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मेरी कवितायेँ

jagate raho
jagate raho
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कल आज और कल
कल बीत गया सो बीत गया
बन गया आज वो स्वप्ना है,
आज को भैया संभाल के रखो,
कुछ देर को ये अपना है !
एक कल फिर आएगा,
कुछ नया सगूफा लाएगा,
कुछ नए महिमान धरती पर
कुछ बाय बाय करके जाएंगे !
ये पांच तत्व का मानव,
दो हाथ दो पैरों वाला है,
आँख कान मुंह पेट नाक,
जैसे चार टांगों वाला है,
दो टांग वालों को प्रभु से,
दिमाग अलग से मिला हुआ,
समुद्र की गहराई, गगन ऊंचाई,
और धरती पर खोदा कुवाँ |

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