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एक कविता ये भी

jagate raho
jagate raho
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निर्भया तुम तो जख्मों के बोझ को
सहती हुई चली गयी, संसार से मुख मोड़कर !
शैतानों ने मानव भक्षी राक्षसों को पीछे छोड़ दिया,
जीन्दे इंसान की चमड़ी को उखाड़ कर !
अबे, अब क्या जरूरत पड़ गयी दुर्जनों, प्राणों के भीख मांगने की !
एक सबसे बड़ा दैशतगर्द शैतान वो था जो नाबालिक की चादर ओढ़े था,
बच गया है दुनिया के क़ानून से, पर जब परवर दिगार के दरवार में जाएगा, लोहे के नुकीले नोकों से छेदा जाएगा,
कुकर्मों की सजा तो जरूर पाएगा ! जरूर पाएगा !!

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