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सुबह से दिमाग में एक ही बात घूम रही थी, आज फैसला आने वाला है, पता नहीं क्या होगा, इसी उहापोह में दोपहर हो आई। घर से लगभग ५० किमी दूर ऑफिस रोज बस से ही जाना होता है, मैं करीब साढ़े तीन बजे ऑफिस के लिए घर से निकला, मन फैसले को लेकर अशांत था। करीब साढे चार अपने मोबाइल नेट पर बीबीसी हिन्दी की न्यूज ‘अयोध्या में विवादित भूमि हिन्दू गुटों को सौंपने का फैसला’ देखते ही मन शांत हो गया, ठीक उसी तरह जैसे हवा भरे हुए गुब्बारे में कोई सुई चुभा दें। फिर तो लोगों की बाते सुनते-सुनते समय बितने लगा। कोई कह रहा था ऐतिहासिक फैसला है, तो कोई कह रहा था चलो रोज-रोज के विवाद से तो निपटे। मेरा मन प्रसन्न था चलो लोग खुद्गा हैं, माहौल शातिपूर्ण हैं। मैं भी शांत मन से आफिस पहुंचा, देखा वहां न्यूज चैनलों ने अपनी अदालत सजा रखी है। मन फिर अशांत हो गया। हम किसका फैसला सुनकर खुश हो रहे है, अभी असली फैसला तो आया ही नहीं क्योंकि अभी तो बहस ही चल रही हैं। मैं भी सोचने लगा कि कुछ लिख देता हूं अपने ब्लॉग के लिए। क्योंकि इस समय सभी लिखेंगे। बस तेजी से मन में उठे गुबार को कम्प्यूटर स्क्रीन पर उतार दिया। इसी बीच मेरे मित्र ने उसको पढ कर कहा कि अरे भाई रहने दो, बहुत हो गया। इतना लिखा जा चुका है, तुम क्या नया लिख लोगे। दो मिनट के लिए मैं भी चुप हो गया। फिर अचानक जो लिखा था, उसको डिलीट कर दिया, और सोचा मैं क्या लिख सकता हूं। अभी तो बहस चल रही है, असली खेल तो अब शुरू हुआ है, इसके बाद ही हम किसी निर्णय पहुंच पाएगे। समझ नहीं आया जब अयोध्या की विवादित भूमि पर कोर्ट का फैसला सर्वमान्य है और आम पब्लिक ने संयम के साथ फैसला स्वीकार कर लिया है, तो अब बहस क्यों
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