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भ्रष्टों की बारात

jagate raho
jagate raho
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वो देखो बैठा सोने के पहाड़ पर,
सारी है हराम खोरी की,
रग रग में दूषित रक्त भरा है,
किसान मजदूरों से चोरी की,
अब सता से दूर हुआ,
रक्त पीने को मिला नहीं,
कहीं से कुछ मिल जाय, भटक रहा है यहाँ कहीं !
पुरुखों ने विरासत में दी थी हेरा फेरी घोटाला,
गाली गलौज, अहंकार और वे वजह का रोला !
पर्ची लिखवा कर भाषण देता,
क्या कहा उसे खुद समझ न आता !
पर है कमाल का ड्रामेवाज़,
कल क्या था कोई नहीं जानता,
पर अस्थाई हिन्दू बना है आज !
सभ्य, संस्कृति का भान नहीं है,
जवां पे वरिष्ट्रों का मान नहीं है,
खुद शर्ट चोरी की है पहने,
दूसरों को चोर बताता है,
पूरा परिवार घोटालों में इसको शर्म नहीं आता है !
संभल के रहना देश वासियो,
इन जहरीले नागों से,
अंदर ही अंदर सुलग रहे, इन छिपे हुये अंगारों से !

मैं राह भटक गया हूँ,
मुझको मेरी मंजिल बतादो, चलते चलते,

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