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उत्तराखंड को मॉडल स्टेट बनाने का सपना देखना अच्छी बात है, पर हकीकत यह है कि क्या एक मॉडल सिटी बनाने की हैसियत भी है. स्टेट बने दस वर्ष हो गए, पर अभी तक एक भी इंटरनेशनल लेबल का स्पोर्टस ग्राउंड, एयरपोर्ट स्टेट में नहीं है. पॉलिटिक्स के बादशाह एनडी तिवारी के साथसाथ युवा सोच भी स्टेट की दशा सुधारने में अभी तक नाकाम ही रही है. पर हम है कि उम्मीद लगाए बैठे है कि सब अच्छा होगा. कहां से अच्छा होगा यह नहीं पता. पहाड़ी राज्य निर्माण गठन की जरूरत पड़ी थी पहाड़ियों के जीवन निवर्हन के लिए संसाधनों को जुटाना, वहां जन जीवन सुव्यस्थित बनाना. हां ऐसा जरूर हुआ है, पर कुछ खास लोगों और उनके परिवारों के लिए. उन लोगों को सीधा फायदा मिला है, जो पॉलिटिक्स के बिजनेस में लगे है. पहाड़ में आज भी एजूकेशन और हॉस्पिटल्स के नाम पर कुछ नहीं है. शहरों के पलेबढ़े, एजुकेटेड युवा पहाड़ों में जाने को तैयार नहीं है, डाक्टर्स तो बिलकुल भी नहीं है. गवर्नमेंट भी लाचार है, और हो भी क्यों न, जब उसके खुद के सदस्य भी पहाड़ों से कन्नी काटते हो, सिवाय इलेक्शन के समय वोट के अलावा शायद ही कभी जाना हो. यह कडवा सत्य है कि आज पहाड़ का हर घर लगभग खाली हो रहा है. अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए या मेडिकल सुविधा के लिए पहाड़वासी की मजबूरी है कि वह पहाड़ का मोह छोड़ कर सिटी में आए. कहते है कि समय अपने दोहराता है. कभी आक्रमणकारियों के डर से दुर्गम पहाड़ों में जा बसे हमारे बड़े बुजुर्गों के बच्चे आने वाले समय में पहाड़ छोड़कर वापस मैदानी क्षेत्रों में आ बसे तो कोई गलत नहीं होगा. क्योंकि हालात ऐसा ही कुछ कहते है.
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