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कुदरत और मैं

jagate raho
jagate raho
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सुबह सुबह मैं कुदरत से बातें करता हूँ,
उसके रंगीन आभा को नैनों में भरता हूँ !
ऊंची ऊंची पेड़ों की डाली उन पर चिड़िया नन्नी,
चीची करती गीत सुनाती बोली उनकी अपनी,
सुबह सुबह चार बजे ही भजन शुरू हो जाता है,
कोई मुरली सारंगी कोई गीत सुनाता है !
ये चिड़ियाँ हैं रंग बिरंगी, पर आवाज सुरीली है,
वो कोयल है श्यामा रंग की वो लाल गुलाबी पीली हैं,
कभी किसी के छत पर बैठीशान से इतरारी हैं,
अपने जीवन साथी से हंस हंस के चोंच मिलाती हैं,
ये जल में रहती थल में रहती नील गगन में रहती हैं,
पास पोर्ट वीजा नहीं है, इंसानों से कहती हैं !
रिश्ता ये भी निभाते हैं, पर धोका नहीं करते,
ये कौम है चिड़ियों की आतंकी नहीं बनते !
भ्रष्टाचार, लूटपाट, न रेप ह्त्या करते हैं,
जिस वर्त्तन में खाते उसमें छेड़ नहीं करते हैं !
मैंने उनको नमन किया और याचना की,
आदर्श शुद्धीकरण मुझे मिले, उनसे शिक्षा ली !
“हे कुदरत के देवदूत इन इंसानों को सिखलाओ,
कीचड़ दल दल से निकालकर सच्चा इंसान बनाओ !”
हरेंद्र सितम्बर २७, २०१८ वीरवार लॉन्ग आइलैंड
न्यूयार्क अमेरिका

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