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कंटीली झाड़ियों के बीच फंसा था मेरा दिल

jagate raho
jagate raho
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इस राह चले अनजान थे हम,
जब आँख खुली नीलाम्बर था,
थी झाड़ियाँ कंटीली मगर,
लगता कहीं दूर समुन्दर था,
झाड़ियाँ तो काटी हमने,
राह के पत्थर हटा दिए,
दिल झाड़ियों में फंसा रहा,
नशे में हम थे बिना पिए !
राहगीर अब बिना रुकावट,
इस राह पर आते जाते हैं,
मेरे फंसे हुए दिल पर
एक नजर जरूर लगाते हैं !
मैं भ्रम यह पाले था,
दिल मेरा मेरे पास नहीं,
समाज सेवा करते करते,
था दिल कहीं दिमाग कहीं !
और एक दिन अचानक किसी ने,
दरवाजा मेरा खटकाया,
दरवाजा खोला द्वारे पे,
कोई नजर नहीं आया !
इधर बाईं तरफ सीने में मेरे
दिल मेरा धड़क रहा था,
जन सेवक की हानि नहीं होती,
.कानों में कोई कह रहा था ! हरेंद्र

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