Harish Bhatt
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पाषाण नहीं, हम भी हैं इंसान,
हैं हमारे इरादे भी बुलंद।
दिखा देंगे एक दिन दुनिया को,
हम भी छू सकते हैं आसमां।
मन दुःखी होता है, टूटता नहीं,
जब मुंह मोड़ लेते है हमसे अपने।
हमारी क्या खता, ईश्वर की इच्छा,
ईश्वर भी था जब मजबूर।
आधा-अधूरा शरीर दिया,
तब दे किसको दोष।
हमको छोड दो हमारे हाल पर,
न देखो हमको दयापूर्ण दृष्टि से।
दानवीर बनने की चाह हो अगर,
देना सहयोग, दया नहीं।
(दिव्यांगों को समर्पित व नमन)
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