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ऋषि, महर्षि गृहस्थ हो तो रावल क्यों नहीं हो सकते? यह अब बहस का विषय बन गया है. अपनी प्राचीन परम्पराओं को बचाने और उनके निर्वहन की हुंकार भरने वालों को यह छोटी सी बात समझ नहीं आई कि जिस घटनाक्रम के बाद उन्होंने यह बहस शुरू की है, वह कोई हल्की-फुल्की बात नहीं थी, बल्कि अक्षम्य अपराध की श्रेणी में आने वाली घटना है, चारधाम में से एक भगवान बद्रीनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी (रावल) केशव प्रसाद नंबूदरी पर 28 साल की युवती के साथ अश्लील हरकत करने के शर्मनाक आरोप लगे हैं. आरोप हैं कि मुख्य पुजारी ने छतरपुर स्थित एक होटल में बीयर के नशे में घटना को अंजाम दिया. जबकि इस साजिश में मुख्य पुजारी का चचेरा भाई विष्णु प्रकाश भी शामिल रहा. वहीं पुलिस ने छेड़खानी व कमरे में जबरन रोकने की धाराओं के तहत मामला दर्ज कर दोनों को साकेत कोर्ट में पेश किया, उसके बाद उन्हें 14 दिन की ज्यूडिशियल कस्टडी में तिहाड़ जेल भेज दिया गया. अब सोचिए ऐसे शख्स को जिसने अक्षम्य अपराध किया हो, उसकी तुलना महान ऋषि-मुनियों कैसे की जा सकती है. चलिए मान भी लिया जाए कि रावल गृहस्थ हो सकते है, तो उनको इतनी छूट दी जा सकती है कि जब उनका गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने का हो, तो उनको रावल पद त्याग देना चाहिए. कुछ लोगों का कहना है कि रावल गृहस्थ होकर भी मर्यादाओं का पालन कर सकते है. तब ऐसे में इस बात को कैसे भुलाया जा सकता है कि आशाराम बापू भी तो गृहस्थ होकर संत थे, तब वह कैसे मर्यादाओं का उल्लंघन कर बैठे. किसी भी विषय पर वाद-विवाद होने अच्छी बात है, पर बात का कोई सिर पैर तो होना चाहिए. श्रीबद्रीनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी केशव प्रसाद नंबूदरी ने कोई शादी नहीं की, बल्कि उन पर एक युवती ने यौन शोषण के गंभीर आरोप लगाए है. इस घटनाक्रम में श्रीबद्रीनाथ मंदिर की प्राचीन और गौरवशाली परम्परा – बद्रीनाथ के रावल जब तक पूजा-अर्चना करेंगे, तब तक वह ब्रह्मचारी ही रहेंगे, को घसीटने की क्या आवश्यकता है?
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