैनिक बनेगा”, अपने परिजनों को बताई !

एक बार मौनी बनकर करो उनका ध्यान,

जिनके गिरे रक्त बिन्दू से भारत बना विश्व महान ! जय हिन्द जय भारत

 

 

दो शब्द हिमालय ड्रग्स कंपनी के नाम

मैंने भी सुना कंपनी का नाम है अपने भारत में नंबर वन,

यहाँ पहुँचने के लिए पक्का इरादा, परिश्रम और चाहिए दम ।

पशीना बहाया मेहनत की गाड़ी पटरी पर आई,

मालिक, मैनेजमेंट और कर्ता-धर्ता की मेहनत काम आई,

दो कंपनी वालों को बधाई,  जोर से ताली बजाओ,

हिमालया डृग कंपनी की हर भारतवासी से पहचान कराओ !

जयहिंद जय भारत

हरेन्द्र रावत  20 अप्रेल 2019

 

 

कुदरत संग इंसान

जीवन के इस सफर में झेला, हवाएँ गरम और ठंडी !

कही मिले सहयात्री राह में, थी सजी सजाई मंडी !

कुछ पाया कुदरत से मैंने कुछ पास था मेरे खो डाला,

संतों का संपर्क मिला,  वहीं दुष्टों से पड़ गया था पाला !

कहीं  था नदियों का कल कल, कहीं पर्वत से गिरते झरने,

कहीं कहीं घास चरते देखे  बारहसिंघ  संग हिरने !

कहीं गगन चूमती पर्वत माला ओढ़े दुशाला बर्फीले,

कभी चलता प्रचंड धूप में, कभी  नील गगन के नीचे !

रिम झिम रिम झिम वारीश में नाचते देखे   मोर,

आम की डाली पर बैठी सुनता कोयल का  शोर !

ये कुदरत रंग रंगीला है कहीं लहराता समुद्र है,

किनारे बैठा लहर गिनता यही कवि हरेन्द्र है !

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