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कभी कभी दिल में ख्याल आता है की अगर महाभारत के सूत्रधार महाराजा शांतुनु ६०-७० साल में सत्यवती के साथ शादी नहीं करते और अपने जवान पुत्र (गंगा पुत्र) को जिंदगी भर प्रतिज्ञा के बंधन में न बांधने के लिए मानसिक दबाव न डालते तो क्या फिर भी महाभारत होता ? शायद नहीं ! कमाल तो देखिए एक बूढ़ा ६०-७ साल का राजा एक मछुवारे की लड़की पर फ़िदा होगया, मछुवारे की शर्त तो जवान बेटे देवव्रत ने पापा की खुशी के खातिर स्वीकार कर ली और आजन्म कुंवारा रहने की प्रतिज्ञा कर ली, फिर भी महाराजा शांतुनु की हठ धर्मी देखिए, कहाँ तो बेटे की शादी करनी चाहिए थी, स्वयं दूल्हा बनकर पालकी में बैठ गए ! वह द्वापर युग था, यह कलयुग है, हम इस युग को फिर क्यों दोष दे रहे हैं ! दोष युग में नहीं दोष था महाराजा शांतुनु में, अपने आप तो जल्दी ही पंचतत्व के शरीर को छोड़ कर वे जल्दी ही स्वर्ग सिधार गए और बेचारे देवव्रत को अपनी कथनी और करनी के दंड के बोझ तले दबा गए ! यहां पर एक सवाल उठता है कि “एक मछुवारे की शर्त मानने के लिए देवव्रत ने आजन्म कुंवारा रहने की प्रतिज्ञा तो कर दी लेकिन, गंगा पुत्र एक सजग दूरदर्शी होने के बावजूद भविष्य के गर्व में छिपे हुए संकट को क्यों नहीं देख पाए ! उन्हें भी मंद बुद्धि मछुवारे से एक शर्त रख लेनी थी की अगर ‘कहीं सत्यवती के गर्व से हुए पुत्र अशक्त, बिमार या राजा बनने के योग्य नहीं हुए तो भले ही प्रतिज्ञा से बंधा “मैं कुंवारा रहूँगा पर ताज पहनकर राजा बन जाऊंगा” ! महाराजा शांतुनु ने यह जानकर की ‘देवव्रत ने मेरी चंद रोज की खुशी के खातिर अपनी सारी जिंदगी के लिए काँटों की सेज बिछा दी है, तो उनहोंने ये शादी करने के लिए मना क्यों नहीं कर दिया ! चलो, कहानी आगे बड़ी, महाराजा शांतुनु जी के सत्यवती से दो पुत्र हुए ! चिन्द्रागदा और विचित्रवीर, बड़ा पहले ही देह त्याग गया कुछ दिनों बाद दूसरा भी संसार से रुखसत होगया ! जब विचित्रवीर ज़िंदा था उसकी माँ को उसकी शादी की चिंता हुई, उनहोंने देवव्रत के कन्धों पर उसकी शादी का बोझ डाल दिया ! काशी के राजा की तीन सुन्दर कन्याएं थीं, उनहोंने उन तीनों के लिए योग्यवर ढूंढने के वजाय स्वयम्बर की घोषणा करदी ! काशी दरवार में सारे राज्यों के राजकुमार अपने भाग्य आजमाने के लिए पहुँच गए ! विचित्रवीर की जगह वहां देवव्रत (भीष्म) गए ! अब सवाल खड़ा होता है कि जब भीष्म ने खुद आजन्म ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा की थी तो फिर अपने अयोग्य भाई के लिए वधु लाने क्यों गया ? जो स्वयम्बर में जाने का साहस भी नहीं कर सकता, उसकी जबरदस्ती शादी करवाना क्या न्याय संगत था ? मेरे विचार में तो नहीं ! दुष्टता तो देखिए एक राजा के लिए भीष्म अपनी ताकत के बल पर तीनों राजकुमारियों को उठा ले आया ! उनमें से सबसे बड़ी थी अम्बा, वह राजा सलवा को प्रेम करती थी, उसने भीष्म से यह रहस्य खोल दिया, भीष्म ने उसे सलवा के पास भेज दिया, उधर राजा सलवा ने अम्बा को साफ़ शब्दों में कह दिया “तुम्हे भीष्म जीत कर ले गया था, अब तुम भीष्म की अमानत हो” ! अम्बा लौट कर भारी दिल से भीष्म के पास आई और उसे प्रार्थना की कि राजा सलवा ने “मुझसे शादी करने से इंकार कर दिया है, क्यों कि तुम अपनी ताकत के बल पर मुझे जबरदस्ती स्वयम्बर मंडप से उठा ले आए हो, अब मैं केवल और केवल तुम्हारी अमानत हूँ, तुम्हे ही मुझसे शादी करनी पड़ेगी” ! भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा का हवाला देकर साफ़ इंकार कर दिया ! प्रतिज्ञा करते वक्त भीष्म ने अपने भाइयों की शादी करवाने का किसी को कोई वचन नहीं दिया था, फिर ब्रह्मचारी को अपनी ताकत से स्वयम्बर से तीन तीन राजकुमारियों का वरण की जगह हरण कर लाना न्याय संगत था ? कहने का मतलब भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा की अग्नि में एक निर्दोष राजकुमारी अम्बा को जवानी में ही जलवा डाला ! उधर दोनों बहिनों अम्बिका, अम्बालिका की शादी विचित्रवीर से होगई ! कुछ अर्से के वाद विचित्रवीर भी लड़ाई में मारा गया बिना संतान के ! राजमाता सत्यवती की शादी से पहले का पुत्र था पारासर मुनि से, नाम था ‘वेव्यास’ ! समय आने पर तथा कुरुवंश की वंशावली को आगे बढ़ाने के लिए उनहोंने यह रहस्य भीष्म को बता दिया ! आखिर वही ‘वेदव्यास’ कुरुवंश की वंशावली को आगे बढ़ाने में मददगार सावित हुआ ! ये वही वेदव्यास हैं जिन्होंने आगे चलकर ‘महाभरत की रचना की थी ! उधर एक माँ कुंती भी थी, जिन्होंने जीवनभर कि ‘कर्ण सूर्य भगवान के आशीर्वाद से पैदा हुआ उन्हें का पुत्र है’, इस रहस्य को समाज के डर से कभी नहीं खोल पायी ! अपने आँखों के आगे अपने ही पुत्रों द्वारा कर्ण का उपहास होता रहा, वह बेइज्जत होता रहा, उसे सूत पुत्र कहा जाता था, और आखिर में अपने ही पुत्र अर्जुन के ही हाथों सबसे बड़ा बेटा कर्ण मारा गया, यह सब अनर्थ भी कुंती ने देखा, पर भेद नहीं खोला, भेद खोला जब बेचारा, अपार कष्ट, व् जीवन भर ‘सूतपुत्र’ बनकर जिया, जिल्लत अपमान की पोटली सर पर बांधकर संसार से विदा होगया ! बताइए महाभारत पर्व में किसको ऊंचा स्थान मिलना चाहिए ‘सत्यवती’ को या फिर पांडवों की माता ‘कुंती’ को ? भीष्म को या फिर अम्बा को !
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