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बदले की भावना से संसद को बाधित करने का फैसला कांग्रेस पर ही भारी पडने वाला है. वह दौर और था जब एक कान की खबर दूसरे कान को नहीं होती थी, अब दौर और है यहां कान की बात तो छोडि़ए दूसरे के मन में क्या चल रहा है इसकी खबर सबको हो जाती है. इधर आपने सोचा उधर हल्ला मच गया. तेजी से बढ़ते संचार माध्यमों के चलते पल-पल की खबर देश-दुनिया में फैल जाती है, जहां संसद की गतिविधियां आम जनता के लिए किसी तिलिस्म से कम नहीं होती थी. वहीं अब संसद की लाइव कवरेज को देख-देखकर अपने प्रतिनिधियों की गतिविधियों से जनता अनजान नहीं है. इलेक्शन के दौरान सीधे-साधे सांसद भी अपने स्वार्थों के लिए कितने टेढे हो जाते है, यह जग जाहिर है. अपने फायदों, वेतन भत्तें, खान-पान व अपनी सुख सुविधाओं संबंधी बिलों को एकसुर में पास करवाने वाले सांसद जनोपयोगी बिलों पर कैसे बेसुरे हो जाते है, यह बात भी आज किसी से नहीं छिपी. देश की सबसे पुरानी व समझदार कांग्रेस पार्टी के नीतिनिर्धारकों को यह बात समझनी होगी कि संसद की कार्यवाही को सिर्फ इसलिए बाधित करना कि भाजपा भी ऐसा करती थी, तो हम भी ऐसा ही करेंगे. उनके लिए भविष्य में घातक ही साबित होगी. चलिए मान लिया जाए कि पीएम नरेंद्र मोदी कांग्रेस द्वारा आरोपित मंत्रियों से इस्तीफा करवा लेते है तो भी क्या होने वाला है. कांग्रेस को चाहिए कि वह वाजिब बातों पर सरकार का विरोध करे तो ज्यादा बेहतर होगा. अगर बीजेपी के दामन पर एक दो दाग लग भी गये है तो कौन सा कांग्रेस बेदाग है, उसके छलनी होने के बाद ही जनता ने भाजपा का दामन संभाला है. यह बात विपक्षी जितनी जल्दी समझ जाए उतना ही अच्छा होगा, विपक्ष को अपने सवालों का जवाब तभी मिल सकता है, जब वह संसद में बैठे और संसद को चलने दें. आखिर संसदीय कार्यवाही को ठप करके कांग्रेस क्या साबित करना चाहती है. इस बात का जवाब तो आने वाले समय में मिल ही जाएगा, लेकिन फिलहाल संसद न चलने का नुकसान परोक्ष या अपरोक्ष रूप से विपक्ष को ही वाला है. रही बात जनता की तो, वह तो आदी हो चुकी है. जहा साठ साल झेल लिए वहा थोडा और सही.
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