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आंकड़ों की बाजगरी में न उलझाओ सरकार. सीधी बात समझाओ कि ऐसा क्यों, पैसा पब्लिक का और फायदा सरकारी कर्मी का. जैसे इस देश में केवल सरकारी कर्मचारी ही काम करता है, प्राइवेट सेक्टर में तो सिर्फ मस्ती ही होती है. समझ नहीं आता सरकारी वेतन, सरकारी सुविधाओं का समुचित लाभ लेने वाले सरकारी कर्मचारी इतने योग्य होते तो इस देश में हर सेक्टर को प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों को देने की क्या आवश्यकता थी. वेतन के साथ-साथ सुविधा शुल्क के रूप में पनपते भ्रष्टाचार ने ही आखिर इस देश में जानलेवा समस्याओं को जन्म दिया है. सरकारी कर्मियों के वेतन बढने की एवरेज में ही महंगाई बढ़ा दी जाती है और मरेगा बेचारा सरकार बनाने वाला. फिर आलू-टमाटर हो या दाल-चीनी के बाजार भाव तो सरकारी और आम नहीं होते न. एक रेट मे ही खरीदना है. आय मे जमीन आसमान का अंतर बनाते जाओ- भूखमरी बढाते जाओ और यही भूखमरी जिस दिन पेट फाड़ती है उसी दिन से निकलने शुरू हो जाते हैं चोर, डकैत, विद्रोही और आतंकी. सरकार भले ही कर्मचारी चलाते हो लेकिन बनाते तो ठेली खोमचे वाले और दिहाडी मजदूर ही है. अब पिसेगे सरकारी चक्की में. एक समय की दावत के चक्कर मे पांच साल रोते हंै. न दवा, न सडक, न रोजगार फिर चिल्लाते है हमारा नेता कैसा हो भैय्या जी जैसा हो. जब तक सूरज चांद रहेगा भैय्या जी का नाम रहेगा. भले ही खुद का वजूद मिट्टी में मिल जाए.
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