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इस उजड़े बाग़ से – राजनीति की आग से,
बेसुरे राग से, जहरीले नाग से,
कड़कड़ाते काग से,
स्वाद रहित साग से, दूषित प्रयाग से,
दिन है या रैन है,
आम आदमी बेचैन है ! १ !
मुच्छल फौजदार से, दढ़ियल थानेदार से,
वेवक्त के रिस्तेदार से,
मंगता खुदा खिदमतदार से (दे दे बाबा खुद के नाम)
समाज के गद्दार से,
पार्टी बदल व्यापार से,
आतंवादी वार से,
दिन है या रैन है, आम आदमी बेचैन है ! २ !
दलालों वकीलों से,
उबड़ खाबड़ मीलों से,
झुर्रीदार गालों से, चुंगी के टालों से,
मिलावटी दालों से,
शतरंजी चालों से,
खिचड़ी हुए बालों से,
दिन है रैन है – आम आदमी बेचैन है ! ३ !
कारों के काफिलों से,
बम बर्षक अंगारों से,
इनकम टैक्स के भारों से,
सेठ के उधारों से,
झूठे गंदे नारों से,
उग्रवादी तलवारों से,
दिन है या रैन हैं,
आम आदमी बेचैन है ! ४ !
अंधकारी लम्हों से,
बिजली के खम्बों से,
जाति धर्म के दंगों से,
निर्धन की पीठ पुलिस के डंडों से,
चोर के हथकंडों से,
धर्मस्थल के पंडों से,
दिन है या रैन है, आम आदमी बेचैन है ! ५ !
भष्ट नेताओं की तस्वीरों से,
राह भटकते वीरों से,
चोरी के हीरों से,
सुस्त पड़े रणधीरों से,
हथकड़ी जंजीरों से,
दर्दीले फोड़ों से, पुलिस के कोड़ों से,
दिन है या रैन है,
आम आदमी बेचैन है !६ !
नंगी रूखी पहाड़ियों से,
डाक्टर अनाड़ियों से,
पार्क के जुवारियों से,
कंटीली झाड़ियों से,
डरावनी दाढ़ियों से,
धीमी पड़ती नाड़ियों से,
लेट चलती गाड़ियों से,
क्रिकेट की गिरती पारियों से,
बीबी की नयी नयी साड़ियों से,
दिन है या रैन है, आम आदमी बेचैन है ! 7 !
आज की मुलाक़ात बस इतनी,
कल कर लेना चाहे बात कितनी ! जय हिन्द – जय भारत — हरेन्द्र
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