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चलो नदिया के पार

jagate raho
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इस पार गरीबी सखी बनी, उस पार कल्पना का सागर,
होंगी वहां लक्ष्मी-सरस्वती, होगी खुशियों की गागर !
जहां हर डाल की साख साख पर स्वर्णपंख चिड़ियाँ होंगी,
मोरों का झुण्ड पंख पसारे, वन में नाच दिखाती होंगी !
झरनों की झंकार मिलेगी, और नदियों का निर्मल जल,
जलचर जल की कल कल स्वर में तैर रहे होंगे हर पल !
जहां फूलों में भंवरों की गुंजन, फलों लदी डाली होगी,
नन्ने पौधे लहरा लहरा कर खुशियां अपनी बरसाती होंगी !
धरती में अमन की बंशी, बंशीधर बजा रहे होंगे,
नीले अम्बर में चाँद सितारे, मोती से झिलमिला रहे होंगे !
चांदी का ताज वे शीश धरे, हिमालय शान से होंगे खड़े,
होंगे बाकी पर्वत आगे पीछे, ले वनस्पतियाँ शीश धरे !
मधुमक्खी मधु लुटाएंगी, जब सुरक्षित उनका घर होगा,
कोयल गीत सुनाएगी, जब शुद्ध बसंती मौसम होगा !
पर पार उतरना मुश्किल है, नदिया गहरी चंचल धारा,
बार बार उतरा दरिया में, पर बार बार धारा से हारा !
फिर भी हार न मानी मैंने, फिर धारा में उतरूंगा,
कभी तो लहर ऐसी आएगी दरिया पार मैं कर लूंगा !

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