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कबीरदास जी ने अपने दोहों के जरिए साधारण भाषा में जन जन तक अपना संदेश पहुंचाया है। उन्होने जहां असलियत से इन्सानों को अवगत करवाया। वहीं, किसी कुकर्मी के कुकर्मों का जबाब भी बड़े प्रेम से दिया है। पढि़ए कबीरदास के कुछ दोहे।
जो तो को कांटा बुए, ताही बोई तू फूल,
तो को फूल के फूल हैं वाको मिले त्रिशुल !
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय,
औरन को शीतल करे, आपन शीतल होइ !
निर्बल को न सताइए, जाकी मोटी हाय,
मुई खाल की शांस सो सार भस्म हो जाय !
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब,
पल में परलय हो गई, बहुरि करेगा कब !
बुरा जो देखन मैं गया बुरा मिला न कोई,
जो दिल देखा आपनो, मुझसे बुरा न कोई !
मिट्टी कहे कुमार से तू क्या रौंदे मोइ,
एक दिन ऐसा आएगा मैं रुंदूंगी तोय,
कंकण पत्थर बांध कर मस्जिद लइ बनाय,
ता ऊपर मुल्ला बांग दे, क्या बहरा भय्या खुदाय !
हिन्दू ऐसी जात है, पत्थर पूजन जाय,
घर की चकिया कोई न पूजे जिसका पीसा आटा खाय !
कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सबकी खैर,
न काहू से दोस्ती न काहू से बैर !
नोट : ये लेखक के निजी विचार हैं, इससे संस्थान का कोई लेना-देना नहीं है।
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